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Showing posts from 2024

ग़जल

मै हर रोज टूटता हूँ , बिखर जाता हूँ उसको याद करता हूँ, संवर जाता हूँ सोचता हूँ कि अब उसको भुला दूँगा कम्बख़्त रहम दिल है, मुकर जाता हूँ यूँ तो ज़ाम पी कर भी नशा नही होता दर्द-ए- ग़म पीता हूँ, उतर जाता हूँ उसी को छोड़ दूँ, या सब को छोड़ दूँ इसी कश्मकस में रोज गुजर जाता हूँ ये उम्र है, जवानी है, या कुछ और है गहराई से देखता हूँ, तो ठहर जाता हूँ कभी कभी जब वो सामने आ जाए मै तालाब हो कर भी लहर जाता हूँ मै परिंदा तो नही जो डाल - डाल बैठूँ ज्योति हूँ, जलता हूँ, तो नज़र आता हूँ ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश

राम राम (भजन)

इस भजन में कुल 50 बार राम शब्द का प्रयोग किया गया है। यदि एक बार राम राम बोलने से 108 मनकों की माला फेरने का पुण्य प्राप्त होता है तो इस भजन में कुल 25 बार राम राम बोलने का सौभाग्य प्राप्त होता है। जिसका अर्थ यह है कि, 25×108=2700 इस प्रकार यह भजन दिन में चार बार भजने से 04×2700=10800 मनकों का जाप हो जाता है। जो एक मनुष्य को 10800 बार ईश्वर का स्मरण करने के बराबर है। ( वैज्ञानिक विधि से एक स्वस्थ मनुष्य 24 घण्टे में 21600 बार स्वास लेता है, जिसमें वह 12 घण्टे दिनचर्या में व्यतीत कर देता है। इसलिए 10800 बार जप कर पाना संभव नही है इसलिए दो शून्य हटा कर 108 मनकों का जप करना पवित्र और पुण्य माना गया है। इसलिए इस भजन को चार बार कहने मात्र से 10800 मनकों का जप सरलता से संभव हो जाएगा।  राम राम रटता है राम राम करता है फिर भी न मानता है राम तेरे मन में राम राम कहता है राम राम सुनता है फिर भी न जानता है राम हैं भजन में।।  राम राम धुन प्यारे राम राम सुन प्यारे राम नाम बसा सारे जन के नयन में।।  राम राम द्वेष नही राम राम क्लेश नही राम नाम मिलता है धनी के सयन में।।  राम राम शीतल जल राम राम पावन थल र

स्त्रीयों का द्वेष

(इसमें तीन स्त्रियाँ सही हैं, तो तीन स्त्रियाँ गलत भी हैं) एक औरत ही औरत के दुःख का कारण होती हैं वह खुद ही द्वेष बढ़ाती हैं खुद ही बैठ के रोती हैं जब तक माँ बेटी होती हैं हर कष्ट खुशी से सहती हैं बन गयी बहू तो फिर सातवें आसमान पर रहती हैं दिन रात पहाड़ा पढ़ती हैं और नही चैन से सोती हैं वह खुद ही द्वेष बढ़ाती हैं खुद ही बैठ के रोती हैं एक बहू के आने से सास बन गयी सभी में ख़ास सास कहे बात सुनो कहूँ भला क्या जूना इतिहास अपमानित कर स्त्री को ईर्ष्या के बीज वो बोती हैं वह खुद ही द्वेष बढ़ाती हैं खुद ही बैठ के रोती हैं ननद बनी वह भी स्त्री भाभी बनी जो वह भी स्त्री देवरानी बनी वह भी स्त्री जेठानी बनी वह भी स्त्री बात करें वो बढ़ चढ़ कर आप ही आपा खोती हैं वह खुद ही द्वेष बढ़ाती हैं खुद ही बैठ के रोती हैं इतिहास गवाह है युग युग से एक से दो यदि हो जाएं भगवान ही जाने दिन बीते रात शान्ति से सो जाएं गांधारी द्रौपदी सिया सुपर्णखा सुरुचि सुनीति होती हैं वह खुद ही द्वेष बढ़ाती हैं और खुद ही बैठ के रोती हैं यदि स्त्री स्त्री को समझे परिवार नही फिर बिगड़ेगा स्नेह - प्रेम घर बरसेगा और स्वर्ग धरा पर उतरे

अयोध्या की व्याकुलता (गीत)

अयोध्या थी बड़ी व्याकुल कहाँ अब राम आयेंगे अयोध्या है बड़ी हर्षित हमारे राम आयेंगे थी सूनी हर गली अपनी था सूना हर महल अपना अयोध्या नाथ बिन तुम्हरे अयोध्या थी महज सपना प्रकाशित हो उठी गलियाँ मेरे भगवान आयेंगे अयोध्या है बड़ी हर्षित हमारे राम आयेंगे दरश पाने की हो इच्छा तो शबरी माँ सी भक्ती हो हृदय में धैर्य हो अपने भले ही तन की मुक्ती हो अंतिम क्षण में आ कर के वो जूठे बेर खायेंगे अयोध्या है बड़ी हर्षित हमारे राम आयेंगे भरोसा था विभीषण को मिलेंगे राम चिंतन से कहाँ मालूम था जग को जितेंगे प्रभु दसानन से रहो चाहे जहाँ जग में सियापति मिल ही जायेंगे अयोध्या है बड़ी हर्षित हमारे राम आयेंगे अयोध्या फिर हुई जगमग प्रतिष्ठा प्राण की होगी लखण, रिपुसूदन, भरत के बाण की होगी हनुमत भक्त यह बोले नदी सरयू नहायेंगे लिख ज्योति यह बोले अयोध्या दर्शन को जायेंगे अयोध्या है बड़ी हर्षित हमारे राम आयेंगे अयोध्या थी बड़ी व्याकुल हमारे राम आयेंगे अयोध्या है बड़ी हर्षित हमारे राम आयेंगे ज्योति प्रकाश राय