Skip to main content

Posts

Showing posts from October, 2022

दंगा

 अब कौन मौन रह सकता है किसका रक्त नही डोलेगा तू ही बतला ऐ हिंदुस्तां क्या अब भी भक्त नही बोलेगा धर्म भक्त और देश भक्त दोनों ने मन में यह ठाना है अपना अस्तित्व न गिर जाए मिल कर हमे बचाना है क्या संविधान के नियमों का पालन हमको ही करना है क्या एक गाल खा कर थप्पड़ दूजा भी आगे करना है चुप चाप सहें और सुने गालियाँ क्या यही धर्म हमारा है आगे बढ़ कर रण लो वीरों दुश्मन हमको ललकारा है उठने लगे हैं हाथ जहा भी उन हाथों को वही मरोड़ो तुम घर में रह कर जो आँख दिखाये उसे नही अब छोड़ो तुम ध्यान करो माँ काली का शिव के त्रिशूल का ध्यान करो माथे तिलक धैर्य व साहस खुद को फिर से बलवान करो सुलग रहा है देश जिधर उस ओर मेघ बन छा जाओ हाहाकार मचा कर पल में शत्रु शक्ति को खा जाओ चहुँ ओर क्रूरता जो फैली अपने ही अपनो से हारे हैं देखो सब वही दरिंदे हैं जो भारत पर पत्थर मारे हैं धैर्य से ऊपर उठकर अब सरदार पटेल सा जोश भरो जय जय श्री राम के नारों से दुश्मन को तुम बेहोश करो गुंजायमान हो नभ मंडल हनुमत हुन्कार भरो वीरों जिस ओर बढ़ो लहरा दो भगवा बैरी संहार करो वीरों जन्नत मिल जाए इन्हे अभी राणा प्रताप सा बढ़ जाओ लेकर भाला औ

पर्यावरण ( प्रकृति)

 उस दिन सब जगह पट जाएगा जिस दिन हर वृक्ष कट जाएगा क्या इस जग को वही देखना है या जीवों को मार कर फेकना है ना रहेंगे पेड़ ना बहेगी ठंडी हवा हर तरफ दिखेगी बस गंदी फिजा सोचो क्या दुनिया का नजारा होगा हर तरफ हर आदमी बेसहारा होगा यह प्रकृति है इसमें जीवन समाया है इसी ने सजीवों का यौवन बनाया है प्रकृति से ठिठोली भारी पड़ रहा है भले क्यूँ ना इंसान आगे बढ़ रहा है स्वार्थ में हर व्यक्ति ऐसे घुल चुका है जैसे डाली में हर फूल खिल चुका है अब कभी न मिलने की जरूरत होगी बार बार ना खिलने की जरूरत होगी जब तेज आधियों में सब खो जाएगा तब मनुष्य जो किया सब याद आएगा जब पर्यावरण बचाना सरल नहीं होगा तब इन प्रश्नों का कोई हल नहीं होगा कभी तेज बारिश तो कभी धूप होगी तब हँसी वादियाँ बेहद कुरूप होगी न हो भविष्य ऐसा अपना हो या बेगाना लगा कर पेड़ पौधा प्रकृति को है बचाना ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश

गजल

 काव्योदय रदीफ़ - कर लिया मैंने ग़जल इन निगाहों में एक ख़्वाब भर लिया मैंने ख़ुद से ही ख़ुद का हिसाब कर लिया मैंने उनको देखे बिन तब दिन नही गुजरता था अब तस्वीरों को ही गुलाब कर लिया मैंने एक प्यारा सा चेहरा दिल में बसाये फिरता हू यूँ चेहरे को दिल-ए-मेहताब कर लिया मैंने ये दुनिया शिकायती आकाओं से भरी हुई है इसी लिए दिल-ए-आफ़ताब कर लिया मैंने लोग दौलत से हैं या दौलत है लोगों के लिए इसी तमन्ना में ख़ुद से हिजाब कर लिया मैंने अब ना रही कोई ख़्वाहिश ना आरजू है कोई मोहब्बत-ए-दौर में भी नका़ब कर लिया मैंने अब ना देखो ना दिखाओ ज्योति ज़ख़्मों को यूँ ही नहीं नाम अपने ख़िताब कर लिया मैंने ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश

पुरुष

 आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है बनकर कठोर हृदय वाला कठिन समय से टकराता है मार समय की कौन है सहता कौन धरा पर ऐसा है सोच सोच कर कठिन परिस्थिति ईश्वर गढ़ता जाता है आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है आँख भले ही नम हो जाए गिरता नही निगाहों से आहे भर भर सहता सब कुछ लड़ता स्वयं गुनाहों से आँच न आए परिजन पर वह झुक कर शीश उठाता है आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है देख परिस्थिति को अपने अर्जुन थे सब कुछ छोड़ रहे बन कर महान फिर से माधव पुरुष धर्म से जोड़ रहे विचलित मन से आगे होकर पुरुष ही चक्र उठाता है आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है वह भी एक पुरुष ही था जो दानवीर कहलाया है न्यौछावर कर प्राण स्वयं पुरुषों का मान बढ़ाया है हुआ भूमिगत जितना पहिया वह उतना उठता जाता है आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है ऊँचे - ऊँचे शिखरों के अंदर जो राह बना डाले जिनकी तलवारें तेज चलें हिम्मत से चलते थे भाले वह वीर शिवा रण लेकर बैरी को मार भगाता है आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है कभी काटता समय को अपने कभी समय कटवाता है कभी पाटता कर्ज को

जीवन और प्रेम

जहाँ है प्रेम की गंगा  वहीं जीवन की धारा है जिसे रब ने  संवारा है  उसे किसने बिगारा है चलो अविरल बहाएँ हम जहां में प्रेम की गंगा जहाँ हो प्यार की पूजा वहीं सबका गुजारा है करो नफ़रत  करो पूजा ये दुनिया रीत से चलती मुसाफ़िर तुम मुसाफ़िर हम उमर है प्रीत में पलती किसी की चाह में इतना नही होना कभी भी गुम खुदा की देन है जीवन नही मागे से फिर मिलती जुदा होकर भी तुम अक्सर मेरे ख्वाबों में आते हो जो गाये  गीत थे  संग में  वही तुम गुनगुनाते हो सजा कर राग जीवन का चले जाना नही अच्छा जो सबसे हम बताते हैं वो सबसे तुम छुपाते हो किसी को पा नही सकते किसी के हो ही जाओ तुम समर्पण  भाव है  ईश्वर  मोहब्बत भी निभाओ तुम नही देखो  मुनाफा  क्या है  जीवन - प्रेम में  यारों बनो सागर  रहो शीतल  मधुर जीवन बिताओ तुम है जीवन प्रेम का दर्पण यहाँ खुद को उतारो तुम जो रूठे हैं अभी तुमसे उन्हें फिर से पुकारो तुम ये जीवन  प्रेम का  प्यासा इसे तन्हा नही जीना जला कर ज्योति अंतर्मन सभी जीवन संवारो तुम ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश