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Showing posts from November, 2023

दीपावली का अमृत महोत्सव

आओ मिलकर दीप जलायें दीपोत्सव है आया सब मिलकर खुशी मनायें अमृत महोत्सव है छाया जैसे दूर गगन में टिम टिम करते तारे लगते प्यारे वैसे हम सब मिलकर बदलें पृथ्वी के सभी नज़ारे दूर भगाओ दूर भगाओ है जो घन घोर अंधेरा स्वच्छ हुआ है जितना आँगन उतना हो सब डेरा मन का तिमिर मिटाने खातिर दीपोत्सव है आया सब मिलकर खुशी मनायें अमृत महोत्सव है छाया मन का तिमिर मिटाने से जीवन सरल है होता मन में जिसके अंधकार वह जीवन भर है रोता लक्ष्मी - गणेश के पूजन से बुद्धि सबल है होती यदि कृपा न होती मातु भारती सारी दुनिया सोती सुख समृद्धि बढ़ाने खातिर हर मानव है धाया सब मिलकर खुशी मनायें अमृत महोत्सव है आया दीप जलाओ नाचो गाओ अवध सिया पति आयेंगे विजय पताका कीर्तिमान हिंदुत्व का मान बढ़ायेंगे अहंकार बलिदान करो ध्यान करो कुछ कर्मो का दीपावली का पर्व है आया ज्ञान भरो कुछ धर्मो का आओ मिलकर ज्योति जलाएँ छोड़ो जो भी है माया सब मिलकर खुशी मनायें अमृत महोत्सव है छाया ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश

दास्ताँ

देखा था जो भी स्वप्न वो स्वप्न छल गए गुजरी जवान उम्र ख्वाहिश भी टल गए सोचा था  वो बनेंगे  सहारा बुढ़ापे का रुपया कमाने घर से बच्चे भी कल गए    (1)  हम दो ही रह गए हैं अपनी हवेली में जीता है जैसे आदमी किस्से पहेली में वो पेड़ गिर रहा जो छाया था दे रहा फल नही तो नाम का साया था दे रहा अहमियत से ज्यादा तुम पर लुटा दिया जीता गया तुम्हे खुद को मिटा दिया मांगा था जो भी तुमने वो सब दिया तुम्हे कर्जे में डूब कर भी खुश कर दिया तुम्हे तकलीफ तब हुई जब तन से बल गए रुपया कमाने घर से बच्चे भी कल गए    (2)  क्या याद है तुम्हे या भूल तुम गए आकर हमारी बाहों में जब झूल तुम गए खुश होकर मैंने तुम्हे कंधा बिठा लिया सिर पर खड़ा किया चंदा दिखा दिया अंगुली पकड़ चले जब थोड़े बड़े हुए बैठा जमीं पे मै हाँ तब तुम खड़े हुए मुस्कान देख कर मेरा दिल मचल गया तुमको हँसाने खातिर मै फिसल गया तड़पे बहुत थे हम शाला को चल गए रुपया कमाने घर से बच्चे भी कल गए    (3)  पेंसिल रबर शियाही काॅपी दिया तुम्हे जिद पे अड़े थे जब टॉफी दिया तुम्हे जब भी दिवाली आई दीपक जलाए हम जो भी कहा था तुमने तुमको दिलाए हम तुमको ना कोई गम हो गम को भुल