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Showing posts from 2021

रास्ट्र गीत

राष्ट्र गीत ऐ हिन्द के वीर जवानों अपनी ताकत को पहचानों आ जाए अगर बैरी रण में तुम हार कभी मत मानों ऐ हिंद के वीर जवानों ऐ हिंद के वीर जवानों जिसे ओढ़ कर चढ़े भगत सिंह फाँसी वाले फंदे पर कोशिश करना आंच न आए विजयी विश्व तिरंगे पर तुममें कितनी ताकत है तुम आज बता दो दीवानों ऐ हिंद के वीर जवानों ऐ हिंद के वीर जवानों छोटे बच्चे जब जब बोले भारत मां का जयकारा अपना भारत ऐसे चमके जैसे चमके ध्रुव का तारा धरा गगन को एक करो तुम बो कर बीज किसानों ऐ हिंद के वीर जवानों ऐ हिंद के वीर जवानों देखे दुनिया शौर्य वतन का यह अपनी अभिलाषा हो शान कभी ना झुकने पाए हर मन में यह आशा हो है अपना अनमोल तिरंगा इसको सब पहचानों ऐ हिंद के वीर जवानों ऐ हिंद के वीर जवानों जहाँ हिमालय शीश उठाए अम्बर तक चढ़ जाता है ऐसे भारत का विचार अपने संस्कृति पर इतराता है कहे ज्योति तुम भी सीखो ऐ दुनिया भर के इंसानों ऐ हिंद के वीर जवानों ऐ हिंद के वीर जवानों ज्योति प्रकाश राय (भदोही, उत्तर प्रदेश) 

प्रश्न

 चार महीने की ये मोहब्बत, फिर बंजर कर के जाना सुन बादल तू ही बतला धरती पर क्या आरोप लगाना तेरे विरह की पीड़ा में किस तरह जिस्म झुलसाते हैं प्रेम किए जो नदी - नहर सब तुझमें सिमटते जाते हैं तेरे प्रेम के कारण ही दुनिया को अपनी गहराई बताना सुन बादल तू ही बतला धरती पर क्या आरोप लगाना काले रंग की क्या शोभा जो पक्षी भी पागल फिरते हैं बोले पपीहा मोर नाचते वन उपवन हिलते डुलते हैं सुन सबकी अभिलाषा सबके हृदय अनुराग जगाना सुन बादल तू ही बतला धरती पर क्या आरोप लगाना क्या है तेरी आवाजों में क्यूँ सुनकर बेचैनी बढ़ती है क्यूँ विरहन पिय बिन पागल हो करवट खूब बदलती है तन मन की और रन वन की काम है तेरा आग बुझाना सुन बादल तू ही बतला धरती पर क्या आरोप लगाना बस तेरे एक बूँद को पा कर कैसे उपवन खिलता है आ देख कभी इस धरती पर कैसे जीवन मिलता है स्वार्थ से तू आता जाता फिर क्या तुझसे प्रीत लगाना सुन बादल तू ही बतला धरती पर क्या आरोप लगाना ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश

भोजपुरी गीत

लड़का जाने कवने कलम से भगिया लिखाइल मिल के हम तोहरा से मिल नाही पाइल हमारा पे तोहरा के केतना गुमान रहल जाने न जाने दिल केतना नादान रहल तोहरे जिनगिया के बिगारि हम आईल मिल के हम तोहरा से मिल नाही पाइल याद जब आवेला तोहरा मिलन हो आँख भरि जाला करी का जतन हो लागे ला अइसन जईसे नदी बा समाइल मिल के हम तोहरा से मिल नाही पाइल खुशिया मिले तोहके हमे मिली गम हो राम करे तोहरा पे अइसन करम हो गइल नाही हमसे पिरितीय निभाईल मिल के हम तोहरा से मिल नाही पाइल अँखिया से तोहरे न आवे कभो पानी आज खत्म कइदेब आपन जिंदगानी फिर से सुरतिया न तोहके देखाइल मिल के हम तोहरा से मिल नाही पाइल ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश लड़की तोहरा के देखले से मिले ला सुकून हो बिना तोहरे देहियाँ मे खून नाही खून हो तोहरे ना रहले से हमसे ना रहाइल मिल के हम तोहरा से मिल नाही पाइल

