ऐ बसंती हवा रुक तो जरा
कुछ कहना है तुझसे
सुन तो जरा
ये सरहद है मेरे देश
मेरे वतन की
मै इसका सिपाही
कसम है कफ़न कि
ये बंदूक ये गोली, और खून की होली
सब क़यामत है, गुन तो जरा
ऐ बसंती हवा
कुछ कहना है तुझसे
सुन तो जरा
तू वाकिब है मेरे, रहन और सहन से
ये जख्म के निशा, और चोटिल बदन से
ये हांथ पर निशा पहली जंग का है
ये आंखों का पानी लहू रंग का है
ये निशा ये रंग, कुछ चुन तो जरा
ऐ बसंती हवा
कुछ कहना है तुझसे
सुन तो जरा
मेरे गांव में रहते मेरे यार हैं
मेरे बचपन के साथी
बड़े दिलदार हैं
मेरा घर मेरी मां है वहीं
उनसे मिलने के सपने
बुन तो जरा
ऐ बसंती हवा
कुछ कहना है तुझसे
सुन तो जरा
मै बेटा हूं उसका
काम वतन के आना है
मै खून हूं उसका
सरहद से मिल जाना है
गर्व करना मुझपर मेरे यारों
जब मिट्टी में मिल जाऊंगा
मै यार हूं तुम्हारा
काम वतन के आऊंगा
।। ज्योति प्रकाश राय ।।
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