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Showing posts from 2020

तुम

ना पास आते हो तुम ना दूर जाते हो तुम तमन्ना क्या है तुम्हारी ना ही बताते हो तुम मैंने सुना है मोहब्बत है मुझसे फिर क्यूं निगाहें बचाते हो तुम राज - ए - मोहब्बत क्या है दिल में जो देख कर इतना मुस्कुराते हो तुम गुस्ताख़ी माफ़ ऐ हुस्न - ए - हुज़ूर बड़ी शिद्दत से आजमाते हो तुम मै सरोवर सा रहता तुम्हारे जिगर में क्यूं लहरों की जिद से जगाते हो तुम मै नहीं कोई दुश्मन ना कोई परिंदा जो छुपकर छुपाकर जलाते हो तुम

स्वतंत्रता दिवस

अंग्रेजी रानी का जर्रा जर्रा थहराया था जब हिन्दुस्तानी वीर सपूतों ने विजय तिरंगा फहराया था राज गुरु सुखदेव भगत सिंह आज भी गाये जाते हैं चंद्रशेखर आजाद उधम सिंह हर मुख पर दोहराए जाते हैं अंग्रेजी तोप चलाने वाला लाठी से घबराया था जब हिन्दुस्तानी वीर सपूतों ने विजय तिरंगा फहराया था यह भारत मंगल पांडे का है जिसने पहली बंदूक चलाई थी लंदन की अंग्रेजी इज्जत मिट्टी में स्वयं मिलाई थी रानी लक्ष्मी का युद्ध देख डलहौजी शीश झुकाया था तब भारत के वीर सपूतों ने विजय तिरंगा फहराया था स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हम सब को हाथ बढ़ाना है विजई विश्व तिरंगा को अंबर तक ले जाना है इस पर आंच न आने पाए आतंकी दिया बुझाना है विजई विश्व तिरंगा को अंबर तक ले जाना है ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

बसंती हवा

ऐ बसंती हवा रुक तो जरा कुछ कहना है तुझसे सुन तो जरा ये सरहद है मेरे देश मेरे वतन की मै इसका सिपाही कसम है कफ़न कि ये बंदूक ये गोली, और खून की होली सब क़यामत है, गुन तो जरा ऐ बसंती हवा कुछ कहना है तुझसे सुन तो जरा तू वाकिब है मेरे, रहन और सहन से ये जख्म के निशा, और चोटिल बदन से ये हांथ पर निशा पहली जंग का है ये आंखों का पानी लहू रंग का है ये निशा ये रंग, कुछ चुन तो जरा ऐ बसंती हवा कुछ कहना है तुझसे सुन तो जरा मेरे गांव में रहते मेरे यार हैं मेरे बचपन के साथी बड़े दिलदार हैं मेरा घर मेरी मां है वहीं उनसे मिलने के सपने बुन तो जरा ऐ बसंती हवा कुछ कहना है तुझसे सुन तो जरा मै बेटा हूं उसका काम वतन के आना है मै खून हूं उसका सरहद से मिल जाना है गर्व करना मुझपर मेरे यारों जब मिट्टी में मिल जाऊंगा मै यार हूं तुम्हारा काम वतन के आऊंगा ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

दूरदर्शन

अपने बचपन का दिन राफेल विमान था कार्यक्रम में सूपर शक्ति शक्तिमान था भक्ति सागर में डूबा भक्ति मय इंसान था कार्यक्रम में सूपर शक्ति शक्तिमान था रंगोली के गाने बड़े मजेदार थे चित्रहार के बहाने मिलते सब यार थे कृष्णा महाभारत रामायण महान था कार्यक्रम में सूपर शक्ति शक्तिमान था संजोग और एहसास कहानी घर घर की क़यामत से घिरी जिंदगी कश्मकश की आंखों देखी समाचार का सम्मान था कार्यक्रम में सूपर शक्ति शक्तिमान था सत्यम शिवम् सुंदरम दूरदर्शन था प्यारा हिन्दी फीचर फिल्म मनोरंजन था हमारा हर समस्या का बस दूरदर्शन समाधान था कार्यक्रम में सूपर शक्ति शक्तिमान था ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

ख़त

कभी वो सुबह लिखते हैं कभी वो शाम लिखते हैं। मै जब भी उन्हें याद करता हूं वो ख़त मेरे नाम लिखते  हैं।। मै जब भी उदास होता हूं तन्हाइयां मुझे सताती हैं वो अपनी मोहब्बत में खुशी का पैग़ाम लिखते हैं मै जब भी उन्हें याद करता हूं। वो ख़त मेरे नाम लिखते हैं।। हर शख्स दीवार उठाने आता है मेरे और उनके मोहब्बत के दरमियान वो हर दीवार गिराने का अंज़ाम लिखते हैं मै जब भी उन्हें याद करता हूं। वो ख़त मेरे नाम लिखते हैं।। तारीफ में उनकी मै क्या क्या कहूं बस इतना ही जान लेना खयाल उनका वो दिल से नमस्ते कलम से सलाम लिखते हैं मै जब भी उन्हें याद करता हूं। वो ख़त मेरे नाम लिखते हैं।।

लद्दाख

ये हिन्दुस्तान है, जीने का आसार बता देगा मित्रता में अनुभव, अधिकार बता देगा इसे तोड़ने की कोशिश भी मत करना दुनिया के नक्शे से, आकार मिटा देगा लद्दाख नहीं है साझे की, ना ही किसी का हिस्सा है हर व्यक्ति पड़ोसी हक चाहे, यह जन्म जन्म का किस्सा है यदि आंख उठाएगा कोई, उसके अहंकार मिटा देगा ये हिन्दुस्तान है, नक्शे से आकार मिटा देगा जोरदार का झटका, पाक अभी जो झेला है ये शत्रुओं से प्यार है, जो भारत ने खेला है इस बार मिला जो चीन अकड़ कर उसको मिलने का संस्कार बता देगा ये हिन्दुस्तान है, नक्शे से आकार मिटा देगा ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