बेटियां

प्रकृति संचार बेटियां सृष्टि अधिकार बेटियां नूतन आकार बेटियां प्रीत स्वीकार बेटियां जब गूंजती हैं किलकारियां बेटियों के रूप में मन मुग्ध होते हैं सभी देख भवानी स्वरूप में खिलती कली हैं बेटियां बगिया बहार बेटियां चंचल गली हैं बेटियां निर्मल विकार बेटियां बेटियां ही जग सृष्टि हैं बेटियां ही हिय दृष्टि हैं न ही किसी मन की व्यथा ना ही अनाशिष्ट हैं घर से विदा होती हैं जब बारात के संग बेटियां लेकर चली जाती हैं सब जज्बात संग बेटियां पूज्यमान हैं बेटियां तिरस्कार मत करना कभी पुष्प ही देना सदा काँटों को मत भरना कभी आती हैं जब बन कर बहू उपहार संग बेटियां मानों प्रफुल्लित हो उठी घर द्वार संग बेटियां स्वर्ग से सुंदर बनाती प्रेम से हर रिश्ते निभाती हो नही घर में अंधेरा ज्योति से ज्योती जलाती हैं सहज सुंदर सरल जलधि आकार बेटियां गीता गंगा सी पवित्र हैं सोलह श्रृंगार बेटियां कर लो अब स्वीकार सब जीवनाधार बेटियां आशीष दो कीर्तिमान हों ज्योति दुलार बेटियां ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश

भजन

मोह अपने भगत से लगा लेना राम मोह अपने भगत से लगा लेना राम वो तो जपता है राम राम राम राम राम वो तो जपता है राम राम राम राम राम उसके आँखों में तेरी छवी है बसी उसके आँखों में तेरी छवी है बसी तुझे देखे तो होवे जो बिगड़े हैं काम वो तो जपता है राम राम राम राम राम मोह अपने भगत से लगा लेना राम मोह अपने भगत से लगा लेना राम वो तो जपता है राम राम राम राम राम वो तो जपता है राम राम राम राम राम उसके जीवन की अनमिट कहानी हो तुम उसके जीवन की अनमिट कहानी हो तुम तुमसे होता सब शुरू तुम पे होवे है विराम वो तो जपता है राम राम राम राम राम मोह अपने भगत से लगा लेना राम मोह अपने भगत से लगा लेना राम वो तो जपता है राम राम राम राम राम वो तो जपता है राम राम राम राम राम आओ आओ सियापति लखण के सहित आओ आओ सियापति लखण के सहित हम सब करते हैं तुमको हृदय से प्रणाम वो तो जपता है राम राम राम राम राम मोह अपने भगत से लगा लेना राम मोह अपने भगत से लगा लेना राम वो तो जपता है राम राम राम राम राम वो तो जपता है राम राम राम राम राम ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश

अटल जी

 अटल जी कहानी है अटल की ही बानी है अटल आज जानिए अटल भूमि भारत हैं अटल कर्म धारक हैं अटल आज मानिए अटल तेज ज्योती हैं अमूल्य अटल मोती हैं अटल प्रेम पालिए अटल राष्ट्र भक्ति हैं अटल हिंद शक्ति हैं अटल को संभालिए अटल हिंद धारा हैं हिंद को संवारा है अटल हिंद कवि पुकारिये अटल बम की ऊर्जा हैं पोखरण की पुर्जा हैं कवि को रवि पुकारिये अटल धैर्य धारक थे भ्रष्ट के संहारक थे अटल मित्र की कथा अटल राष्ट्र नेता थे शत्रु पर विजेता थे अटल चरित्र की जथा अटल प्रेम दर्पण थे राष्ट्र को समर्पण थे अटल मात्र एक थे चौबीस दल के वंदन थे कृष्ण कृष्णा के अटल पात्र एक थे अटल गुण के ज्ञानी थे अटल स्वाभिमानी थे अटल धैर्यवान थे अटल देशभक्त थे अटल सख्त सख्त थे अटल युग महान थे अटल हिंद बालक थे अटल हिंद रक्षक थे अटल अविराम हैं अटल भी पितामह थे अटल संघ रक्षक थे अटल को प्रणाम है

हिंदी

 लिखेगा क्या कोई तुझको तू कविता है कहानी है कभी कवियों की बोली है कभी खुसरो की बानी है तू हिंदुस्तान की मिट्टी तू गंगा जी का पानी है धरोहर है तू अविरल है लड़कपन है जवानी है तुझे गीतों में ढालू तो सवैया छंद लगती है तुझे दोहा बनाऊ तो तू मुक्तक बन्द लगती है तुझे आँखों में जो ढूंढू तू चपला सी रवानी है तू मेरे माँ की है ममता मेरे नाना की नानी है लिखेगा क्या कोई तुझको तू कविता है कहानी है सरलता से तुझे समझू तो गलियों से गुजरती है अहिंसा की तू है ज्योती प्रकाशित जग को करती है समझ लो ऐ जगत वालों ये भारत माँ की बिंदी है यही भारत की गरिमा है यही जग भर की हिंदी है यही दिन भर उजाला है यही रातों की रानी है इसी पर ज्योति गर्वित है यही जिंदगानी है लिखेगा क्या कोई तुझको तू कविता है कहानी है ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश

