चित्र भी विचित्र लगे, रोग शक्तिमान है।
मनुष्यता को भंग किया, शहर वो वुहान है।।
प्रकृति छेड़ता गया, जीव तोड़ता गया।
स्वयं पर घमंड किया, मनुष्य ही महान है।।
चित्र भी विचित्र लगे, रोग शक्तिमान है।।
मनुष्यों के रोग से, मनुष्य डगमगा रहे।
हो रही निशा जहां, विद्युत जगमगा रहे।।
औषधि विफल सबके, जो भी ज्ञानवान हैं।
चित्र भी विचित्र लगे, रोग शक्तिमान है।।
मंदिरों के द्वार सभी, बंद खुद करा दिया ।
मानवों के जीत में, खुद को भी हरा दिया ।।
दानवी प्रहार हुआ, बुद्धि भ्रांतिमान है।
चित्र भी विचित्र लगे, रोग शक्तिमान है।।
सरल राम - राम जपो, राम खेवनहार हैं।
कोरोना विषाणु मिटे, राम ही प्रहार हैं।।
विधि का ये विधान है, कि ज्योति दिव्यमान है।
चित्र भी विचित्र लगे, रोग शक्तिमान है।।
।। ज्योति प्रकाश राय ।।
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