हिन्दुस्तान की मिट्टी

ये हिन्दुस्तान की मिट्टी है, मां के नाम से जानी जाती है इसको छू कर वीर सपूतों की, धड़कन पहचानी जाती है धरती को मां संबोधित कर, गर्व कराता है भारत चिकनी दोमट बलुई काली, पर्व मनाता है भारत इस पर आंच न आने पाए, बंदूकें तानी जाती हैं ये हिन्दुस्तान की मिट्टी है, मां के नाम से जानी जाती है गीता कुरान गुरुग्रंथ बाइबिल,सब कुछ भारत अपनाया है जब जब दुश्मन खड़ा हुआ, मिट्टी में उसे मिलाया है सरहद पर महके जो खुशबू, वीरों से पहचानी जाती है ये हिन्दुस्तान की मिट्टी है, मां के नाम से जानी जाती है

मौत

एक रात मेरी मौत से मुलाकात हो गई हाल पूछा, फिर थोड़ी सी बात हो गई उलझन में थी, कोई घर ढूंढ रही थी वो मै ही था, जिसे नजर ढूंढ रही थी कहने लगी, तुम बहुत सता रहे हो क़यामत खड़ी है, फिर भी मुस्कुरा रहे हो आज तुम्हे जिंदगी से दूर जाना है जिंदगी को छोड़ मौत अपनाना है ये आलम, ये हस्ती, ये जीवन, ये मस्ती तुझपर सब कुछ वार दूंगा चल मेरे घर, तुझे एक उपहार दूंगा लाल जोड़े में तेरा दीदार करना है तू मेरी है, तुझे प्यार करना है कह गई है आऊंगी, आज जाने दो मेरा इंतजार करो, खुद को मुस्कुराने दो अब तक मै उसका इंतजार कर रहा हूं मौत ना सही, जिंदगी से प्यार कर रहा हूं ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

विरह

ऐ घनघोर घटा के काले बादल क्या तुम मेरा संदेशा ले जा सकते हो ? मेरे विरह, मेरे तड़प का, एक दर्द उन्हें बतला सकते हो ऐ घनघोर घटा के काले बादल क्या तुम मेरा संदेशा ले जा सकते हो ? यूं रिमझिम रिमझिम जल बरसाना जैसे आंखे बहती हैं उन्हें भिगा कर समझाना यादें उनमें रहती हैं यादों में कितनी व्याकुलता है क्या व्याकुलता दिखला सकते हो ? मेरे विरह, मेरे तड़प का, एक दर्द उन्हें बतला सकते हो ऐ घनघोर घटा के काले बादल क्या तुम मेरा संदेशा ले जा सकते हो ? उनको अपनी चमक दिखाना मेरी परछाई दर्शाना विरह जलन क्या होती है तपिश भूमि सा जल जाना मेरी अगन, मेरी तपिश का, क्या शोला भड़का सकते हो मेरे विरह, मेरे तड़प का, एक दर्द उन्हें बतला सकते हो ऐ घनघोर घटा के काले बादल क्या तुम मेरा संदेशा ले जा सकते हो ?

बहन

सौगात उसके प्यार का, हर उपहार से बढ़कर है उसका सम्मान और अधिकार, हर अधिकार से बढ़कर है उसकी हसी में इतनी मोहब्बत है कि उसकी हसी हर दिलदार से बढ़कर है मै दुनिया की हर खुशी उस पर वार दूंगा मै जीवन के अंत तक उसे प्यार दूंगा लाख संघर्ष हो मेरे जीवन में कुछ गम नहीं उसकी किस्मत उसका भविष्य संवार दूंगा एक बंधन ही नहीं वो दोस्त से बढ़कर है उसका हक उसकी राखी से बढ़कर है एक बहन ही तो है बचपन का प्यार मेरी बहन का किरदार हर किरदार से बढ़कर है ।। ज्योति प्रकाश राय

विश्वासघात

मानवता एक बार फिर शर्मसार हुई है और इसका जिम्मेदार भी मानव प्राणी ही हुआ है वह मानव जो संसार में सबसे अधिक बुद्धिमान माना जाता है। जिसके उपयोग के लिए ईश्वर ने सुंदरता की रचना की तो सबसे पहले प्रकृति को रचा, सुंदर और आकर्षक और शीतलता से परिपूर्ण प्रकृति की विशेषता और गुणवत्ता को जानने और उसका सदुपयोग करने के लिए ईश्वर ने मनुष्य को बनाया। मनुष्य ही एक मात्र वह प्राणी है जिस पर सभी जीव-जंतु पशु-पक्षी जीवन को लेकर आश्रित रहते हैं। ऐसे में यदि मनुष्य इनका साथ छोड़ भी देता है तो ये पशु-पक्षी अपना भोजन स्वयं ही ढूंढ लेने में सक्षम होते हैं। परन्तु जब मनुष्य अपने विचारों का दुरुपयोग करता है और खुद को महान दर्शाने की इच्छा से प्रकृति को अपने अनुसार मोड़ता है और ईश्वरीय सौंदर्यता को नष्ट कर अपनी कलाओं का प्रदर्शन करता है उसी क्षण मनुष्य पतन की राह पर आ खड़ा होता है। अपने सुख सुविधा के लिए प्राणी क्या से क्या कर सकता है यह कल्पना कर पाना बहुत ही मुश्किल है। किन्तु जब मनुष्य का लालच इतना अधिक बढ़ जाए कि वह निर्दोष प्राणी का जान लेना भी सूक्ष्म समझने लगे तब मानवता शर्मसार हो जाती है। जब मनुष्य बि