मान बढ़ाती हिंदी

 हिंदी दिवस देश का मान बढ़ाती हिंदी मधुर है जिसकी भाषा अंतरमन जिसकी महिता प्रेम लिप्त कंकड़ में जिसके मधुर देश की सरिता संस्कृत से उत्पन्न हुई और विद्यमान है जग भर में ऐसी सुंदर रसिक पंक्ति में प्रस्तुत है हिंदी कविता भक्तिकाल की भाषा हिंदी भारत की अभिलाषा हिंदी विद्वानों की जिज्ञासा हिंदी जीवन की मृदुभाषा हिंदी गौरवमय की ज्ञान है हिंदी भारत की पहचान है हिंदी देवताओं का वरदान है हिंदी काल से भी बलवान है हिंदी अद्भुत छवि दिखलाती हिंदी जीवन सफल बनाती हिंदी स्वप्नों के महल सजाती हिंदी छन्द अनेकों बतलाती हिंदी ब्रजभाषा और अवधी बोली मगही कन्नौजी और मैथिली भोजपुरी मालवी और बघेली ज्ञान बिखेरे हिंद की बोली आदि आदि की खोज है हिंदी ज्योति समर्पित रोज है हिंदी नही किसी पर बोझ है हिंदी गर्व कराती प्रतिभोज है हिंदी ऊँचे शिखर चढ़ाती हिंदी सुंदर तस्वीर मढ़ाती हिंदी प्रेम का पाठ पढ़ाती हिंदी देश का मान बढ़ाती हिंदी ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश

मेरा हिंदुस्तान

 काव्य प्रभा मंच 13-08-2021 विषय - ये मेरा हिंदुस्तान है शीर्षक- मेरा हिंदुस्तान तुर्की अफगानी ने हमको लूटा मित्र बना कर के हम रहे अतिथि सत्कारों में वो गए इत्र लगा कर के फिर भी अपनी यही भावना अतिथि सदा भगवान है प्रेम व्याप्त है जन - जन में ये मेरा हिंदुस्तान है अंग्रेजों ने हृदय टटोला घात लगाया फिर कुछ बोला मूक बधिर के जैसे हम दिखने में बिल्कुल ही भोला आँखों से दया छलकती अपनी अलग पहचान है प्रेम व्याप्त है जन - जन में ये मेरा हिंदुस्तान है कण कण में शंकर रहते हैं रोम रोम में राम हैं भक्ति भाव और परोपकार में पूरे चारों धाम हैं यही बसा है संस्कारों में यही ज्योति स्वाभिमान है प्रेम व्याप्त है जन - जन में ये मेरा हिंदुस्तान है हरित क्रांति और अगस्त क्रांति हम दोनों की पूजते हैं अपने अधिकारों के खातिर दिल-ओ-जान से जूझते हैं छल और कपट नहीं है हम में इससे हम अंजान हैं प्रेम व्याप्त है जन - जन में ये मेरा हिंदुस्तान है गर्व है हमको देश पर अपने इसमें बसती जान है यही हमारा तन- मन- धन यही हमारी शान है तो फिर ज्योति कहे ना क्यूँ मेरा भारत महान है आओ हम सब मिलकर बोलें ये मेरा हिंदुस्तान है ज्योति

अतीत

अतीत मेरे अतीत की दुनिया है तू , तेरे अतीत का किस्सा हूं मै। मेरी जिंदगी का हिस्सा है तू , तेेरी जिंदगी का हिस्सा हूं मै।। पल जो बीते संग वाले , याद अब आये बहुत। पास रह कर ना सताया , अब तू क्यूं सताये बहुत।। तेरे अतीत का प्रभात हूं मै , मेरे अतीत की दिशा है तू । तेरी जिंदगी का हिस्सा हूं मै , मेरी जिंदगी का हिस्सा है तू । जो गुनगुनाए अब तलक , वो गीत मेरे नाम के । अब याद भी आऊं बहुत , तो याद अब किस काम के ।। मेरे अतीत की कहानी है तू , तेरे अतीत का किस्सा हूं मै । मेरे जिंदगी का हिस्सा है तू , तेरे जिंदगी का हिस्सा हूं मै । मेरे अतीत की दुनिया है तू । तेरे अतीत का किस्सा हूं मै । ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

