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Showing posts from 2022

दंगा

 अब कौन मौन रह सकता है किसका रक्त नही डोलेगा तू ही बतला ऐ हिंदुस्तां क्या अब भी भक्त नही बोलेगा धर्म भक्त और देश भक्त दोनों ने मन में यह ठाना है अपना अस्तित्व न गिर जाए मिल कर हमे बचाना है क्या संविधान के नियमों का पालन हमको ही करना है क्या एक गाल खा कर थप्पड़ दूजा भी आगे करना है चुप चाप सहें और सुने गालियाँ क्या यही धर्म हमारा है आगे बढ़ कर रण लो वीरों दुश्मन हमको ललकारा है उठने लगे हैं हाथ जहा भी उन हाथों को वही मरोड़ो तुम घर में रह कर जो आँख दिखाये उसे नही अब छोड़ो तुम ध्यान करो माँ काली का शिव के त्रिशूल का ध्यान करो माथे तिलक धैर्य व साहस खुद को फिर से बलवान करो सुलग रहा है देश जिधर उस ओर मेघ बन छा जाओ हाहाकार मचा कर पल में शत्रु शक्ति को खा जाओ चहुँ ओर क्रूरता जो फैली अपने ही अपनो से हारे हैं देखो सब वही दरिंदे हैं जो भारत पर पत्थर मारे हैं धैर्य से ऊपर उठकर अब सरदार पटेल सा जोश भरो जय जय श्री राम के नारों से दुश्मन को तुम बेहोश करो गुंजायमान हो नभ मंडल हनुमत हुन्कार भरो वीरों जिस ओर बढ़ो लहरा दो भगवा बैरी संहार करो वीरों जन्नत मिल जाए इन्हे अभी राणा प्रताप सा बढ़ जाओ लेकर भाला औ

पर्यावरण ( प्रकृति)

 उस दिन सब जगह पट जाएगा जिस दिन हर वृक्ष कट जाएगा क्या इस जग को वही देखना है या जीवों को मार कर फेकना है ना रहेंगे पेड़ ना बहेगी ठंडी हवा हर तरफ दिखेगी बस गंदी फिजा सोचो क्या दुनिया का नजारा होगा हर तरफ हर आदमी बेसहारा होगा यह प्रकृति है इसमें जीवन समाया है इसी ने सजीवों का यौवन बनाया है प्रकृति से ठिठोली भारी पड़ रहा है भले क्यूँ ना इंसान आगे बढ़ रहा है स्वार्थ में हर व्यक्ति ऐसे घुल चुका है जैसे डाली में हर फूल खिल चुका है अब कभी न मिलने की जरूरत होगी बार बार ना खिलने की जरूरत होगी जब तेज आधियों में सब खो जाएगा तब मनुष्य जो किया सब याद आएगा जब पर्यावरण बचाना सरल नहीं होगा तब इन प्रश्नों का कोई हल नहीं होगा कभी तेज बारिश तो कभी धूप होगी तब हँसी वादियाँ बेहद कुरूप होगी न हो भविष्य ऐसा अपना हो या बेगाना लगा कर पेड़ पौधा प्रकृति को है बचाना ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश

गजल

 काव्योदय रदीफ़ - कर लिया मैंने ग़जल इन निगाहों में एक ख़्वाब भर लिया मैंने ख़ुद से ही ख़ुद का हिसाब कर लिया मैंने उनको देखे बिन तब दिन नही गुजरता था अब तस्वीरों को ही गुलाब कर लिया मैंने एक प्यारा सा चेहरा दिल में बसाये फिरता हू यूँ चेहरे को दिल-ए-मेहताब कर लिया मैंने ये दुनिया शिकायती आकाओं से भरी हुई है इसी लिए दिल-ए-आफ़ताब कर लिया मैंने लोग दौलत से हैं या दौलत है लोगों के लिए इसी तमन्ना में ख़ुद से हिजाब कर लिया मैंने अब ना रही कोई ख़्वाहिश ना आरजू है कोई मोहब्बत-ए-दौर में भी नका़ब कर लिया मैंने अब ना देखो ना दिखाओ ज्योति ज़ख़्मों को यूँ ही नहीं नाम अपने ख़िताब कर लिया मैंने ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश

पुरुष

 आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है बनकर कठोर हृदय वाला कठिन समय से टकराता है मार समय की कौन है सहता कौन धरा पर ऐसा है सोच सोच कर कठिन परिस्थिति ईश्वर गढ़ता जाता है आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है आँख भले ही नम हो जाए गिरता नही निगाहों से आहे भर भर सहता सब कुछ लड़ता स्वयं गुनाहों से आँच न आए परिजन पर वह झुक कर शीश उठाता है आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है देख परिस्थिति को अपने अर्जुन थे सब कुछ छोड़ रहे बन कर महान फिर से माधव पुरुष धर्म से जोड़ रहे विचलित मन से आगे होकर पुरुष ही चक्र उठाता है आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है वह भी एक पुरुष ही था जो दानवीर कहलाया है न्यौछावर कर प्राण स्वयं पुरुषों का मान बढ़ाया है हुआ भूमिगत जितना पहिया वह उतना उठता जाता है आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है ऊँचे - ऊँचे शिखरों के अंदर जो राह बना डाले जिनकी तलवारें तेज चलें हिम्मत से चलते थे भाले वह वीर शिवा रण लेकर बैरी को मार भगाता है आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है कभी काटता समय को अपने कभी समय कटवाता है कभी पाटता कर्ज को

जीवन और प्रेम

जहाँ है प्रेम की गंगा  वहीं जीवन की धारा है जिसे रब ने  संवारा है  उसे किसने बिगारा है चलो अविरल बहाएँ हम जहां में प्रेम की गंगा जहाँ हो प्यार की पूजा वहीं सबका गुजारा है करो नफ़रत  करो पूजा ये दुनिया रीत से चलती मुसाफ़िर तुम मुसाफ़िर हम उमर है प्रीत में पलती किसी की चाह में इतना नही होना कभी भी गुम खुदा की देन है जीवन नही मागे से फिर मिलती जुदा होकर भी तुम अक्सर मेरे ख्वाबों में आते हो जो गाये  गीत थे  संग में  वही तुम गुनगुनाते हो सजा कर राग जीवन का चले जाना नही अच्छा जो सबसे हम बताते हैं वो सबसे तुम छुपाते हो किसी को पा नही सकते किसी के हो ही जाओ तुम समर्पण  भाव है  ईश्वर  मोहब्बत भी निभाओ तुम नही देखो  मुनाफा  क्या है  जीवन - प्रेम में  यारों बनो सागर  रहो शीतल  मधुर जीवन बिताओ तुम है जीवन प्रेम का दर्पण यहाँ खुद को उतारो तुम जो रूठे हैं अभी तुमसे उन्हें फिर से पुकारो तुम ये जीवन  प्रेम का  प्यासा इसे तन्हा नही जीना जला कर ज्योति अंतर्मन सभी जीवन संवारो तुम ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश

निबंध

विषय- राजा राम मोहन राय का आंदोलन, सामाजिक शोधन की कसौटी राजा राम मोहन राय ने सामाजिक सुधार के लिए कई कदम उठाए और आंदोलन भी किए जिनमें मुख्यतः पाँच आंदोलनों के चलते समाज को एक नई दिशा मिली और भारत देश को प्रगति करने का अवसर प्राप्त हुआ। आंदोलन 1- बाल विवाह राजा राम मोहन राय ने कई वर्षों से चली आ रही बाल विवाह की प्रथा को कुप्रथा साबित कर उसका विरोध किया और बाल विवाह का शिकार होने वाली स्त्री जाति के रक्षक बन समाज में महिलाओं को उनका अधिकार दिलाने में सहायक बनें। 2- मूर्ति पूजा राजा राम मोहन राय घर में पूजा पाठ होते अक्सर देखा करते थे किन्तु उन्हें कभी ईश्वर के स्पष्ट दर्शन नहीं होने के कारण ही वो अलग अलग मूर्तियों में एक ही ईश्वर को देख पाना गलत समझते थे और यही कारण था कि उन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध किया था।  3- बहु विवाह राजा राम मोहन राय दूर दृष्टि वाले महान व्यक्ति थे जिन्होंने भारत देश में चारों ओर फैलते अंधकार को देखा और कई कुप्रथाओं में से एक बहु विवाह को समाप्त करने पर जोर दिया (विरोध किया)। बहु विवाह एक ऐसी प्रथा थी जिसमें कोई भी व्यक्ति चाहे वह स्त्री हो या पुरुष एक से अधिक

पानी

 हो गई बंजर ज़मी और आसमां भी सो रहा पानी नही अपने यहाँ हाय यह क्या हो रहा युगों युगों से देश में होती नही थी यह दशा व्यर्थ जल बहाव में आज आदमी आ फसा पशु पक्षियों में शोर है संकट बहुत घनघोर है देखे नही फिर भी मनु लगता अभी भी भोर है बूंद भर पानी को व्याकुल बाल जीवन हो रहा पानी नही अपने यहाँ हाय यह क्या हो रहा उनको नही है पता जिनके यहा सुविधा भरी देख ले कोई उन्हे खाली है जिनकी गागरी बहे जहा अमृत की गंगा यमुना नदी की धार है उस नगर उस क्षेत्र में भी पेय जल में तकरार है सो गई इंसानियत रुपया बड़ा अब हो रहा पानी नही अपने यहाँ हाय यह क्या हो रहा अब भी नही रोका गया व्यर्थ पानी का बहाना होगा वही फिर देश में जो चाहता है जमाना संदेश दो मिल कर सभी पानी बचाना पुण्य है पानी नही यदि पास में तो भी ये जीवन शून्य है पानी बचे जीवन बचे ज्योति उज्ज्वल हो रहा ईश्वर करे आगे ना हो व्यर्थ जो कुछ हो रहा ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश

पुलवामा अटैक

अपने हौसलों को कमजोर ना समझो, इनमें जज्बा है कुछ कर दिखाने का वक्त आए तो गर्व से कहना, हममें हिम्मत है जाँ लुटाने का ऐ भारत माँ तेरे चरणों की सौगंध, गर कोई तेरी ओर आँख भी उठाए, तो हममें हिम्मत है उसकी हस्ती मिटाने का दुश्मनों को घर तक खदेड़ आने का हौसला हममें है देश पर शौक से मिट जाने का हौसला हममें है याद रखो पाक के नापाक जवानों, तुम्हे मिट्टी में मिलाने का हौसला हममें है कारगिल का दौर फिर से दोहराने का हौसला हममें है फिर लाहौर तक चढ़ जाने का हौसला हममें है मंजर क्यूँ आज भयावह है, क्या यही शांत कश्मीर है हम तो वीरों में वीर बड़े, क्या लाशें ही जागीर हैं जिन हसी वादियों में खिलती, पवित्र प्रेम की कलियाँ है है धरा वहाँ क्यूँ लाल रंग, बिखरी बिछड़ी सब गलियाँ है हम तो देते संदेश प्रेम का, क्या उन्हें नही लेना आता या जिस संदेश को वो पहचाने वो हमें नही देना आता हम भी तो ज्ञान बाटते हैं, क्यूँ ना उनको हम पहचाने आखिर कब तक मित्र कहें, हरकत क्यूँ ना हम जाने ऐ भारत माँ के वीर जवानों, चालीस को कैसे खो बैठे कारगिल की याद दिलाओ उनको, जो छुपे वहाँ ऐठे-ऐठे लश्कर के हो या हिजबुल के, है तो कायर और गीदड