भाग्य

हर व्यक्ति के भाग्य में, कुछ ना कुछ होना लिखा है । कर्मवीर बन, कर्म कर, होने दे जो होना लिखा है ।। भाग्य था जीवित रहे, प्रहलाद कब चिंतन किये । हरि चेष्टा हर भाग्य पर, हरि स्वयं मंथन किये ।। भाग्य था ध्रुव भक्त का, हरि गोद में जीवन खिला । जगमग करे आकाश में, लाखों में ध्रुव तारा मिला ।। भाग्य था माता अहिल्या, श्री राम से मुक्ति मिली । भाग्य था जंगल बसी, सवरी को भी भक्ति मिली ।। क्यूं व्यर्थ चिंता तू करे, भाग्य में क्या कैसा लिखा । परे हो जो मनु बुद्धि से, तू कर्म कुछ ऐसा दिखा ।। कर्म ही प्रधान, कर्म ही महान, कर्म ही है ज्योति तेरा । कर्महीनता त्याग, तू  जवान, छाया नहीं पथ अंधेरा ।। संघर्ष कुछ परिपूर्ण कर, मत सोच अब रोना लिखा है । अडिग,अथक प्रयास कर,सफल भाग्य होना लिखा है ।। हार मत स्वीकार कर, हार ना होना लिखा है । कर्मवीर बन,कर्म कर, होने दे जो होना लिखा है ।। ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

विवाद

बात चाहे जो भी हो बहस उसे विवाद तक लाकर खड़ा कर देती है। और विवाद का परिणाम हमेशा बुरा ही साबित हुआ है, विवाद अपनों को ही निगल जाने का या अपनों से दूर करने का बहुत बड़ा और गलत रास्ता है जिस पर खड़ा व्यक्ति कभी सही लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाता है। यही हुआ उस दिन जोखू और जग्गी दो सगे भाईयों के बीच जोखू - (पत्नी कमला से कहते हुये) यही जग्गिया की शादी बीत जाये किसी तरह फिर को कुछ उधार बाढ़ी रहेगा सबका चुकता कर शान्ती से जीवन बिताना है। कमला - हा सब कुछ तुम्हीं को करना है, और करोगे क्यूं नहीं, जिम्मेदारी जो ओढ़ लिए हो सर पर, मै मानती हूं बड़े हो करना तुम्हारा फर्ज है लेकिन जग्गी को भी  तो समझना चाहिये न की उसका अब जिम्मेदारियों के प्रति आपका साथ चाहिये। जग्गी दोस्तों के साथ बात करते हुए आ ही रहा था कि गांव में झगड़े की आवाज सुन दौड़ पड़ा। वापस आने के बाद जोखू ने कहा तुझे कुछ अपने घर की भी चिंता फिकर है कि नहीं। दिन भर आवारागर्दी ही करता है, कल रिश्ता आने वाला है मै क्या कहूंगा किसी को कि मेरा जग्गी दोस्तों के साथ दिन भर घूमता है। जग्गी - आवारागर्दी मत कहो जोखू भइया मै और मेरे मित्र व्या

मजदूर व्यापार

  मुझमें भी उत्साह भर गया जोश देख मजदूरों में सूंघे महक पसीनो की किस्मत है मगरुरों में हमने वह खड़ी इमारत की जिसमे वो आज सुरक्षित हैं हमने ही उसके छत ढाले और हम ही उससे वंचित हैं हम श्रमिक हुए मजदूर हुए इसमें क्या गलती मेरी थी तू मालिक हुआ मुनाफे का फिर भी क्यों जलती तेरी थी जो रखे तिजोरी में पैसे उसमे कुछ हिस्सा अपना है हरदम श्रमिकों का हनन हुआ अधिकार मिले यह सपना है गली बंद बाजार बंद है बंद जगत संसार है मानवता की कर रहे तस्करी मजदूर बना व्यापार है खच्चर की तरह भरे श्रमिक से पैसे लेकर व्यापार किए ऐसे दुखदाई कलिकाल में मजदूरों पर अत्याचार किए मर गए बिना घर पहुंचे जो क्या सेठ किराया भर देगा भ्रष्टाचारी फौज परिवहन क्या जीवन वापस कर देगा कुचले रौंदे मजदूर गए हर बार हनन गरीबों का रणनीति लगाने घर बैठे दिन रात मनन तरकीबों का हर बार पिसे हैं दीन दुखी उनका ही छिना निवाला है हे ईश्वर साक्षी बन न्याय करो जब ज्योति जले तो उजाला है ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

