चार महीने की ये मोहब्बत, फिर बंजर कर के जाना
सुन बादल तू ही बतला धरती पर क्या आरोप लगाना
तेरे विरह की पीड़ा में किस तरह जिस्म झुलसाते हैं
प्रेम किए जो नदी - नहर सब तुझमें सिमटते जाते हैं
तेरे प्रेम के कारण ही दुनिया को अपनी गहराई बताना
सुन बादल तू ही बतला धरती पर क्या आरोप लगाना
काले रंग की क्या शोभा जो पक्षी भी पागल फिरते हैं
बोले पपीहा मोर नाचते वन उपवन हिलते डुलते हैं
सुन सबकी अभिलाषा सबके हृदय अनुराग जगाना
सुन बादल तू ही बतला धरती पर क्या आरोप लगाना
क्या है तेरी आवाजों में क्यूँ सुनकर बेचैनी बढ़ती है
क्यूँ विरहन पिय बिन पागल हो करवट खूब बदलती है
तन मन की और रन वन की काम है तेरा आग बुझाना
सुन बादल तू ही बतला धरती पर क्या आरोप लगाना
बस तेरे एक बूँद को पा कर कैसे उपवन खिलता है
आ देख कभी इस धरती पर कैसे जीवन मिलता है
स्वार्थ से तू आता जाता फिर क्या तुझसे प्रीत लगाना
सुन बादल तू ही बतला धरती पर क्या आरोप लगाना
ज्योति प्रकाश राय
भदोही, उत्तर प्रदेश
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