काश लहू मेरा भी वतन के काम आ जाता।
क्या गम था, जो शहीदों में नाम आ जाता।।
शरहदों से आवाज आयी , हो गया अँधेरा दीपक जलाओ
कोई है जो कह रहा संध्या हुई, पुत्र अब तो लौट आओ।।
कल फिर होगी सुबह, दिवाकर तेज हो जायेगा
ओज तुम भरना रगो में, शत्रु तब झुक जायेगा
क्यूँ व्यर्थ चिंतित हो पुत्र ? अब तो तनिक मुस्कुराओ
कोई है जो कह रहा संध्या हुई, पुत्र अब तो लौट आओ।।
आज तेरे तात का, मन बहुत मचल रहा
याद तेरी आ रही, ह्रदय भी अब पिघल रहा
वायु के झोंके से कह कर, सन्देश तुम अपना पठाओ
कोई है जो कह रहा संध्या हुई, पुत्र अब तो लौट आओ।।
सहसा कोलाहल मच गया, गाँव के बाजार में
वाहनों की भीड़ थी, जनशक्ति के सरकार में
माँ कल्पना कर कह उठी, लाल मेरा आ रहा
खुशियों में हवा पागल हुई, या पुष्प वो महका रहा
थाल लाओ आरती की, स्वागत में कोई गीत गाओ
कोई है जो कह रहा संध्या हुई, पुत्र अब तो लौट आओ।।
शरहदों के वीर थे, कुछ थी पुलिस की टोलियाँ
कुछ हाँथ में झण्डा लिये, कुछ हाँथ में थी गोलियाँ
देख सबको दंग हुई, भयभीत माँ के पाँव थे
आकाश बादल छा रहे, क्षण धूप तो क्षण छाँव थे
आँख मिचोली बंद करो, पुत्र मुझको ना सताओ
कोई है जो कह रहा संध्या हुई, पुत्र अब तो लौट आओ।।
तिरंगे से लिपटा हुआ, कौन है यह सो रहा ?
तात को आवाज दी, क्या है यह जो हो रहा ?
कुछ तो कहो कुछ तो सुनो, कोई मुझको भी बताओ
कोई है जो कह रहा संध्या हुई, पुत्र अब तो लौट आओ।।
तात मन भी क्षुब्ध था, क्रंदन करे किस धर्म से
वीर सुत आया महल में, अभिनन्दन करे किस कर्म से
उसके ह्रदय की वेदना, शायद ही तुम समझ पाओ
कोई है जो कह रहा संध्या हुई, पुत्र अब तो लौट आओ।।
विधि का विधान देख कर, तात भी हैरान था
किस कर्म का पालन करे, हर कर्म से अज्ञान था
लेकर चले शमशान को, जो साथ आये वीर थे
ललाट, मुख मलीन था, मन से वो गंभीर थे
दे कर सलामी कह रहे, तात अब अग्नि लाओ
कोई है जो कह रहा संध्या हुई, पुत्र अब तो लौट आओ।।
तात पर जो घात हुआ, जाने कैसे वो सह रहा
प्रतिशोध की ज्वाला उठी, वीर से वो कह रहा
वीरगति को प्राप्त कर, पुत्र मेरा सो रहा
इतिहास की शैया बनी, दाह जिसका हो रहा
जय हिन्द का उदघोष कर दो, जय हिन्द का नारा लगाओ
कोई है जो कह रहा संध्या हुई, पुत्र अब तो लौट आओ।।
!! ज्योति प्रकश राय !!
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