खुशनुमा जमाना

आज एक फसाना बयां कर दूं पुरानी बातों को फिर से नया कर दूं उन दोस्तों के साथ, वक्त बिताना याद आया एक दूसरे को यूं ही, ठोकर लगाना याद आया वो आम का पेड़, वो पत्थरों का ढेर किसी गुच्छे पर, जम कर निशाना लगाना लगे तो शाबाशी, नहीं तो पीछे हट जाना वो गिल्ली डंडे की बहार, ना तीज ना त्योहार फिर भी मजे करना, सबका मजाक उड़ाना हर कोई हंसमुख था, और खुशनुमा जमाना हर शाम आइस पाइस, होती थी कौन कितना है तेज, आजमाइश होती थी चांदनी रात के उजाले में हम दिखा करते थे एक लालटेन चौतरफा दोस्त, किताब लिखा करते थे साथ जाना साथ आना, वो स्कूल का जमाना आठ आने का चूरन, सब मिलकर खाना हर कोई हंसमुख था, और खुशनुमा जमाना ऐ वक्त फिर मिला दे, उन्हीं बचपन के यारों से जरूरतों में जिंदगी लटकी है, कहीं चारदीवारों से ऐ दोस्तों जोड़ दो अपना नाम, ज्योति के सितारों से मैं आ रहा हूं गांव, यारों तुम भी चले आना कुछ कह रहा पांव, यारों सच सच बताना लौट आएगा क्या, बीता बचपन पुराना जब, हर कोई खुश था, और खुशनुमा जमाना ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

मै तुम्हारा हूं

अपने दिल में, मेरे प्यार का अहसास रखना सारी कायनात एक तरफ, मैं तुम्हारा हूं, बस इतना विश्वास रखना ये वादियां, ये घटायें, ये मौसम, ये हवायें सब कुछ मैं छोड़ दूंगा, बस मेरा दिल अपने पास रखना मैं तुम्हारा हूं, बस इतना विश्वास रखना ये चांदनी रात , सितारों की चमक ये ठंडी हवायें , फूलों की महक बारिश की बूंदे , सहलाये बदन को जलता बदन , बढ़ाये अगन को क़यामत से लड़ने का, अभिलाष रखना मैं तुम्हारा हूं , बस इतना विश्वास रखना मैं तुम्हारा हूं , बस इतना विश्वास रखना ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

अनकहा वक्त

एक रोज तुमने कहा था मुझसे कुछ कहूं तो समझना तो क्या समझना, समझना है तो वो समझो जो अनकहा वक़्त कहे। पढ़ना जानते हो तो इन अनकही आखों को पढ़ लो, महसूस करो अनछुआ लम्हा जो धमनियों में रक्त बहे।। अनसुना कुछ भी ना रहा तेरा अनकहा कुछ भी ना रहा मेरा शराफत की चादर कब तक लपेटेंगे हम जब लम्हों ने कर दिया तेरा - मेरा जब हम अपने पन में जीते थे, एक दूजे की निगाहों से पीते थे। नाश मुक्त होकर भी नशीले थे हम, सच में - तब बड़े रंगीले थे हम। क्यूं कसक अब भी कुछ कहने की है? अभी और कुछ अनकहे रहने की है। अनसुनी बातों पर विश्वास मत करना, शायद आदत अब भी उसी मझधार में बहने की है। ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

भारत माता की जय बोल

रटते- रटते विश्वास बढ़ा है,भारत माता की जय बोल बढ़ते बढ़ते आकाश चढ़ा है,भारत माता की जय बोल सत्य अहिंसा के पथ से, सीख मिली है भक्ती की इंकलाब के नारों से, पहचान मिली है शक्ती की जानों अपने देश की गाथा, आजादी के नारों को प्रतिशोध लक्ष्य में उधम सिंह, गोली मारी हत्यारों को इंसाफ मिला शहीद कुआं को, भारत माता की जय बोल मिट गया आज था धुआं धुआं, भारत माता की जय बोल गुलाम देश आजाद कराने, बच्चा - बच्चा टकराया था सुखदेव,गुरु,आस्फाक़,भगत ने,अपना परचम लहराया था देश की नारी शक्ति को, अंग्रेजो ने शीश झुकाया था रानी लक्ष्मीबाई ने, तलवार स्वयं लहराया था अमर वीरांगना नारी है, भारत माता की जय बोल झांसी की गरिमा भारी है, भारत माता की जय बोल देशभक्ति के कर्तव्यों को, सीखो और सिखाना तुम घर में नौनिहाल बच्चों को, आजादी की बात बताना तुम शास्त्री,तिलक,जवाहर,गांधी, लड़े सत्य की गंगा पर मंगल,आजाद, बोस मिट गए, लहरें जो इसी तिरंगा पर आओ मिलकर सम्मान करें, भारत माता की जय बोल हम देशभक्ति गुणगान करें, भारत माता की जय बोल ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

जीवन कर्ज

कोई जब मुझको सताता है मां की याद आती है। सेठ जब गुस्सा दिखता है मां की याद आती है।। मै जब तन्हा रहता हूं मां की याद आती है। मै जब गुन्हा करता हूं मां की याद आती है।। ये शहर कैसा है, जो सबको भूल बैठा है। टहनियां तोड़ कर अपनी, किनारे फूल बैठा है।। मै जब फूल उठाता हूं मां की याद आती है।। मै जब मुस्कुराता हूं मां की याद आती है।। यहां जब शाम होती है मां की याद आती है।। बिजलियां जब आम होती है मां की याद आती है।। ये शहर कैसा है, की रिश्तों से आगे पैसा है मेरा गांव ही प्यारा है, जहां प्रेम ही पैसा है जब लोग अपने मिलते हैं तो जैसे गांव मिलता है।। जब बिछड़े यार मिलते हैं तो जैसे छांव मिलता है।। कोई जब कहानी सुनाता है मां की याद आती है।। कोई जब गीत गाता है मां की याद आती है।। ये कैसी लगन है कि शहर आना पड़ा है ये कैसी घुटन है कि जहर खाना पड़ा है।। मै शहर से मुंह मोड़ लूंगा इसने छुड़ाया मेरा गांव मै इसे छोड़ दूंगा।। मै तेरे साथ रहूंगा मां तेरा सहारा बन कर तू नदी है मेरे जीवन की मै तुझसे जुड़ा हूं किनारा बनकर मै ज्योति हूं त

