उड़ गए पखेरू छोड़ जहां को अब नहीं कोई भी अपना है बीता जीवन सुख में दुख में अब याद बची और सपना है बाजार लगा था जो कुछ भी अब बदल गया है मातम में बिलख रहे हैं जो थे अपने बस धीरज ही अब मरहम है घर से निकाल अब बाहर है पार्थिव शरीर से प्यार किसे धरती माता आकाश पिता है अब प्रेम किसे और चाह किसे बन गई कहानी मेरी बातें चर्चित हूं हर मुख मंडल पर कहते सुनते हंसते रोते मै छोड़ चला नभमंडल पर मै जिंदा हूं रीति रिवाजों में अब परंपरा में बसाना तुम करना याद मुझे तिथि पर हस कर रीति निभाना तुम ले रहा विदा मै इस जग से मत आंसू और बहाना तुम अब कसम तुम्हे है घरवालों खुशियों संग मुस्काना तुम
मेरी कविता और कहानी और अन्य रचनाओं का एक संग्रह है, यह मेरी उपलब्धियों को मेरे साथ बनाये रखने में मेरी मदद करता है। मेरा ब्लॉग भी मेरी पहचान का एक साधन है। ज्योति प्रकाश राय I have a collection of poetry and story and other compositions, it helps me keep my achievements with me. My blog is also a tool for my identity. Jyoti Prakash Rai