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Showing posts from February, 2021

स्मृति शेष

 उड़ गए पखेरू छोड़ जहां को अब नहीं कोई भी अपना है बीता जीवन सुख में दुख में अब याद बची और सपना है बाजार लगा था जो कुछ भी अब बदल गया है मातम में बिलख रहे हैं जो थे अपने बस धीरज ही अब मरहम है घर से निकाल अब बाहर है पार्थिव शरीर से प्यार किसे धरती माता आकाश पिता है अब प्रेम किसे और चाह किसे बन गई कहानी मेरी बातें चर्चित हूं हर मुख मंडल पर कहते सुनते हंसते रोते मै छोड़ चला नभमंडल पर मै जिंदा हूं रीति रिवाजों में अब परंपरा में बसाना तुम करना याद मुझे तिथि पर हस कर रीति निभाना तुम ले रहा विदा मै इस जग से मत आंसू और बहाना तुम अब कसम तुम्हे है घरवालों खुशियों संग मुस्काना तुम

मणिकर्णिका घाट

 यह घाट बनारस का, स्थापित है खुद में है मोक्ष द्वार यह भी, ईश्वर हैं रज रज में कलकल है करती, अविरल  जल गंगा मुक्ति मिले सबको, मनु संग कीट पतंगा अंखियों के नीर क्यूं बहाते हैं लोग यहां पापियों को पुण्य से मिलाते हैं लोग यहां शंखों की ध्वनि से आभास हो रहा है धुआं उठा है नभ में आकाश रो रहा है ज्योति प्रज्वलित हुई मन के द्वेष मिट गए ओम शांति पाठ से ग्रह और क्लेश मिट गए नमन है शिव को भाव से नयन के लगाव से भक्ति रस में डूब कर जोगिया के रंगाव से मणिकर्णिका महान है प्रातः स्नान है वाराणसी के घाट में ज्योति दिव्यमान है ज्योति प्रकाश राय

गणतंत्र दिवस

 लिख कर आज लहू से, दिल की प्यास बुझाएंगे हिन्द देश के झण्डे को, अम्बर तक लहराएंगे आंख उठा कर ऊपर देखो, भारत आज खड़ा नभ में आत्मशक्ति से एक बना है, विश्वास जमा है रग रग में हम याद रखेंगे वीरों को, मिलकर शीश झुकाएंगे हिन्द देश के झण्डे को, अम्बर तक लहराएंगे हिन्दुस्तां परिवार हमारा, सारा सच भी हिस्सा है मिटा देंगे आतंक यहां से, जो जन्म जन्म का किस्सा है गणतंत्र दिवस के अवसर पर, मिलकर सौगंध उठाएंगे हिन्द देश के झण्डे को, अम्बर तक लहराएंगे अमर बने जो देश के खातिर, उनको तिलक लगाना है कश्मीर धारा से गद्दारों को, मिलकर आज भगाना है देश भक्ति के फूलों से, सारा सच महकाएंगे हिन्द देश के झण्डे को, अम्बर तक लहराएंगे शास्त्री बोस जवाहर गांधी, आजाद आज भी जिन्दा हैं स्वागत है श्री मान सत्य का, निंदनीय की निन्दा है भारत मां की रक्षा खातिर, मौत से भी टकराएंगे हिन्द देश के झण्डे को, अम्बर तक लहराएंगे गद्दारों के खंजर खा कर, धरा को जिसने सींचा है उन बलिदानी बेटों से, भारत का मस्तक ऊंचा है छुपे हुए गद्दारों को, हम खींच के बाहर लाएंगे हिन्द देश के झण्डे को, अम्बर तक लहराएंगे भिन्न भिन्न हैं लोग यहां पर, भिन

बहिष्कार

हैवान आंसुओं में सब डुबोना चाहता है तबाह करके सबको अब रोना चाहता है उसने खुद लुटाई इज्जत अपने वतन की अब ढोंगी फरियाद कर संजोना चाहता है हैवानियत की  सारी हदें  लांघ दी जिसने वो अब इंसानों में सामिल होना चाहता है बहिष्कार करना है ऐसे फरियादियों का जो ईर्ष्या के बीज भू पर बोना चाहता है बयां करता है सारा सच जिसकी सच्चाई वो कांटा अब गुलाबी पुष्प होना चाहता है दबाकर आज भी रंजिश दिल में साहिब मिलकर दरिंदा मुकम्मल होना चाहता है रास आया नहीं चमकता हिंदुस्तान जिसे वो कालिख लगा कर मुंह धोना चाहता है अब सच्चाई का सिक्का उछालेगा सारा सच क्यों चिल्लाकर बुजदिल चुप होना चाहता है गुनाहों को यकीनन माफ़ कर देता भारत पर कौन अपने परिवार को खोना चाहता है जिसने धज्जियां उड़ाई संविधान की पूरी वो दागदार अब सभी दाग धोना चाहता है बहिष्कार करना होगा बुराइयों का जड़ से जो अंधेरा कायम कर खुश होना चाहता है बेपरवाह आलम संग साजिशों की सियासत धोखेबाज छिपने को गली कोना चाहता है जिसकी जमानत भी जब्त हो गई घर में वो लालकिले का सरदार होना चाहता है कुछ लोग आए हैं उसके बीच बचाव करने उन्हें पता नहीं तख्तापलट होना चाहता है देख