कल का भारत

भोर हो चुकी है, दिन निकल रहा है उठ जाओ प्यारे बच्चों, मौसम बदल रहा है चढ़ता है जैसे सूरज, आकाश को समेटे बढ़ जाओ तुम भी पथ पर, विश्वास को समेटे उज्ज्वल भविष्य होगा, आशीष लो बड़ों से तुम ही हो कल का भारत, वज्र बन जड़ों से भारत भी होगा उज्वल, जब वीर तुम बनोगे देखेगी शौर्य दुनिया, गंभीर तुम बनोगे पर्वत समान बल है, हाथों को अपने जानों आंधी के जैसी क्षमता, तुम हार नहीं मानो गहराई है सिंधु जैसी, मिटना नहीं कभी भी लहरों के जैसी दृढ़ता, थकना नहीं कभी भी अलौकिक है ज्योति तुममें, बुझना नहीं कभी भी हिम गिरि समान हो तुम, झुकना नहीं कभी भी उज्वल भविष्य होगा, यही हल निकल रहा है उठ जाओ प्यारे बच्चों, मौसम बदल रहा है ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

आखिरी पैगाम

गर वो मिले तुमसे कभी, तो पूछना इक बात मेरी क्या याद हूं अब भी उन्हें, क्या उनको सताती याद मेरी पूछना क्या याद है, मेरी बातों पर मुस्कुराना पूछना क्या याद है, कुछ भी कह कर खिलखिलाना पूछना क्या याद है, रातों को यूं ही जागना चांद को यूं देखना, जैसे खुद का भागना पूछ लेना ऐ हवा, क्या बाल अब भी उलझते सदा पूछ लेना ऐ हवा, क्या सवाल अब भी सुलझते सदा कहना उनसे आश है, विश्वास है मुझको अभी लौट कर वो आएंगे, मुझसे कहेंगे वो तभी मिस्टर तुम्हारे प्रेम के, प्यासे हैं मेरे रैन सारे राह अब भी तक रहे, प्रेम वाले नैन सारे मुझको बाहों में भरो, कैद खुद हो जाऊंगी तुम बनो पतवार मेरी, नाव मै बन जाऊंगी मै तुम्हारी हूं सदा, सुनने को मै बेचैन हूं उसके बिना मै बस वही, अमावस की काली रैन हूं पूछना बस हे पवन, क्या याद है मेरा कहा तुम गए तो सब गया, बस मै ही अब तन्हा रहा ऐ सुनहरी सी हवा, इक आखिरी पैगाम देना ज्योति उनके लिए जलेगा, उनको ये मेरा नाम देना हो सके तो देख लो, हाल मेरा जो कहोगे कहना कि तुम मेरे रहे हो, और बस मेरे रहोगे ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

शून्य

शून्य है आकार तेरा, फिर भी ढकता सार है। बलहीन मानव तेरे आगे, करता स्वयं पर वार है।। शून्य है मति का चलन, फिर भी कुछ अहंकार है। शून्य है आकार तेरा, फिर भी ढकता सार है।। गगन भी तू अम्बर भी तू, तू नभ और व्योम है। शून्य तू है शिव भी तू, आकाश तू हरि-ओम है।। है विधाता शून्य तुझमें, तू जगत मै व्याप्त है। ज्योति प्रकाशित हो विधाता, मोक्ष तुझसे प्राप्त है।। शून्य ही आकाश है, शून्य ही विश्वाश है। शून्य में है जग बसा, जग में ज्योति प्रकाश है ।। ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

प्रार्थना

विश्व को आगोश में, ले रहा जो कौन है ? क्या विधि का यही विधान है ? या रचना ही उसकी यौन है ? विश्व को आगोश में, ले रहा जो कौन है ? क्या सचमुच विनाश हो रहा ? या कलयुगी परिवेश है, विलख रहा विश्व सारा, क्या मृत्यु का आवेस है ? यदि जग सम्हालता है वही, तो आज वह क्यूं मौन है ? विश्व को आगोश में, ले रहा जो कौन है ? क्या मान कुछ भी नहीं पुष्प का ? या दीप सारे बुझ गये? क्या मंत्रोच्चार बंद हुये ? या धर्म ही अरुझ गये ? क्या सत्य डिगा विश्व भर का ? या खेल कोई हो रहा ? किस मद में है तू हे विधाता ? देख जग यह रो रहा । कोई अछूता नहीं है, तेरे भक्त भी टूटे हुये हैं रूठा है तू इस सार से, या भक्त ही रूठे हुये हैं ? प्रार्थना स्वीकार कर, हृदय से ज्योति कर रहा। तुझमें बसा संसार तेरा, कैसे विलख कर मर रहा।। दान दे जीवन इन्हें, अज्ञान है यह जान कर। विनती करे यह ज्योति तुझसे, दया कर इंसान पर।। मिटा दे सारे रोग जग से, अब तो बस चमत्कार कर। प्रार्थना सुन हे विधाता, सुख-शांति का आविष्कार कर।। ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

