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Showing posts from March, 2020

राम ही प्रहार हैं

चित्र भी विचित्र लगे, रोग शक्तिमान है। मनुष्यता को भंग किया, शहर वो वुहान है।। प्रकृति छेड़ता गया, जीव तोड़ता गया। स्वयं पर घमंड किया, मनुष्य ही महान है।। चित्र भी विचित्र लगे, रोग शक्तिमान है।। मनुष्यों के रोग से, मनुष्य डगमगा रहे। हो रही निशा जहां, विद्युत जगमगा रहे।। औषधि विफल सबके, जो भी ज्ञानवान हैं। चित्र भी विचित्र लगे, रोग शक्तिमान है।। मंदिरों के द्वार सभी, बंद खुद करा दिया । मानवों के जीत में, खुद को भी हरा दिया ।। दानवी प्रहार हुआ, बुद्धि भ्रांतिमान है। चित्र भी विचित्र लगे, रोग शक्तिमान है।। सरल राम - राम जपो, राम खेवनहार हैं। कोरोना विषाणु मिटे, राम ही प्रहार हैं।। विधि का ये विधान है, कि ज्योति दिव्यमान है। चित्र भी विचित्र लगे, रोग शक्तिमान है।। ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

स्वाति नक्षत्र

बसंत बहार वर्षा ऋतु प्यारी , हरी - भरी बारी फुलवारी। झूले पड़े नीम की डारी , सब पर भारी प्रिय याद तुम्हारी।। दमके - दामिनी मेघ गरजते , सारा - संसार मुग्ध हो घूमे। जहां प्यार रहे जनम- जनम तक , गगन - धारा की रज - रज चूमे।। धरती पर फैले तालाब बहुत , चाहे वह कितना भी निर्मल हो। उसकी प्यास बुझेगी कैसे , जिसके प्यास में नभ जल हो।। प्रकृति रूप छवि सुंदर होगा , स्वाति नक्षत्र जब कल होगा। ऐसे भारत की महिमा पर , क्यों ना मन विह्वल होगा। प्रकृति रूप छवि सुंदर होगा , स्वाति नक्षत्र जब कल होगा।। ।। ज्योति प्रकाश राय ।।

अम्मा

एक ख्वाब सजाया था मैंने, अम्मा का दुःख दूर करूँगा मै।   एक कसम उठाई थी मैंने, अम्मा का कष्ट हरूँगा मै।। जो बीता खेल लड़कपन का, वो ख्वाब मिटाई रातों में।  जिस तरह बढ़ी दुनिया मेरी, वो कसम भुलाई बातों में।।  अपनी खुशियों की खातिर, सबका बलिदान करूँगा मै।  एक ख्वाब सजाया था मैंने, अम्मा का कष्ट हरूँगा मै।। पढ़ने जाता जब विद्यालय, गुरुजन को शीश झुकाता था।   यदि नाम लिया गुरु ने मेरा, मै मन ही मन इतराता था।। वादा था उनसे भी ऐसा, जग में नाम करूँगा मै।  एक ख्वाब सजाया था मैंने, अम्मा का कष्ट हरूँगा मै।। उनके भी वादे भूल गया, अब याद नहीं है नाम उनका।  सद्गुण की शिक्षा लुप्त हुई, लुप्त हुआ परिणाम उनका।।  बचपन की यारी जिन्दा है, छुट्टी के किसी महीनें में।  मिलता नहीं सुकूँ पल भर, परिश्रम के आज पसीने में।। मित्रों से मिलने की कोशिश, फिर से भरपूर करूँगा मै।   एक ख्वाब सजाया था मैंने, अम्मा का कष्ट हरूँगा मै।।  मै किया बसेरा शहरों में, गांव से रिश्ता छूट गया।  जो ख्वाब दिखाई थी मइया, वो ख्वाब कहीं से टूट गया।।  उन रिश्ते, नाते ख्वाबों को, फिर से स

शहीद पुत्र की आश

काश लहू मेरा भी वतन के काम आ जाता। क्या गम था, जो शहीदों में नाम आ जाता।।  शरहदों से आवाज आयी , हो गया अँधेरा दीपक जलाओ  कोई है जो कह रहा संध्या हुई, पुत्र अब तो लौट आओ।।  कल फिर होगी सुबह, दिवाकर तेज हो जायेगा  ओज तुम भरना रगो में, शत्रु तब झुक जायेगा  क्यूँ व्यर्थ चिंतित हो पुत्र ? अब तो तनिक मुस्कुराओ  कोई है जो कह रहा संध्या हुई, पुत्र अब तो लौट आओ।।  आज तेरे तात का, मन बहुत मचल रहा  याद तेरी आ रही, ह्रदय भी अब पिघल रहा  वायु के झोंके से कह कर, सन्देश तुम अपना पठाओ  कोई है जो कह रहा संध्या हुई, पुत्र अब तो लौट आओ।।  सहसा कोलाहल मच गया, गाँव के बाजार में  वाहनों की भीड़ थी, जनशक्ति के सरकार में  माँ कल्पना कर कह उठी, लाल मेरा आ रहा  खुशियों में हवा पागल हुई, या पुष्प वो महका रहा  थाल लाओ आरती की, स्वागत में कोई गीत गाओ  कोई है जो कह रहा संध्या हुई, पुत्र अब तो लौट आओ।।  शरहदों के वीर थे, कुछ थी पुलिस की टोलियाँ  कुछ हाँथ में झण्डा लिये, कुछ हाँथ में थी गोलियाँ  देख सबको दंग हुई, भयभीत माँ के पाँव थे  आकाश बादल छा रहे, क्षण ध