खगराज जटायू

 वीर जटायू के जीवन का वर्णन करो तुम्ही हे राम तुम्ही अहिल्या के उद्धारक तुम्ही वृद्ध सबरी के धाम ज्योति कलम की आभा के तुम्ही सुबह दोपहर शाम तुम्ही प्रमाणित करते हो वीर जटायू  रावण संग्राम सुनकर सिया विलाप जटायू हुन्कार भरे नभ में छाए त्रैलोक विजेता रावण पर सिया हरण आरोप लगाए कहा जटायू हे रावण क्या यही भुजाओं में बल है कपटी बन हरण करे नारी का यही शक्ति प्रबल है लानत है बीस भुजाओं पर इन पर गुमान क्या करना मर चुके नेत्र से तुम मेरी कायर तुझसे रण क्या लड़ना अट्टहास करता रावण तू मुझको आज डराता है मेरे प्रांगण में रहकर मुझ पर ही रौब जमाता है चल चल रे निर्बल तू खग है मै तुझको छोड़ रहा तेरा मर्दन क्या करना क्यू मौत से नाता जोड़ रहा पर्वत समान काया लेकर पंखों से वायु झकोरे हैं अरुण पुत्र वीर जटायू रावण को आज बटोरे हैं इस तरह प्रहार किया खग ने विजय पताका टूट गया शक्ति हीन समझा जिसको वह शक्ति वेग से लूट गया कानों के कुंडल टूट गिरे रावण ओझल घबराया है आज दसानन प्रथम बार ऐसे खग से टकराया है कर के सचेत बोला पक्षी ऐ रावण काल बनी सीता खर दूषण से समझ ले तू है राम प्रिया जननी सीता सुंदर नयनों वाली यह अब स

ग़जल

 ना जीने की तमन्ना है ना मरने का बहाना है किस तरह करू रुखसत अपना ही बेगाना है ऐ मेहताब बता दे तू क्या हिज्र बताऊँ मैं हो गया हू मै खाली अब लुट रहा खजाना है सुनता न कोई दिल की दिलदार भले हैं सब पागल हो कर फिरता हर सख्स दिवाना है मेरे यार जरा सुन ले यह दौर फरेबी है लूटे है वही तुझको जिसे यार बचाना है अब तो छिप जा ऐ आफताब बादलों में किसे तेरी जरूरत है औ किसे जगाना है शहर की क्या गलती वो कहा सिखाया कुछ सीखे हैं लोग खुदी कहा आग लगाना है ना जाने क्यूँ लगती यह तस्वीर तेरी प्यारी हर सख्स खिंचा आता क्या दर्द मिटाना है रूठा है खुद का दिल खुद के ही दिल से ऐ ज्योति दिल-ए-नादा आलम ये सयाना है ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश

हिंदी में हस्ताक्षर

हिंदी भाषा हमारे जीवन की अभिन्न हिस्सा है, जिसके बिना इस जीवन की कल्पना कर पाना भी असम्भव है। कहने का तात्पर्य यह है कि हम भले ही भारत के किसी भी प्रांत में हों और अपने क्षेत्रीय भाषा के आधार पर ही अपनी सर्व शिक्षा संपन्न कर लें। किंतु बिना हिंदी जाने हम भारत को नहीं जान पायेंगे, और जब हम अपने भारत को ही नहीं जान पायेंगे तो फिर हम शिक्षित कैसे कहलाएंगे। इसलिए हिंदी बोलना, हिंदी पढ़ना और हिंदी लिखना अनिवार्य है। और होना भी चाहिए, क्योंकि हम जिस देश में रहते हैं जहाँ हमारा जन्म हुआ है वह देश हिंदुस्तान कहलाता है। हिंदी भाषा हम भारत वासियों की धरोहर है जिसे हमारे पूज्य पूर्वजों ने परम्परा के अनुसार हमारी संस्कृति में इस तरह से पिरोया है की हम इसे अपनी सामाजिक सभ्यता का स्वरूप मानते हैं। जब बात हमारी संस्कृति और संस्कारों की आए तो हमारे मस्तिष्क में देवभाषा संस्कृत अपने आप ही परिक्रमा करने लगती है। भले ही हम संस्कृत पढ़ने या समझने में असहज महसूस करते हैं किंतु सत्य तो यही है कि हिंदी की उत्पति संस्कृत भाषा से ही हुई है। और हम अपनी इस मातृभूमि की धरोहर हिंदी को आज अलग - अलग प्रांतों में भिन

उपकार

मुक्तक ऋण चुका ना सकू आपके प्यार का मै भुला ना सकू वक़्त उपकार का आपकी है कृपा जो यहा हू खड़ा आपके सामने मै ना अधिकार का आप मेरे गुरू आप ज्ञाता हुए आप ही प्रेरणा आप दाता हुए आपकी नीतियों से मिला है बहुत आप ही भाग्य के भी विधाता हुए दीन दुखियों का मै भी सहारा बनू बह चुकी नाव का मै किनारा बनू कर सकू प्यार उपकार मै भी कहीं हो कृपा इस तरह शिष्य प्यारा बनू माँ की ममता मिली पितु का प्यार है मिला गुरु की भक्ती मिली हिय का द्वार है खुला ना भूल सकता हूँ मै प्रभु के उपकार को ध्यान आपका किया जीवनाधार है मिला सूर्य को जान लू चंद्र पहचान लू वायु को कैद कर द्रव्य संज्ञान लू ज्योति माना प्रभू गुरु का उपकार है आप गुरु में बसे आज यह मान लू ज्योति प्रकाश राय