जंगली

काट दो जंगल, बना दो रास्ता ना कोई पौध होगा फिर यहां ना कोई जीव जीवन जीयेगा फिर यहां बनों खुद #जंगली, है खुदा का वास्ता काट दो जंगल, बना दो रास्ता।। पीर क्या होती है ? मानव क्या समझ पाएगा कभी ? क्या किसी को प्यास में, पानी पिलाएगा कभी ? जब हाल है ऐसा अभी, आगे लिखूं क्या दास्तां ? बनो खुद #जंगली, है खुदा का वास्ता काट दो जंगल, बना दो रास्ता।। अभी तक तो चल रहा, कुछ ज्ञान से कुछ धर्म से सम्मुख जो आएगी घड़ी, जलती रहेगी गर्म से ना धरा का मान होगा, ना ही प्रभु सम्मान होगा ना ही जीवित होगी वनस्पति, हर जगह अपमान होगा जंगली बन कर मरेगा, मानव ही खुद को त्रास्ता बनो खुद #जंगली, है खुदा का वास्ता काट दो जंगल, बना दो रास्ता।। ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

जल

जल ही जीवन है इस बात में कोई शक नहीं है। क्योंकी धरती पर सभी जीवित प्राणियों को बिना जल के जीवित रह पाना यहां संभव नहीं है। सभी प्राणियों के लिए जल अमृत के समान है। वैसे तो धरती के चारों ओर पानी ही पानी है जो सत्तर प्रतिशत है लेकिन जो पानी हम पीते हैं या उपयोग करते हैं वह मात्र एक प्रतिशत ही है। वह भी हमे प्रकृति द्वारा भेंट किया गया उपहार है। बिना जल के हमारा जीवन विलुप्त हो जाएगा इसलिए हमे जितना हो सके पानी का बचत करना चाहिए। आगे आने वाले दिनों में जल समस्या एक विकराल रूप धारण कर सकती है। ऐसा माना जा रहा है कि तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो पानी के लिए ही होगा। क्योंकी अथाह सागर में जल होने बाद भी हम उसका उपयोग नहीं कर सकते हैं। वो इसलिए क्योंकि समुद्र का जल खारा होता है और जिस पानी का उपयोग हम करते हैं उसके संरक्षण के बारे में हम तनिक भी विचार नहीं करते हैं। जल प्रदूषण - विश्व भर में अनेक ऐसी कंपनी, कारखाने हैं जिसका निकास नालों के द्वारा होकर सीधे - सीधे स्वच्छ तालाब और नदियों में होता है। और पानी को प्रदूषित करता है। प्रदूषित पानी हम नहीं पी सकते इसलिए हमे पानी को प्रदूषण मुक्त बन

शायरी संग्रह

अन्तिम उठ रही जो भावना, कोमल हृदय के आत में हे प्रिये समझो इसे, अब ना मिलो तुम रात में अन्तिम करो अपना मिलन, मिलना कभी जब दिन रहे क्यूं कौंधता है मन हमारा, ऐसी व्यथा किससे कहे तुम भी तो उस पल जल रही थी, बिन अग्नि वाले आग में उठ रही कुछ भावना, कोमल ह्रदय के भाग में अच्छा हुआ अन्तिम हुआ, जो कुछ हुआ अनुराग में अब जब जलेंगे संग जलेंगे, प्रेम वाले आग में अनकहा एक रोज तुमने कहा था मुझसे कुछ कहूं तो समझना तो क्या समझना, समझना है तो वो समझो जो अनकहा वक़्त कहे। पढ़ना जानते हो तो इन अनकही आखों को पढ़ लो, महसूस करो अनछुआ लम्हा जो धमनियों में रक्त बहे।। अनसुना कुछ भी ना रहा तेरा अनकहा कुछ भी ना रहा मेरा शराफत की चादर कब तक लपेटेंगे हम जब लम्हों ने कर दिया तेरा - मेरा जब हम अपने पन में जीते थे, एक दूजे की निगाहों से पीते थे। नाश मुक्त होकर भी नशीले थे हम, सच में - तब बड़े रंगीले थे हम। क्यूं कसक अब भी कुछ कहने की है? अभी और कुछ अनकहे रहने की है। अनसुनी बातों पर विश्वास मत करना, शायद आदत अब भी उसी मझधार में बहने की है। सजावटी ठंडी हवाओं में भीनी भी

राम ही प्रहार हैं

चित्र भी विचित्र लगे, रोग शक्तिमान है। मनुष्यता को भंग किया, शहर वो वुहान है।। प्रकृति छेड़ता गया, जीव तोड़ता गया। स्वयं पर घमंड किया, मनुष्य ही महान है।। चित्र भी विचित्र लगे, रोग शक्तिमान है।। मनुष्यों के रोग से, मनुष्य डगमगा रहे। हो रही निशा जहां, विद्युत जगमगा रहे।। औषधि विफल सबके, जो भी ज्ञानवान हैं। चित्र भी विचित्र लगे, रोग शक्तिमान है।। मंदिरों के द्वार सभी, बंद खुद करा दिया । मानवों के जीत में, खुद को भी हरा दिया ।। दानवी प्रहार हुआ, बुद्धि भ्रांतिमान है। चित्र भी विचित्र लगे, रोग शक्तिमान है।। सरल राम - राम जपो, राम खेवनहार हैं। कोरोना विषाणु मिटे, राम ही प्रहार हैं।। विधि का ये विधान है, कि ज्योति दिव्यमान है। चित्र भी विचित्र लगे, रोग शक्तिमान है।। ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

