ना जीने की तमन्ना है ना मरने का बहाना है
किस तरह करू रुखसत अपना ही बेगाना है
ऐ मेहताब बता दे तू क्या हिज्र बताऊँ मैं
हो गया हू मै खाली अब लुट रहा खजाना है
सुनता न कोई दिल की दिलदार भले हैं सब
पागल हो कर फिरता हर सख्स दिवाना है
मेरे यार जरा सुन ले यह दौर फरेबी है
लूटे है वही तुझको जिसे यार बचाना है
अब तो छिप जा ऐ आफताब बादलों में
किसे तेरी जरूरत है औ किसे जगाना है
शहर की क्या गलती वो कहा सिखाया कुछ
सीखे हैं लोग खुदी कहा आग लगाना है
ना जाने क्यूँ लगती यह तस्वीर तेरी प्यारी
हर सख्स खिंचा आता क्या दर्द मिटाना है
रूठा है खुद का दिल खुद के ही दिल से
ऐ ज्योति दिल-ए-नादा आलम ये सयाना है
ज्योति प्रकाश राय
भदोही, उत्तर प्रदेश
Comments
Post a Comment