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Showing posts from February, 2020

मेरी माँ की ममता ने संसार बना कर रक्खा है।

मेरी माँ की ममता ने संसार बना कर रक्खा है।  जिस बंधन में पले - बढ़े वो परिवार बना कर रक्खा है।  मेरी माँ की ममता ने संसार बना कर रक्खा है।  उसके आँचल की छाया ही उस नभ-मण्डल से प्यारी लगती है।  दिन-रात करे वो काम भले पर राजदुलारी लगती है।  मेरे खानो की थाली का जूठा भी उसने चक्खा है।  मेरी माँ की ममता ने संसार बना कर रक्खा है।  सावन - भादों की बारिश हो या पूस - माघ का मौसम हो।  या गर्मी जेष्ठ माह की हो या कष्टों में जीवन हो।  मुझ पर आंच न आने पाए इस तरह छुपा कर रक्खा है।  मेरी माँ की ममता ने संसार बना कर रक्खा है।  उस माँ की छाया बन कर आयी बहन हमारी है।  जिसके साथ लड़ूँ - झगड़ूँ पर बातें उसकी प्यारी हैं।  मैंने उसको जीवन का सरकार बना कर रक्खा है।  मेरी माँ की ममता ने संसार बना कर रक्खा है।  देख - भाल करती सबका माँ का हाथ बटाती है।  सुन लेती डाँट बिना गलती के कभी न वह गुस्साती है।  ऐसी सरल - सहज है बहना घर - द्वार सजा कर रक्खा है।  मेरी माँ की ममता ने संसार बना कर रक्खा है।  तौलों न खुशियाँ रुपयों से माँ की ममता मत छीनों।  दे सको अगर कुछ पल दे दो बहनो का रिश्ता मत छ