स्वाति नक्षत्र

बसंत बहार वर्षा ऋतु प्यारी , हरी - भरी बारी फुलवारी। झूले पड़े नीम की डारी , सब पर भारी प्रिय याद तुम्हारी।। दमके - दामिनी मेघ गरजते , सारा - संसार मुग्ध हो घूमे। जहां प्यार रहे जनम- जनम तक , गगन - धारा की रज - रज चूमे।। धरती पर फैले तालाब बहुत , चाहे वह कितना भी निर्मल हो। उसकी प्यास बुझेगी कैसे , जिसके प्यास में नभ जल हो।। प्रकृति रूप छवि सुंदर होगा , स्वाति नक्षत्र जब कल होगा। ऐसे भारत की महिमा पर , क्यों ना मन विह्वल होगा। प्रकृति रूप छवि सुंदर होगा , स्वाति नक्षत्र जब कल होगा।। ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

अम्मा

एक ख्वाब सजाया था मैंने, अम्मा का दुःख दूर करूँगा मै।   एक कसम उठाई थी मैंने, अम्मा का कष्ट हरूँगा मै।। जो बीता खेल लड़कपन का, वो ख्वाब मिटाई रातों में।  जिस तरह बढ़ी दुनिया मेरी, वो कसम भुलाई बातों में।।  अपनी खुशियों की खातिर, सबका बलिदान करूँगा मै।  एक ख्वाब सजाया था मैंने, अम्मा का कष्ट हरूँगा मै।। पढ़ने जाता जब विद्यालय, गुरुजन को शीश झुकाता था।   यदि नाम लिया गुरु ने मेरा, मै मन ही मन इतराता था।। वादा था उनसे भी ऐसा, जग में नाम करूँगा मै।  एक ख्वाब सजाया था मैंने, अम्मा का कष्ट हरूँगा मै।। उनके भी वादे भूल गया, अब याद नहीं है नाम उनका।  सद्गुण की शिक्षा लुप्त हुई, लुप्त हुआ परिणाम उनका।।  बचपन की यारी जिन्दा है, छुट्टी के किसी महीनें में।  मिलता नहीं सुकूँ पल भर, परिश्रम के आज पसीने में।। मित्रों से मिलने की कोशिश, फिर से भरपूर करूँगा मै।   एक ख्वाब सजाया था मैंने, अम्मा का कष्ट हरूँगा मै।।  मै किया बसेरा शहरों में, गांव से रिश्ता छूट गया।  जो ख्वाब दिखाई थी मइया, वो ख्वाब कहीं से टूट गया।।  उन रिश्ते, नाते ख्वाबों को, फिर से स

शहीद पुत्र की आश

काश लहू मेरा भी वतन के काम आ जाता। क्या गम था, जो शहीदों में नाम आ जाता।।  शरहदों से आवाज आयी , हो गया अँधेरा दीपक जलाओ  कोई है जो कह रहा संध्या हुई, पुत्र अब तो लौट आओ।।  कल फिर होगी सुबह, दिवाकर तेज हो जायेगा  ओज तुम भरना रगो में, शत्रु तब झुक जायेगा  क्यूँ व्यर्थ चिंतित हो पुत्र ? अब तो तनिक मुस्कुराओ  कोई है जो कह रहा संध्या हुई, पुत्र अब तो लौट आओ।।  आज तेरे तात का, मन बहुत मचल रहा  याद तेरी आ रही, ह्रदय भी अब पिघल रहा  वायु के झोंके से कह कर, सन्देश तुम अपना पठाओ  कोई है जो कह रहा संध्या हुई, पुत्र अब तो लौट आओ।।  सहसा कोलाहल मच गया, गाँव के बाजार में  वाहनों की भीड़ थी, जनशक्ति के सरकार में  माँ कल्पना कर कह उठी, लाल मेरा आ रहा  खुशियों में हवा पागल हुई, या पुष्प वो महका रहा  थाल लाओ आरती की, स्वागत में कोई गीत गाओ  कोई है जो कह रहा संध्या हुई, पुत्र अब तो लौट आओ।।  शरहदों के वीर थे, कुछ थी पुलिस की टोलियाँ  कुछ हाँथ में झण्डा लिये, कुछ हाँथ में थी गोलियाँ  देख सबको दंग हुई, भयभीत माँ के पाँव थे  आकाश बादल छा रहे, क्षण ध

मन के हारे हार, मन के जीते जीत

ईश्वर की कृपा से अगर आपका शरीर क्रियाशील है तो फिर आपको यह कभी नहीं सोचना चाहिए की यह कार्य बहुत कठिन है अथवा यह मुझसे नहीं होगा। आधुनिक युग में मनुष्य ही मात्र वह प्राणी है जो संसार को स्वचलित बनाये रख सकता है। यदि आप किसी कार्यालय में नौकरी करने जाते हैं तो आप वहाँ के बारे में कुछ नहीं जानते रहते हैं, लेकिन मन में यह लगन बनी रहती है की मुझे यह काम करना है तो आप उसे गलत करते हुये भी सही ढंग से करने के प्रयास में लगे रहते हैं और आखिर कार आप उस कार्य में सफल भी हो जाते हैं। सफल होने के लिए आपके विचार आपका मस्तिष्क एक जुट होकर खुद पर विश्वास करते हुये काम करना अति आवश्यक है।  कई बार ऐसा होता है की हम जिंदगी के ऊपर सब कुछ निर्भर कर लेते हैं कि जिंदगी जहाँ चाहे ले जाये, या जो भाग्य में लिखा होगा वही होगा।  इस तरह की कल्पनायें करना भी कायरता कहलाती है, और अगर आपको खुद पर विश्वास है तो आप कायर नहीं हो सकते।  एक बार की बात है प्राचीन काल के राजा चन्द्रगुप्त एक समय मन से हार मान गए थे कि खुद उनकी सेनाओं में विद्रोह हो गया है और वो कुछ नही कर सकते, उस समय उनके मन में बस एक ही बात चल रही थी