राम

 रघुवंश शिरोमणि शीलता, सालीनता तुम्ही हो राम विश्वामित्र की यज्ञ रक्षा, मारीच दीनता तुम्ही हो राम हे राम तुम्ही पाषाण के, हर कण कण मे व्यापित मिथिला नगर की सोभनीय, सुंदरता तुम्ही हो राम जनकपुर की जनक पुत्री, सीता के हिय का प्रेम हो शिव धनुष विदारक, ऋषि मद संहारक तुम्ही हो राम तुम्ही लखण की शक्ति हो, तुम्ही भरत की भक्ति हो तुम्ही शत्रुघ्न धर्म रथ, मंथरा की मंत्रणा तुम्ही हो राम माँ कौशल्या के मोह तुम ही, कैकई विद्रोह तुम ही सुमित्रा उर्मिला धैर्य तुम, पिता वियोग तुम्ही हो राम तुम ही वन गमन का रास्ता, तुम चित्रकूट से वास्ता तुम पंचवटी की कथा, सिया हरण भी तुम्ही हो राम तुम्ही जटायू मोक्ष दाता, तुम्ही सबरी भाग्य विधाता तुम्ही सुग्रीव की मित्रता, बालि हंता तुम्ही हो राम तुम्ही उदधि की माप हो, तुम्ही विभीषण संताप हो तुम्ही लंक विध्वंस हो, हनुमान हिय तुम्ही हो राम तुम्ही घातिनि ब्रह्म शक्ति, तुम्ही संजीवनी रूप हो  मेघ रावण मोक्ष तुम हो, लंका पराजय तुम्ही हो राम तुम्ही जगत में व्याप्त हो, तुम्ही मोक्ष को प्राप्त हो तुम्ही ज्योति की प्रेरणा, प्रकृति प्रदाता तुम्ही हो राम रघुवंश शिरोमणि शीलता, स

बादल

आज बारिश की बूंदें मेरे तन पर पड़ी याद आ गई मुझको अपनी बीती घड़ी समय से पहले मै उस जगह आ चुका था मोहब्बत में उस दिन बादल भी झुका था इंतजार में तुम्हारे था निगाहें बिछाए हर तरफ लोग दिखते ना मन में समाए अचानक से आई एक आहट तुम्हारी दिखी एक झलक और मुस्कान प्यारी मै उठ कर तुम्हारी तरफ यार धाया तुमसे मिलकर तुम्हें घड़ी को दिखाया चले साथ हम तुम यूं हाथों को पकड़े कोई जंजीर जैसे हम दोनों को जकड़े मंच कैडवरी हमने तुमको खिलाया हमे तुमने मोहब्बत से पानी पिलाया कुछ बातें हुई फिर गले हम मिले हमें  देखकर  मेघ के  दिल जले वो आंखें दिखा कर हम पर चिल्लाए एक छतरी में हम तुम खुद को छुपाये लगे ऐसे जैसे बरसात का महीना फिर भी आने लगा दोनों को पसीना ना हमको वहां फिर कोई भी पुकारे झम – झम बरसते थे बादल बेचारे नहीं भूल सकता वो बरसात प्यारी इन निगाहों में छाई तुम्हारी ख़ुमारी आ जाओ हमदम यह ज्योति फिर पुकारे मै जिंदा हूं अब तक बस तुम्हारे सहारे ज्योति प्रकाश राय

लक्ष्य

धैर्य नहीं खोना है हमको, डिगा नहीं सकता कोई विचलित नहीं हृदय होगा तो, झुका नहीं सकता कोई आओ जाने रण कौशल में, लक्ष्य को जिसने पाया है नरेंद्र दत्त आत्मज्ञान पा कर, विवेकानंद कहलाया है पराधीन भारत को जिसने, विश्व जगत में खड़ा किया आध्यात्म दिखाकर भारत गौरव, अन्य देश से बड़ा किया लक्ष्य एक जब- जब होगा, तब-तब सब आनंद मिलेगा सम्मानित होगा जन-जन में, पुनः विवेकानंद मिलेगा लक्ष्य एक था भिलनी सबरी, राम दरश की प्यासी थी हार नहीं मानी जीवन में, दुखिया भले उदासी थी दरश दिये श्री राम गहन (वन) मे, लक्ष्य प्राप्त सबरी धायी अडिग रहो बस ध्येय बनाकर, अवश्य मिलेंगे रघुराई लक्ष्य बनाया आजाद भगत ने, हंस कर फंदे को चूम गए उसी लक्ष्य को पूरा करने, गांधी जी पैदल घूम गए लक्ष्य नेक हो नेक पथिक हो, जनसमूह आ जाएगा विचलित मन दर-दर भटकेगा, खुद ही खुद को खा जाएगा लक्ष्य बनाया जब अर्जुन ने, मत्स्य नयन को भेद गये लक्ष्य बनाया वसुदेव कृष्ण ने, अधर्म धरा से खेद गये आओ मिलकर संकल्प करें, हमें लक्ष्य को पूरा करना व्यर्थ नहीं है अपना जीवन, प्रकाश हृदय में भरना है ज्योति प्रकाश राय भदोही उत्तर प्रदेश- 221309

