बसंत बहार वर्षा ऋतु प्यारी , हरी - भरी बारी फुलवारी।
झूले पड़े नीम की डारी , सब पर भारी प्रिय याद तुम्हारी।।
दमके - दामिनी मेघ गरजते , सारा - संसार मुग्ध हो घूमे।
जहां प्यार रहे जनम- जनम तक , गगन - धारा की रज - रज चूमे।।
धरती पर फैले तालाब बहुत , चाहे वह कितना भी निर्मल हो।
उसकी प्यास बुझेगी कैसे , जिसके प्यास में नभ जल हो।।
प्रकृति रूप छवि सुंदर होगा , स्वाति नक्षत्र जब कल होगा।
ऐसे भारत की महिमा पर , क्यों ना मन विह्वल होगा।
प्रकृति रूप छवि सुंदर होगा , स्वाति नक्षत्र जब कल होगा।।
।। ज्योति प्रकाश राय ।।
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