यह घाट बनारस का, स्थापित है खुद में
है मोक्ष द्वार यह भी, ईश्वर हैं रज रज में
कलकल है करती, अविरल जल गंगा
मुक्ति मिले सबको, मनु संग कीट पतंगा
अंखियों के नीर क्यूं बहाते हैं लोग यहां
पापियों को पुण्य से मिलाते हैं लोग यहां
शंखों की ध्वनि से आभास हो रहा है
धुआं उठा है नभ में आकाश रो रहा है
ज्योति प्रज्वलित हुई मन के द्वेष मिट गए
ओम शांति पाठ से ग्रह और क्लेश मिट गए
नमन है शिव को भाव से नयन के लगाव से
भक्ति रस में डूब कर जोगिया के रंगाव से
मणिकर्णिका महान है प्रातः स्नान है
वाराणसी के घाट में ज्योति दिव्यमान है
ज्योति प्रकाश राय
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