हौसला

 हिम्मत के बल पर हिमालय झुका है विद्या के धन पर विद्यालय टिका है हौसला नहीं टुटा था थे भीम गदाधारी कौरव हुए पराजित दुर्योधन को लात मारी उम्मीद थी संजोये शबरी के राम आए विश्वास प्रेम भक्ति में जूठे भी बेर खाए हौसला नहीं डिगा था प्रह्लाद का कभी भी विफल हुआ था कश्यप जल्लाद थे सभी भी विश्वास भर के रग में आगे बढ़ी थी रानी फिरंगी को पस्त करके पिला दिया था पानी हौसला नहीं था टूटा राणा लड़े लड़ाई खा कर के घास रोटी शत्रु पर किए चढ़ाई सेना भले ही कम थी हिम्मत की ना कमी थी शिवा क्षत्रपति थे मां भवानी की सर ज़मी थी अंधेरों को चीर कर के दिया करे उजाला हमने प्रयत्न कर के हिमालय समेट डाला हौसला रहेगा हममे हम जंग जीत लेंगे अपनों के साथ होकर हर रंग प्रीत लेंगे आओ करें हम मिलकर ज्योति संग इरादा पिछले प्रयत्न से भी होगा प्रयत्न ज्यादा ज्योति प्रकाश राय भदोही उत्तर प्रदेश 8879648743

पश्चाताप

  पश्चाताप (भाग -1) मुख्य किरदार ममता, संजीव सहायक किरदार तमन्ना, विनय, विकास, इत्यादि। ममता - संजीव तुम बैठो मैं चाय बनाकर लाती हूं। (रसोई घर से) ओ हो माफ करना संजीव अभी - अभी गैस खत्म हो गया सिर्फ पानी ही गर्म हुआ था , चलो आज हम लोग पास वाले चाय के टपरी से चाय पीते हैं वहां ताजी हवाओं का भी आनंद मिलेगा। संजीव - अभी नहीं ममता जी आप बैठिए मै बस अभी - अभी खाना खा कर आ रहा हूं। शाम को चलेंगे वहां चाय पीने और ठंडी हवाओं का लुत्फ उठाने। ममता - ठीक है अच्छा! बैठो मै तुम्हारे लिए एक पत्रिका रखी हूं उसे पढ़कर तुम्हे अच्छा लगेगा। (संजीव को पत्रिका देते हुए) पता है यह पत्रिका मेरे जीवन की अत्यंत महत्वपूर्ण पत्रिका है क्योंकि यह सौवीं (सतक) पत्रिका है जिसे देखकर मै इतना खुश हुई थी कि मानों मेरे मन को दो पल के लिए हर ग़म से आजादी मिल गई हो और मै दुनिया के हर अच्छे - बुरे कर्म को छोड़ मात्र खुशी भरे नेत्रों से ओझल और खुद में सराबोर हो रही थी। संजीव - इतना कुछ क्या है इस पत्रिका में ? जो आप बताते हुए भी इतना तनावमुक्त है और किसी विशेष पल का आनंद प्राप्त कर रही हैं। (पत्रिका पढ़ने पर) अरे वाह ममता ज

स्मृति शेष

 उड़ गए पखेरू छोड़ जहां को अब नहीं कोई भी अपना है बीता जीवन सुख में दुख में अब याद बची और सपना है बाजार लगा था जो कुछ भी अब बदल गया है मातम में बिलख रहे हैं जो थे अपने बस धीरज ही अब मरहम है घर से निकाल अब बाहर है पार्थिव शरीर से प्यार किसे धरती माता आकाश पिता है अब प्रेम किसे और चाह किसे बन गई कहानी मेरी बातें चर्चित हूं हर मुख मंडल पर कहते सुनते हंसते रोते मै छोड़ चला नभमंडल पर मै जिंदा हूं रीति रिवाजों में अब परंपरा में बसाना तुम करना याद मुझे तिथि पर हस कर रीति निभाना तुम ले रहा विदा मै इस जग से मत आंसू और बहाना तुम अब कसम तुम्हे है घरवालों खुशियों संग मुस्काना तुम

