विश्व को आगोश में, ले रहा जो कौन है ?
क्या विधि का यही विधान है ?
या रचना ही उसकी यौन है ?
विश्व को आगोश में, ले रहा जो कौन है ?
क्या सचमुच विनाश हो रहा ? या कलयुगी परिवेश है,
विलख रहा विश्व सारा, क्या मृत्यु का आवेस है ?
यदि जग सम्हालता है वही, तो आज वह क्यूं मौन है ?
विश्व को आगोश में, ले रहा जो कौन है ?
क्या मान कुछ भी नहीं पुष्प का ? या दीप सारे बुझ गये?
क्या मंत्रोच्चार बंद हुये ? या धर्म ही अरुझ गये ?
क्या सत्य डिगा विश्व भर का ? या खेल कोई हो रहा ?
किस मद में है तू हे विधाता ? देख जग यह रो रहा ।
कोई अछूता नहीं है, तेरे भक्त भी टूटे हुये हैं
रूठा है तू इस सार से, या भक्त ही रूठे हुये हैं ?
प्रार्थना स्वीकार कर, हृदय से ज्योति कर रहा।
तुझमें बसा संसार तेरा, कैसे विलख कर मर रहा।।
दान दे जीवन इन्हें, अज्ञान है यह जान कर।
विनती करे यह ज्योति तुझसे, दया कर इंसान पर।।
मिटा दे सारे रोग जग से, अब तो बस चमत्कार कर।
प्रार्थना सुन हे विधाता, सुख-शांति का आविष्कार कर।।
।। ज्योति प्रकाश राय ।।
क्या विधि का यही विधान है ?
या रचना ही उसकी यौन है ?
विश्व को आगोश में, ले रहा जो कौन है ?
क्या सचमुच विनाश हो रहा ? या कलयुगी परिवेश है,
विलख रहा विश्व सारा, क्या मृत्यु का आवेस है ?
यदि जग सम्हालता है वही, तो आज वह क्यूं मौन है ?
विश्व को आगोश में, ले रहा जो कौन है ?
क्या मान कुछ भी नहीं पुष्प का ? या दीप सारे बुझ गये?
क्या मंत्रोच्चार बंद हुये ? या धर्म ही अरुझ गये ?
क्या सत्य डिगा विश्व भर का ? या खेल कोई हो रहा ?
किस मद में है तू हे विधाता ? देख जग यह रो रहा ।
कोई अछूता नहीं है, तेरे भक्त भी टूटे हुये हैं
रूठा है तू इस सार से, या भक्त ही रूठे हुये हैं ?
प्रार्थना स्वीकार कर, हृदय से ज्योति कर रहा।
तुझमें बसा संसार तेरा, कैसे विलख कर मर रहा।।
दान दे जीवन इन्हें, अज्ञान है यह जान कर।
विनती करे यह ज्योति तुझसे, दया कर इंसान पर।।
मिटा दे सारे रोग जग से, अब तो बस चमत्कार कर।
प्रार्थना सुन हे विधाता, सुख-शांति का आविष्कार कर।।
।। ज्योति प्रकाश राय ।।
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