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Showing posts from May, 2021

लक्ष्य

धैर्य नहीं खोना है हमको, डिगा नहीं सकता कोई विचलित नहीं हृदय होगा तो, झुका नहीं सकता कोई आओ जाने रण कौशल में, लक्ष्य को जिसने पाया है नरेंद्र दत्त आत्मज्ञान पा कर, विवेकानंद कहलाया है पराधीन भारत को जिसने, विश्व जगत में खड़ा किया आध्यात्म दिखाकर भारत गौरव, अन्य देश से बड़ा किया लक्ष्य एक जब- जब होगा, तब-तब सब आनंद मिलेगा सम्मानित होगा जन-जन में, पुनः विवेकानंद मिलेगा लक्ष्य एक था भिलनी सबरी, राम दरश की प्यासी थी हार नहीं मानी जीवन में, दुखिया भले उदासी थी दरश दिये श्री राम गहन (वन) मे, लक्ष्य प्राप्त सबरी धायी अडिग रहो बस ध्येय बनाकर, अवश्य मिलेंगे रघुराई लक्ष्य बनाया आजाद भगत ने, हंस कर फंदे को चूम गए उसी लक्ष्य को पूरा करने, गांधी जी पैदल घूम गए लक्ष्य नेक हो नेक पथिक हो, जनसमूह आ जाएगा विचलित मन दर-दर भटकेगा, खुद ही खुद को खा जाएगा लक्ष्य बनाया जब अर्जुन ने, मत्स्य नयन को भेद गये लक्ष्य बनाया वसुदेव कृष्ण ने, अधर्म धरा से खेद गये आओ मिलकर संकल्प करें, हमें लक्ष्य को पूरा करना व्यर्थ नहीं है अपना जीवन, प्रकाश हृदय में भरना है ज्योति प्रकाश राय भदोही उत्तर प्रदेश- 221309

हौसला

 हिम्मत के बल पर हिमालय झुका है विद्या के धन पर विद्यालय टिका है हौसला नहीं टुटा था थे भीम गदाधारी कौरव हुए पराजित दुर्योधन को लात मारी उम्मीद थी संजोये शबरी के राम आए विश्वास प्रेम भक्ति में जूठे भी बेर खाए हौसला नहीं डिगा था प्रह्लाद का कभी भी विफल हुआ था कश्यप जल्लाद थे सभी भी विश्वास भर के रग में आगे बढ़ी थी रानी फिरंगी को पस्त करके पिला दिया था पानी हौसला नहीं था टूटा राणा लड़े लड़ाई खा कर के घास रोटी शत्रु पर किए चढ़ाई सेना भले ही कम थी हिम्मत की ना कमी थी शिवा क्षत्रपति थे मां भवानी की सर ज़मी थी अंधेरों को चीर कर के दिया करे उजाला हमने प्रयत्न कर के हिमालय समेट डाला हौसला रहेगा हममे हम जंग जीत लेंगे अपनों के साथ होकर हर रंग प्रीत लेंगे आओ करें हम मिलकर ज्योति संग इरादा पिछले प्रयत्न से भी होगा प्रयत्न ज्यादा ज्योति प्रकाश राय भदोही उत्तर प्रदेश 8879648743

पश्चाताप

  पश्चाताप (भाग -1) मुख्य किरदार ममता, संजीव सहायक किरदार तमन्ना, विनय, विकास, इत्यादि। ममता - संजीव तुम बैठो मैं चाय बनाकर लाती हूं। (रसोई घर से) ओ हो माफ करना संजीव अभी - अभी गैस खत्म हो गया सिर्फ पानी ही गर्म हुआ था , चलो आज हम लोग पास वाले चाय के टपरी से चाय पीते हैं वहां ताजी हवाओं का भी आनंद मिलेगा। संजीव - अभी नहीं ममता जी आप बैठिए मै बस अभी - अभी खाना खा कर आ रहा हूं। शाम को चलेंगे वहां चाय पीने और ठंडी हवाओं का लुत्फ उठाने। ममता - ठीक है अच्छा! बैठो मै तुम्हारे लिए एक पत्रिका रखी हूं उसे पढ़कर तुम्हे अच्छा लगेगा। (संजीव को पत्रिका देते हुए) पता है यह पत्रिका मेरे जीवन की अत्यंत महत्वपूर्ण पत्रिका है क्योंकि यह सौवीं (सतक) पत्रिका है जिसे देखकर मै इतना खुश हुई थी कि मानों मेरे मन को दो पल के लिए हर ग़म से आजादी मिल गई हो और मै दुनिया के हर अच्छे - बुरे कर्म को छोड़ मात्र खुशी भरे नेत्रों से ओझल और खुद में सराबोर हो रही थी। संजीव - इतना कुछ क्या है इस पत्रिका में ? जो आप बताते हुए भी इतना तनावमुक्त है और किसी विशेष पल का आनंद प्राप्त कर रही हैं। (पत्रिका पढ़ने पर) अरे वाह ममता ज