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Showing posts from April, 2020

जीवन कर्ज

कोई जब मुझको सताता है मां की याद आती है। सेठ जब गुस्सा दिखता है मां की याद आती है।। मै जब तन्हा रहता हूं मां की याद आती है। मै जब गुन्हा करता हूं मां की याद आती है।। ये शहर कैसा है, जो सबको भूल बैठा है। टहनियां तोड़ कर अपनी, किनारे फूल बैठा है।। मै जब फूल उठाता हूं मां की याद आती है।। मै जब मुस्कुराता हूं मां की याद आती है।। यहां जब शाम होती है मां की याद आती है।। बिजलियां जब आम होती है मां की याद आती है।। ये शहर कैसा है, की रिश्तों से आगे पैसा है मेरा गांव ही प्यारा है, जहां प्रेम ही पैसा है जब लोग अपने मिलते हैं तो जैसे गांव मिलता है।। जब बिछड़े यार मिलते हैं तो जैसे छांव मिलता है।। कोई जब कहानी सुनाता है मां की याद आती है।। कोई जब गीत गाता है मां की याद आती है।। ये कैसी लगन है कि शहर आना पड़ा है ये कैसी घुटन है कि जहर खाना पड़ा है।। मै शहर से मुंह मोड़ लूंगा इसने छुड़ाया मेरा गांव मै इसे छोड़ दूंगा।। मै तेरे साथ रहूंगा मां तेरा सहारा बन कर तू नदी है मेरे जीवन की मै तुझसे जुड़ा हूं किनारा बनकर मै ज्योति हूं त

कल का भारत

भोर हो चुकी है, दिन निकल रहा है उठ जाओ प्यारे बच्चों, मौसम बदल रहा है चढ़ता है जैसे सूरज, आकाश को समेटे बढ़ जाओ तुम भी पथ पर, विश्वास को समेटे उज्ज्वल भविष्य होगा, आशीष लो बड़ों से तुम ही हो कल का भारत, वज्र बन जड़ों से भारत भी होगा उज्वल, जब वीर तुम बनोगे देखेगी शौर्य दुनिया, गंभीर तुम बनोगे पर्वत समान बल है, हाथों को अपने जानों आंधी के जैसी क्षमता, तुम हार नहीं मानो गहराई है सिंधु जैसी, मिटना नहीं कभी भी लहरों के जैसी दृढ़ता, थकना नहीं कभी भी अलौकिक है ज्योति तुममें, बुझना नहीं कभी भी हिम गिरि समान हो तुम, झुकना नहीं कभी भी उज्वल भविष्य होगा, यही हल निकल रहा है उठ जाओ प्यारे बच्चों, मौसम बदल रहा है ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

आखिरी पैगाम

गर वो मिले तुमसे कभी, तो पूछना इक बात मेरी क्या याद हूं अब भी उन्हें, क्या उनको सताती याद मेरी पूछना क्या याद है, मेरी बातों पर मुस्कुराना पूछना क्या याद है, कुछ भी कह कर खिलखिलाना पूछना क्या याद है, रातों को यूं ही जागना चांद को यूं देखना, जैसे खुद का भागना पूछ लेना ऐ हवा, क्या बाल अब भी उलझते सदा पूछ लेना ऐ हवा, क्या सवाल अब भी सुलझते सदा कहना उनसे आश है, विश्वास है मुझको अभी लौट कर वो आएंगे, मुझसे कहेंगे वो तभी मिस्टर तुम्हारे प्रेम के, प्यासे हैं मेरे रैन सारे राह अब भी तक रहे, प्रेम वाले नैन सारे मुझको बाहों में भरो, कैद खुद हो जाऊंगी तुम बनो पतवार मेरी, नाव मै बन जाऊंगी मै तुम्हारी हूं सदा, सुनने को मै बेचैन हूं उसके बिना मै बस वही, अमावस की काली रैन हूं पूछना बस हे पवन, क्या याद है मेरा कहा तुम गए तो सब गया, बस मै ही अब तन्हा रहा ऐ सुनहरी सी हवा, इक आखिरी पैगाम देना ज्योति उनके लिए जलेगा, उनको ये मेरा नाम देना हो सके तो देख लो, हाल मेरा जो कहोगे कहना कि तुम मेरे रहे हो, और बस मेरे रहोगे ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

शून्य

शून्य है आकार तेरा, फिर भी ढकता सार है। बलहीन मानव तेरे आगे, करता स्वयं पर वार है।। शून्य है मति का चलन, फिर भी कुछ अहंकार है। शून्य है आकार तेरा, फिर भी ढकता सार है।। गगन भी तू अम्बर भी तू, तू नभ और व्योम है। शून्य तू है शिव भी तू, आकाश तू हरि-ओम है।। है विधाता शून्य तुझमें, तू जगत मै व्याप्त है। ज्योति प्रकाशित हो विधाता, मोक्ष तुझसे प्राप्त है।। शून्य ही आकाश है, शून्य ही विश्वाश है। शून्य में है जग बसा, जग में ज्योति प्रकाश है ।। ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

