शून्य है आकार तेरा, फिर भी ढकता सार है।
बलहीन मानव तेरे आगे, करता स्वयं पर वार है।।
शून्य है मति का चलन, फिर भी कुछ अहंकार है।
शून्य है आकार तेरा, फिर भी ढकता सार है।।
बलहीन मानव तेरे आगे, करता स्वयं पर वार है।।
शून्य है मति का चलन, फिर भी कुछ अहंकार है।
शून्य है आकार तेरा, फिर भी ढकता सार है।।
गगन भी तू अम्बर भी तू, तू नभ और व्योम है।
शून्य तू है शिव भी तू, आकाश तू हरि-ओम है।।
है विधाता शून्य तुझमें, तू जगत मै व्याप्त है।
ज्योति प्रकाशित हो विधाता, मोक्ष तुझसे प्राप्त है।।
शून्य तू है शिव भी तू, आकाश तू हरि-ओम है।।
है विधाता शून्य तुझमें, तू जगत मै व्याप्त है।
ज्योति प्रकाशित हो विधाता, मोक्ष तुझसे प्राप्त है।।
शून्य ही आकाश है, शून्य ही विश्वाश है।
शून्य में है जग बसा, जग में ज्योति प्रकाश है ।।
।। ज्योति प्रकाश राय ।।
।। ज्योति प्रकाश राय ।।
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