मणिकर्णिका घाट

 यह घाट बनारस का, स्थापित है खुद में है मोक्ष द्वार यह भी, ईश्वर हैं रज रज में कलकल है करती, अविरल  जल गंगा मुक्ति मिले सबको, मनु संग कीट पतंगा अंखियों के नीर क्यूं बहाते हैं लोग यहां पापियों को पुण्य से मिलाते हैं लोग यहां शंखों की ध्वनि से आभास हो रहा है धुआं उठा है नभ में आकाश रो रहा है ज्योति प्रज्वलित हुई मन के द्वेष मिट गए ओम शांति पाठ से ग्रह और क्लेश मिट गए नमन है शिव को भाव से नयन के लगाव से भक्ति रस में डूब कर जोगिया के रंगाव से मणिकर्णिका महान है प्रातः स्नान है वाराणसी के घाट में ज्योति दिव्यमान है ज्योति प्रकाश राय

गणतंत्र दिवस

 लिख कर आज लहू से, दिल की प्यास बुझाएंगे हिन्द देश के झण्डे को, अम्बर तक लहराएंगे आंख उठा कर ऊपर देखो, भारत आज खड़ा नभ में आत्मशक्ति से एक बना है, विश्वास जमा है रग रग में हम याद रखेंगे वीरों को, मिलकर शीश झुकाएंगे हिन्द देश के झण्डे को, अम्बर तक लहराएंगे हिन्दुस्तां परिवार हमारा, सारा सच भी हिस्सा है मिटा देंगे आतंक यहां से, जो जन्म जन्म का किस्सा है गणतंत्र दिवस के अवसर पर, मिलकर सौगंध उठाएंगे हिन्द देश के झण्डे को, अम्बर तक लहराएंगे अमर बने जो देश के खातिर, उनको तिलक लगाना है कश्मीर धारा से गद्दारों को, मिलकर आज भगाना है देश भक्ति के फूलों से, सारा सच महकाएंगे हिन्द देश के झण्डे को, अम्बर तक लहराएंगे शास्त्री बोस जवाहर गांधी, आजाद आज भी जिन्दा हैं स्वागत है श्री मान सत्य का, निंदनीय की निन्दा है भारत मां की रक्षा खातिर, मौत से भी टकराएंगे हिन्द देश के झण्डे को, अम्बर तक लहराएंगे गद्दारों के खंजर खा कर, धरा को जिसने सींचा है उन बलिदानी बेटों से, भारत का मस्तक ऊंचा है छुपे हुए गद्दारों को, हम खींच के बाहर लाएंगे हिन्द देश के झण्डे को, अम्बर तक लहराएंगे भिन्न भिन्न हैं लोग यहां पर, भिन

बहिष्कार

हैवान आंसुओं में सब डुबोना चाहता है तबाह करके सबको अब रोना चाहता है उसने खुद लुटाई इज्जत अपने वतन की अब ढोंगी फरियाद कर संजोना चाहता है हैवानियत की  सारी हदें  लांघ दी जिसने वो अब इंसानों में सामिल होना चाहता है बहिष्कार करना है ऐसे फरियादियों का जो ईर्ष्या के बीज भू पर बोना चाहता है बयां करता है सारा सच जिसकी सच्चाई वो कांटा अब गुलाबी पुष्प होना चाहता है दबाकर आज भी रंजिश दिल में साहिब मिलकर दरिंदा मुकम्मल होना चाहता है रास आया नहीं चमकता हिंदुस्तान जिसे वो कालिख लगा कर मुंह धोना चाहता है अब सच्चाई का सिक्का उछालेगा सारा सच क्यों चिल्लाकर बुजदिल चुप होना चाहता है गुनाहों को यकीनन माफ़ कर देता भारत पर कौन अपने परिवार को खोना चाहता है जिसने धज्जियां उड़ाई संविधान की पूरी वो दागदार अब सभी दाग धोना चाहता है बहिष्कार करना होगा बुराइयों का जड़ से जो अंधेरा कायम कर खुश होना चाहता है बेपरवाह आलम संग साजिशों की सियासत धोखेबाज छिपने को गली कोना चाहता है जिसकी जमानत भी जब्त हो गई घर में वो लालकिले का सरदार होना चाहता है कुछ लोग आए हैं उसके बीच बचाव करने उन्हें पता नहीं तख्तापलट होना चाहता है देख