प्रार्थना

विश्व को आगोश में, ले रहा जो कौन है ? क्या विधि का यही विधान है ? या रचना ही उसकी यौन है ? विश्व को आगोश में, ले रहा जो कौन है ? क्या सचमुच विनाश हो रहा ? या कलयुगी परिवेश है, विलख रहा विश्व सारा, क्या मृत्यु का आवेस है ? यदि जग सम्हालता है वही, तो आज वह क्यूं मौन है ? विश्व को आगोश में, ले रहा जो कौन है ? क्या मान कुछ भी नहीं पुष्प का ? या दीप सारे बुझ गये? क्या मंत्रोच्चार बंद हुये ? या धर्म ही अरुझ गये ? क्या सत्य डिगा विश्व भर का ? या खेल कोई हो रहा ? किस मद में है तू हे विधाता ? देख जग यह रो रहा । कोई अछूता नहीं है, तेरे भक्त भी टूटे हुये हैं रूठा है तू इस सार से, या भक्त ही रूठे हुये हैं ? प्रार्थना स्वीकार कर, हृदय से ज्योति कर रहा। तुझमें बसा संसार तेरा, कैसे विलख कर मर रहा।। दान दे जीवन इन्हें, अज्ञान है यह जान कर। विनती करे यह ज्योति तुझसे, दया कर इंसान पर।। मिटा दे सारे रोग जग से, अब तो बस चमत्कार कर। प्रार्थना सुन हे विधाता, सुख-शांति का आविष्कार कर।। ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

जंगली

काट दो जंगल, बना दो रास्ता ना कोई पौध होगा फिर यहां ना कोई जीव जीवन जीयेगा फिर यहां बनों खुद #जंगली, है खुदा का वास्ता काट दो जंगल, बना दो रास्ता।। पीर क्या होती है ? मानव क्या समझ पाएगा कभी ? क्या किसी को प्यास में, पानी पिलाएगा कभी ? जब हाल है ऐसा अभी, आगे लिखूं क्या दास्तां ? बनो खुद #जंगली, है खुदा का वास्ता काट दो जंगल, बना दो रास्ता।। अभी तक तो चल रहा, कुछ ज्ञान से कुछ धर्म से सम्मुख जो आएगी घड़ी, जलती रहेगी गर्म से ना धरा का मान होगा, ना ही प्रभु सम्मान होगा ना ही जीवित होगी वनस्पति, हर जगह अपमान होगा जंगली बन कर मरेगा, मानव ही खुद को त्रास्ता बनो खुद #जंगली, है खुदा का वास्ता काट दो जंगल, बना दो रास्ता।। ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

जल

जल ही जीवन है इस बात में कोई शक नहीं है। क्योंकी धरती पर सभी जीवित प्राणियों को बिना जल के जीवित रह पाना यहां संभव नहीं है। सभी प्राणियों के लिए जल अमृत के समान है। वैसे तो धरती के चारों ओर पानी ही पानी है जो सत्तर प्रतिशत है लेकिन जो पानी हम पीते हैं या उपयोग करते हैं वह मात्र एक प्रतिशत ही है। वह भी हमे प्रकृति द्वारा भेंट किया गया उपहार है। बिना जल के हमारा जीवन विलुप्त हो जाएगा इसलिए हमे जितना हो सके पानी का बचत करना चाहिए। आगे आने वाले दिनों में जल समस्या एक विकराल रूप धारण कर सकती है। ऐसा माना जा रहा है कि तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो पानी के लिए ही होगा। क्योंकी अथाह सागर में जल होने बाद भी हम उसका उपयोग नहीं कर सकते हैं। वो इसलिए क्योंकि समुद्र का जल खारा होता है और जिस पानी का उपयोग हम करते हैं उसके संरक्षण के बारे में हम तनिक भी विचार नहीं करते हैं। जल प्रदूषण - विश्व भर में अनेक ऐसी कंपनी, कारखाने हैं जिसका निकास नालों के द्वारा होकर सीधे - सीधे स्वच्छ तालाब और नदियों में होता है। और पानी को प्रदूषित करता है। प्रदूषित पानी हम नहीं पी सकते इसलिए हमे पानी को प्रदूषण मुक्त बन

शायरी संग्रह

अन्तिम उठ रही जो भावना, कोमल हृदय के आत में हे प्रिये समझो इसे, अब ना मिलो तुम रात में अन्तिम करो अपना मिलन, मिलना कभी जब दिन रहे क्यूं कौंधता है मन हमारा, ऐसी व्यथा किससे कहे तुम भी तो उस पल जल रही थी, बिन अग्नि वाले आग में उठ रही कुछ भावना, कोमल ह्रदय के भाग में अच्छा हुआ अन्तिम हुआ, जो कुछ हुआ अनुराग में अब जब जलेंगे संग जलेंगे, प्रेम वाले आग में अनकहा एक रोज तुमने कहा था मुझसे कुछ कहूं तो समझना तो क्या समझना, समझना है तो वो समझो जो अनकहा वक़्त कहे। पढ़ना जानते हो तो इन अनकही आखों को पढ़ लो, महसूस करो अनछुआ लम्हा जो धमनियों में रक्त बहे।। अनसुना कुछ भी ना रहा तेरा अनकहा कुछ भी ना रहा मेरा शराफत की चादर कब तक लपेटेंगे हम जब लम्हों ने कर दिया तेरा - मेरा जब हम अपने पन में जीते थे, एक दूजे की निगाहों से पीते थे। नाश मुक्त होकर भी नशीले थे हम, सच में - तब बड़े रंगीले थे हम। क्यूं कसक अब भी कुछ कहने की है? अभी और कुछ अनकहे रहने की है। अनसुनी बातों पर विश्वास मत करना, शायद आदत अब भी उसी मझधार में बहने की है। सजावटी ठंडी हवाओं में भीनी भी