मन के हारे हार, मन के जीते जीत

ईश्वर की कृपा से अगर आपका शरीर क्रियाशील है तो फिर आपको यह कभी नहीं सोचना चाहिए की यह कार्य बहुत कठिन है अथवा यह मुझसे नहीं होगा। आधुनिक युग में मनुष्य ही मात्र वह प्राणी है जो संसार को स्वचलित बनाये रख सकता है। यदि आप किसी कार्यालय में नौकरी करने जाते हैं तो आप वहाँ के बारे में कुछ नहीं जानते रहते हैं, लेकिन मन में यह लगन बनी रहती है की मुझे यह काम करना है तो आप उसे गलत करते हुये भी सही ढंग से करने के प्रयास में लगे रहते हैं और आखिर कार आप उस कार्य में सफल भी हो जाते हैं। सफल होने के लिए आपके विचार आपका मस्तिष्क एक जुट होकर खुद पर विश्वास करते हुये काम करना अति आवश्यक है।  कई बार ऐसा होता है की हम जिंदगी के ऊपर सब कुछ निर्भर कर लेते हैं कि जिंदगी जहाँ चाहे ले जाये, या जो भाग्य में लिखा होगा वही होगा।  इस तरह की कल्पनायें करना भी कायरता कहलाती है, और अगर आपको खुद पर विश्वास है तो आप कायर नहीं हो सकते।  एक बार की बात है प्राचीन काल के राजा चन्द्रगुप्त एक समय मन से हार मान गए थे कि खुद उनकी सेनाओं में विद्रोह हो गया है और वो कुछ नही कर सकते, उस समय उनके मन में बस एक ही बात चल रही थी

प्रभात

चिड़ियों के चहचहाने की आवाज अब आने लगी  जैसे प्रभात हो रहा इस भांति वो जगाने लगी।  सूर्य की किरणों के साथ विश्वास रग में आ रहा  उत्साह संग उमंग रूपी भाव सब पे छा रहा।  भोर बीती दिन चढ़ा अब सूर्य शक्तिमान है  पितु-मातु, गुरु की वंदना करे जो ज्ञानवान है।  आशीष का भागी बने सहयोग सबका कीजिए  पाप-प्याला त्याग कर पुण्य रस को पीजिए।  कर्म जैसा भी करो परिणाम होगा नेत्र में  सद्गुण रहा यदि आप में तो नाम होगा क्षेत्र में।  सीखना है यदि तुम्हे लहरों से जीवन सीख लो  संघर्ष मय जीवन जियो मत किसी से भीख लो।  सीख लो कुछ पर्वतों से जो धूप, वर्षा सब सहे  आँधियों में भी अडिग रहे अपनी व्यथा वो कब कहे।  पौधों से भी कुछ सीख लो फल रखते नहीं अपने लिए  छाया करे निःस्वार्थ वो टहनियों के संग सपने लिए।  सीख लो कुछ ज्योति से अंधेरों को चीरता चले  अमावसी निशा मिटे नन्हा सा जब दिया जले।  विश्वास अब आया रगो में भाव सब पे छा गया  उत्साह संग उमंग लिए सूर्य नभ में आ गया।  !! ज्योति प्रकाश राय !!

होली 2020

आप सभी को रंगो और उमंगो से भरे त्यौहार , होली की ढेर सारी शुभकामनायें  होलिका दहन हुई, प्रह्लाद अग्नि बीच रहे ! भक्त वो मिटे कहाँ, प्रभू जिसे सींच रहे !! ध्रुव को तार-तार किया, किसी अहंकार ने ॐ हरी-हरी तब, लगे ध्रुव पुकारने प्याला हरी नाम पिये, बैठे धरा बीच रहे ! भक्त वो मिटे कहाँ, प्रभू जिसे सींच रहे !! विष्णु ज्ञान राग भरे, नभ में जगमगा रहे मय के अहंकार में, मनुष्य डगमगा रहे प्रगति सीधे हाँथ में, आड़े हाँथ खींच रहे ! भक्त वो मिटे कहाँ, प्रभू जिसे सींच रहे !! आओ सभी भस्म करें, अपने-अपने पाप को ज्योति प्रज्वलित करें, ज्योति से मिलाप को आज फिर प्रमाण मिला, सत्य सबके बीच रहे ! भक्त वो मिटे कहाँ, प्रभू जिसे सींच रहे !!  !! ज्योति प्रकाश राय !!

रिश्ते की परिभाषा

जहाँ प्रेम की अभिलाषा है, वहीं रिश्तों की आशा है।  जहाँ मर्यादा बड़ों को सम्मान देती है  वहीं मानवता सबको ज्ञान देती है  रिश्तों की अपनी एक अलग पहचान होती है।  इसीलिए रिश्तों की डोर सबसे महान होती है।।  भाई - बहन का रिश्ता हो, या माँ - बेटे का नाता हो।  रिश्ता उसी का खूबसूरत है, जो हर पल मुस्कुराता हो।।  भावनाएं जब हो दिल से रिश्ते निभाने की, जरुरत नहीं पड़ती तब पास आने की।  मित्र की मित्रता हो, या अपनों का अपनत्व हो।  जहाँ बात रिश्ते की आये, सबका महत्व हो।।  सूरज का चाँद से हो, या हमारा आपसे हो, हर रिश्ते में एक ज्योति है, एक जिज्ञासा है।  जहाँ हम और आप हैं, वहीं रिश्ता है, रिश्ते की परिभाषा है।।  !! ज्योति प्रकाश राय !!