प्रभात

चिड़ियों के चहचहाने की आवाज अब आने लगी  जैसे प्रभात हो रहा इस भांति वो जगाने लगी।  सूर्य की किरणों के साथ विश्वास रग में आ रहा  उत्साह संग उमंग रूपी भाव सब पे छा रहा।  भोर बीती दिन चढ़ा अब सूर्य शक्तिमान है  पितु-मातु, गुरु की वंदना करे जो ज्ञानवान है।  आशीष का भागी बने सहयोग सबका कीजिए  पाप-प्याला त्याग कर पुण्य रस को पीजिए।  कर्म जैसा भी करो परिणाम होगा नेत्र में  सद्गुण रहा यदि आप में तो नाम होगा क्षेत्र में।  सीखना है यदि तुम्हे लहरों से जीवन सीख लो  संघर्ष मय जीवन जियो मत किसी से भीख लो।  सीख लो कुछ पर्वतों से जो धूप, वर्षा सब सहे  आँधियों में भी अडिग रहे अपनी व्यथा वो कब कहे।  पौधों से भी कुछ सीख लो फल रखते नहीं अपने लिए  छाया करे निःस्वार्थ वो टहनियों के संग सपने लिए।  सीख लो कुछ ज्योति से अंधेरों को चीरता चले  अमावसी निशा मिटे नन्हा सा जब दिया जले।  विश्वास अब आया रगो में भाव सब पे छा गया  उत्साह संग उमंग लिए सूर्य नभ में आ गया।  !! ज्योति प्रकाश राय !!

होली 2020

आप सभी को रंगो और उमंगो से भरे त्यौहार , होली की ढेर सारी शुभकामनायें  होलिका दहन हुई, प्रह्लाद अग्नि बीच रहे ! भक्त वो मिटे कहाँ, प्रभू जिसे सींच रहे !! ध्रुव को तार-तार किया, किसी अहंकार ने ॐ हरी-हरी तब, लगे ध्रुव पुकारने प्याला हरी नाम पिये, बैठे धरा बीच रहे ! भक्त वो मिटे कहाँ, प्रभू जिसे सींच रहे !! विष्णु ज्ञान राग भरे, नभ में जगमगा रहे मय के अहंकार में, मनुष्य डगमगा रहे प्रगति सीधे हाँथ में, आड़े हाँथ खींच रहे ! भक्त वो मिटे कहाँ, प्रभू जिसे सींच रहे !! आओ सभी भस्म करें, अपने-अपने पाप को ज्योति प्रज्वलित करें, ज्योति से मिलाप को आज फिर प्रमाण मिला, सत्य सबके बीच रहे ! भक्त वो मिटे कहाँ, प्रभू जिसे सींच रहे !!  !! ज्योति प्रकाश राय !!

रिश्ते की परिभाषा

जहाँ प्रेम की अभिलाषा है, वहीं रिश्तों की आशा है।  जहाँ मर्यादा बड़ों को सम्मान देती है  वहीं मानवता सबको ज्ञान देती है  रिश्तों की अपनी एक अलग पहचान होती है।  इसीलिए रिश्तों की डोर सबसे महान होती है।।  भाई - बहन का रिश्ता हो, या माँ - बेटे का नाता हो।  रिश्ता उसी का खूबसूरत है, जो हर पल मुस्कुराता हो।।  भावनाएं जब हो दिल से रिश्ते निभाने की, जरुरत नहीं पड़ती तब पास आने की।  मित्र की मित्रता हो, या अपनों का अपनत्व हो।  जहाँ बात रिश्ते की आये, सबका महत्व हो।।  सूरज का चाँद से हो, या हमारा आपसे हो, हर रिश्ते में एक ज्योति है, एक जिज्ञासा है।  जहाँ हम और आप हैं, वहीं रिश्ता है, रिश्ते की परिभाषा है।।  !! ज्योति प्रकाश राय !!

मेरी माँ की ममता ने संसार बना कर रक्खा है।

मेरी माँ की ममता ने संसार बना कर रक्खा है।  जिस बंधन में पले - बढ़े वो परिवार बना कर रक्खा है।  मेरी माँ की ममता ने संसार बना कर रक्खा है।  उसके आँचल की छाया ही उस नभ-मण्डल से प्यारी लगती है।  दिन-रात करे वो काम भले पर राजदुलारी लगती है।  मेरे खानो की थाली का जूठा भी उसने चक्खा है।  मेरी माँ की ममता ने संसार बना कर रक्खा है।  सावन - भादों की बारिश हो या पूस - माघ का मौसम हो।  या गर्मी जेष्ठ माह की हो या कष्टों में जीवन हो।  मुझ पर आंच न आने पाए इस तरह छुपा कर रक्खा है।  मेरी माँ की ममता ने संसार बना कर रक्खा है।  उस माँ की छाया बन कर आयी बहन हमारी है।  जिसके साथ लड़ूँ - झगड़ूँ पर बातें उसकी प्यारी हैं।  मैंने उसको जीवन का सरकार बना कर रक्खा है।  मेरी माँ की ममता ने संसार बना कर रक्खा है।  देख - भाल करती सबका माँ का हाथ बटाती है।  सुन लेती डाँट बिना गलती के कभी न वह गुस्साती है।  ऐसी सरल - सहज है बहना घर - द्वार सजा कर रक्खा है।  मेरी माँ की ममता ने संसार बना कर रक्खा है।  तौलों न खुशियाँ रुपयों से माँ की ममता मत छीनों।  दे सको अगर कुछ पल दे दो बहनो का रिश्ता मत छ