पवित्र उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश दिवस (24-01-2021) सत्य को समर्पित जहां विष्णू महेश हैं पवित्र मातृभूमि वही उत्तर प्रदेश है कण कण में बसी यहां भक्ति भाव ज्योती रज रज में मिली यहां पवित्र प्रेम मोती मिलता जहां पे आकार ज्ञान का संदेश है पवित्र मातृभूमि वही उत्तर प्रदेश है देवगण हुए लालायित जीवन मिले यहां पर तीर्थों में तीर्थ स्थल अयोध्या बसे जहां पर जन्मे श्री राम लक्ष्मण सत्रुघ्न भरत योगी जन्म हो वहां यह लालसा किसे न होगी जन्मे श्री राम यहां इसमें कुछ उद्देश्य है पवित्र मातृभूमि वही उत्तर प्रदेश है चित्रकूट धाम जहां राम का निवास बना तुलसी प्रमाण बने मन में विश्वास बना धर्म रथ से चल पड़े राम जग को तारने पापियों का अंत किए लगे जब संहारने विश्व में प्रसिद्ध जहां आदर्श का परिवेश है पवित्र मातृभूमि वही उत्तर प्रदेश है कैलाश छोड़ शिव बसे काशी मोक्ष धाम बना यहां मृत्यु मात्र से ही पापियों का काम बना शिव के दरश मात्र से मन शांति मिले सदा काशी विश्वनाथ जपो भ्रांति सब मिटे सदा तीर्थ वो जो मोक्ष करे काशी खुद महेश हैं पवित्र मातृभूमि वही उत्तर प्रदेश है ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

सरस्वती वंदना

हे बुद्धि देवी हे ज्ञान दायिनी, हे वीणा वादिनी हे सरस्वती हे हंसवाहिनी, हे ब्रह्मा प्रिया तुमसे है मिटती चक्षु निशा, तुमसे है जलता हिय दिया निशि प्रातः करू मै वंदना, तुमको समर्पित कामिनी हे बुद्धि देवी हे ज्ञान दायिनी, हे वीणा वादिनी।। हे विद्या विद्यमाता, हे पुस्तक धारिणी तुमसे है बहती ज्ञान गंगा, तुमसे है ज्योति दिव्यमान उत्तपन्न तुमसे है मधुरता, तुमसे है यह भारत महान खण्डित ना हो भारत धरा, रक्षा करो सौदामिनी हे बुद्धि देवी हे ज्ञान दायिनी, हे वीणा वादिनी।। हे ज्ञान की सुधामुरती, हे देवी हंसासना तुमसे है उज्ज्वल भविष्य सबका तुमसे है मिथ्या हारती उत्त्पन्न तुमसे है सत्य निष्ठा तुमसे है जग मां भारती हमे सत्य पथ पर अडिग करना हे रूप सौभाग्य दायिनी हे बुद्धि देवी हे ज्ञान दायिनी, हे वीणा वादिनी।। हे शास्त्र रूपी  हे ब्रह्मजाया, हे देवी चंडिका तुमसे सुशोभित ज्योति विद्या तुमसे है जीवन साधना तन मन धन समर्पित है तुम्हें आशीष दो हे निरंजना भटके नहीं हम धर्म से विपदा हरो मां सुवासिनी हे बुद्धि देवी हे ज्ञान दायिनी, हे वीणा वादिनी।। ।। ज्योति प्रकाश राय ।। ( उज्जवल )

परिचय

परिचय सुनूं या परिचय सुनाऊं परिचय में क्या क्या यहां मै बताऊं परिचय करा दूं इंसानियत का सबसे जो सब में है रहता छिपी बात सबसे भूख से तड़पता प्यास से विकल था वृद्ध व्यक्ति ऐसा न उसके पास बल था कराहता पुकारता दया की दृष्टि कर दो हे भाग्य के विधाता नीर वृष्टि कर दो हे सूर्य हे दिवाकर करुणामयी बनो तुम किरणों को शून्य कर दो हे चंद्रमा तनो तुम क्षिण शक्ति हो चुकी है असहाय हो चुका हूं इंसानियत ख़तम है विश्वास खो चुका हूं इंसानियत बचाने विश्वास को जगाने धर्मराज चल पड़े हैं इंसानियत है सब में यह बात फिर बताने प्रभु आज चल पड़े हैं उदंड एक राही चलता गया वहां से इंसानियत का परिचय मिलता गया वहां से आंखों से वृद्ध टुक टुक देखे न मुंह से बोले राही चला था धुन में मस्ती में पांव डाले अचानक रुका फिरा वह वृद्ध पास आया क्षमा हे वृद्ध बाबा विलम्ब ज्ञान आया सहारा मै बन रहा हूं आशीष चाहता हूं इंसानियत बनी रहे हे जगदीश चाहता हूं परिचय में ज्योति कहता प्रकाश ना बुझे यह जीवित रहे मनुष्यता विश्वास है मुझे यह।। ।। ज्योति प्रकाश राय ।। (उज्जवल)