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Showing posts from April, 2023

सपना और हकीकत

आज फिर मेरे सपने में माँ आ गई हर एक बात पर बहुत कुछ समझा गई मै भी सपनों में खोया नींद भर सोता रहा बचपन की तरह आज भी जिद कर के रोता रहा माँ की नजर में बेटा बच्चा ही रहता है वो चाहे लाख बुरा क्यूँ ना हो अच्छा ही रहता है आज एक सवाल पर माँ बहुत कुछ सिखा गई मुझे सपनों में भी आईना दिखा गई सवाल ये था मेरा की मेरा प्रेम किसी और से भी जुड़ गया है कुछ इधर तो कुछ उधर भी मुड़ गया है माँ ने कहा वो किसी की बेटी है खिलवाड़ मत करना दिल बहलाने के लिए ऐसा जुगाड़ मत करना वो किसी की इज्जत है किसी के दिल का टुकड़ा होगी पसंद यदि तेरी है तो चाँद का मुखड़ा होगी मेरी तुझसे एक गुजारिश है तू उससे ये बोल देना वो घर की दहलीज का भी खयाल रखे ये तोहफा अनमोल देना अचानक से मेरी आँख खुली सवेरा हो गया था बड़ा ही खूबसूरत था वो सपना जिसमें मै खो गया था संदेश ये है दुनिया को ज्योति प्रकाश के जरिए सपना हो या हकीकत खिलवाड़ मत करिए ज्योति प्रकाश राय Event vashi Oct. 2019

गुड़गांव

एक बार फिर जिंदगी छाँव तक ले आई ये उम्मीद बीच लहरों से नाव तक ले आई सुना था उनको चलाने वाली भी जिंदगी थी मै फिसला तो ये जिंदगी पाँव तक ले आई छोड़ कर शहर एक दम से थम सा गया था फिर मेरी जिंदगी मुझे मेरे गाँव तक ले आई सिलसिला ता-उम्र चलता रहेगा लेखन का भले ही जिंदगी अभी गुड़गांव तक ले आई ज्योति प्रकाश राय

बिन मौसम बरसात

 कल ही फसल थी कटने वाली उत्साह - उमंगें थी डटने वाली फिर  कैसी काली रात हुई है हे राम, यह कैसी बरसात हुई है दिन दिन भर लहू बहाया था क्या रब को रास न आया था जंग जीत कर भी कैसी मात हुई है हे राम, यह कैसी बरसात हुई है इस बार फसल थी डटी हुई सब की नजर से थी बटी हुई फिर भी बेबस हालात हुई है हे राम, यह कैसी बरसात हुई है बारिश किसान की ज्योती है बारिश से ही खेती होती है फिर यह कैसी आघात हुई है हे राम, यह कैसी बरसात हुई है क्या बारिश ने किया अंधेरा है या कृषक ने खुद मुह फेरा है क्यूँ तना तनी जज्बात हुई है हे राम, यह कैसी बरसात हुई है इंसा ने तकनीक लगाई है खुद प्रकृति से बैर बढ़ाई है बस इसी लिए आपात हुई है बिन मौसम बरसात हुई है ज्योति प्रकाश राय

स्त्री का रूप

जन्म लेती है जब एक नन्ही सी कली महकाती है घर आंगन और हर गली बड़े लाड प्यार से थी संस्कारों में ढली हाँ वो खुश दिल थी और थी मनचली उसकी उम्र बढ़ती गई दायरे घटते गए उसकी चाहत उमंगें समय से पटते गए वो बेटी बन रही फिर बहन बन गई उम्र के पड़ाव में फिर वजन बन गई बस हाथ पीले हुए फिर लहू बन गई वो पत्नी बनते ही एक बहू बन गई वक्त के साथ प्रीतम की जाँ बन गई नया जन्म हुआ अब वो माँ बन गई एक नन्ही कली से वो गुलाब हो गई वक़्त के हर सवाल का जवाब हो गई ता-उम्र लड़ती रही सीढ़िया चढ़ती रही एक ही रूप से सारे रिश्ते गढ़ती रही जिसने कहा बेटी हुई सत्या नाश हो गई हा वही मनचली किसी की सास हो गई खुल कर जीना इन्हें अब है आने लगा इनके रंगत का असर नभ में छाने लगा ये झाँसी इंदिरा और सरोजनी थी बनी कल्पना चावला बन आसमां तक तनी फिर ये प्रतिभा हुई रंग निखरता गया इनके जलवों से भारत सँवरता गया अब ये पढ़ती हैं मौसम की सारी घड़ी कद हों छोटे भले पर अनुभवी हैं बड़ी ज्योति प्रकाश राय