बिछड़े रास्ते

 कर रहे थे कत्ल वो सर-ए-आम बाजार में खून की प्यासी दिखी हर चमक तलवार में गिर रहा था सिर कहीं धड़ कहीं पर गिर रहा लेकर बहू ,बेटियों को बाप पागल फिर रहा आतंक का यह शोर था शोर था यह काफ़िरों का मिलता नहीं था रास्ता झुंड था मुसाफिरों का छीन कर भी बन गए वो हमदर्द सारे हिन्द के जो नहीं बोले कभी जय हिंद गुरु गोविंद के भर पेट उनको रोटियाँ देता रहा हिंदोस्तां उनके दिलों में पल रही कुरीतियाँ पाकिस्तां गलतियाँ कर के भी वो ताज पहनाये गए हिंद-ए-वतन के वास्ते घर सभी जलाये गए वो जुर्म की सीमा सभी लाँघ कर बागी हुए तब हिंदुस्तां के जांबाज भी देश में दाग़ी हुए भ्रष्ट होता देख सब करवट लिया फिर देश ने देख कर फिर पात्रता गद्दी दिया उपदेश में राज अब तेरा चले कश्मीर - कन्या छोर तक कर ले जहाँ को कैद तू देख चारों ओर तक हो गए हैं सब सजग ईश्वर भी तेरे साथ है सब पर चढ़ा है रंग भगवा तेज तेरे माथ है झुक रहे हैं वो सभी जो देश को थे खा रहे एक-एक कर के सभी मिटते हुए हैं जा रहे माफ़ी नहीं उनको मिले जो खा गए इंसानियत दण्ड उनको चाहिए जो फैला रहे हैवानियत ज्योति उज्ज्वल हो रहा अपने वतन के वास्ते मिल गए हैं फिर सभी को बिछड

नारी (स्त्री)

 विषय - नारी ( स्त्री ) रग रग में जिसके ममता है कण कण में बसी छवी जिसकी वह माता भी इक नारी है क्या कल्पना करे कवी इसकी नारी गीता नारी गंगा नारी पृथ्वी सब ओज रही नारी है तो जीवन है फिर क्यूं सब पर बोझ रही युगों युगों की बात करूं क्या अमर वीरांगना भूला कौन मणिकर्णिका बढ़ी बनारस हुंकार युद्ध का भूला कौन नाम था जिसका लक्ष्मीबाई भारत मुक्त कराने आई लोहा लिया फिरंगी संग देश पर अपनी जान लुटाई आश्रित है जग जीवन जिसपर वह प्रकृति स्त्री में आती है यदि धरा धरोहर हम समझे वह जीवन सरल बनाती है इतिहास भरा है स्त्री से आकाश कल्पना चढ़ धाई प्रधान इंदिरा गांधी पहली पाटिल राष्ट्रपति बन आयी महिलाओं का परचम लहराया जब दौड़ लगाया बेटी ने भारत का मस्तक नभ छाया जब रौब जमाया बेटी ने स्वर्ण पदक और विजय तिलक सब पर अधिकार जमाना सीखा स्त्री नहीं अधीन किसी के रण में कौशल दिखलाना सीखा मिर्ज़ा नेहवाल देश का गौरव सिंधु जीत की परिभाषा स्त्री को उचित सम्मान मिले यह ज्योति करे सबसे आशा बस प्यार चाहिए यथा उचित अनुशासन नहीं भंग होगा घर घर सम्मान मिले स्त्री को पुरुष नहीं बदरंग होगा।। नाम - ज्योति प्रकाश राय पिता - श्री संत

विजय रस

 हिंदुस्तां के सरहद पर जब देश का वीरा बोलेगा लहरायेगा गगन तिरंगा मन मस्त मगन हो डोलेगा सूर्य देव के किरणों से रग-रग में तेज समायेगा भारत माता का जयकारा बच्चा-बच्चा दोहरायेगा देश द्रोहियों घुसपैठों का पुर्जा - पुर्जा खोलेगा हिंदुस्तां के सरहद पर जब देश का वीरा बोलेगा भ्रष्टाचारी गद्दारों अब अंतिम चरण तुम्हारा है अंत हुआ त्रैलोक विजेता श्री राम प्रभू ने मारा है सुनो कमलनयन अब अपनी पंखुड़िया खोलेगा हिंदुस्तां के सरहद पर जब देश का वीरा बोलेगा आजादी की चाहत में जिस जिस ने प्राण गवाये हैं याद उन्हें भी कर लो जो जीवित ना रह पाए हैं देश के खातिर अडिग रहेंगे हृदय कभी ना डोलेगा हिंदुस्तां के सरहद पर जब देश का वीरा बोलेगा जलिया वाला बाग देख कर मन में रोष उभरता है देख देश की आजादी पल भर में जोश निखरता है तब आजादी के प्यालों में ज्योति विजय रस घोलेगा हिंदुस्तां के सरहद पर जब देश का वीरा बोलेगा ज्योति प्रकाश राय भदोही उत्तर प्रदेश