वीर जटायू के जीवन का वर्णन करो तुम्ही हे राम
तुम्ही अहिल्या के उद्धारक तुम्ही वृद्ध सबरी के धाम
ज्योति कलम की आभा के तुम्ही सुबह दोपहर शाम
तुम्ही प्रमाणित करते हो वीर जटायू रावण संग्राम
सुनकर सिया विलाप जटायू हुन्कार भरे नभ में छाए
त्रैलोक विजेता रावण पर सिया हरण आरोप लगाए
कहा जटायू हे रावण क्या यही भुजाओं में बल है
कपटी बन हरण करे नारी का यही शक्ति प्रबल है
लानत है बीस भुजाओं पर इन पर गुमान क्या करना
मर चुके नेत्र से तुम मेरी कायर तुझसे रण क्या लड़ना
अट्टहास करता रावण तू मुझको आज डराता है
मेरे प्रांगण में रहकर मुझ पर ही रौब जमाता है
चल चल रे निर्बल तू खग है मै तुझको छोड़ रहा
तेरा मर्दन क्या करना क्यू मौत से नाता जोड़ रहा
पर्वत समान काया लेकर पंखों से वायु झकोरे हैं
अरुण पुत्र वीर जटायू रावण को आज बटोरे हैं
इस तरह प्रहार किया खग ने विजय पताका टूट गया
शक्ति हीन समझा जिसको वह शक्ति वेग से लूट गया
कानों के कुंडल टूट गिरे रावण ओझल घबराया है
आज दसानन प्रथम बार ऐसे खग से टकराया है
कर के सचेत बोला पक्षी ऐ रावण काल बनी सीता
खर दूषण से समझ ले तू है राम प्रिया जननी सीता
सुंदर नयनों वाली यह अब सिया हमारी रानी है
हट जा बाट छोड़ पक्षी या खत्म तेरी जिंदगानी है
चौदह बाण चला कर रावण गरुड़ राज पर वार किया
उसी वेग से वीर जटायू रावण पर पुनः प्रहार किया
देख जटायू के शौर्य को हर्षित है देव ऋषी सारे
लगता है आज पराक्रम में रावण के हैं वारे न्यारे
तत् क्षण रावण एक साथ सौ बाणों को भर डाला
गरुड़ राज के पंखों को छिद्र छिद्र वह कर डाला
यह देख क्रोध की ज्वाला में धर दबोच ले उड़ा धनुष
दो खंड किया ऐसे फेका तृण के समान भू पड़ा धनुष
अब भी मै तुझसे कहता हूँ जा पंचवटी मे छोड़ सिया
है देवी राम प्रिया मूरख जननी सा रिश्ता जोड़ सिया
कर में त्रिशूल लेकर रावण खग पर इस तरह से फेका है
रुक गयी हवा थम गया गगन भौचकित हुआ जो देखा है
जा लगा त्रिशूल कलेजे पर गिर गया जटायू धरती पर
सिंहनाद सा गर्जन कर रावण रथ चला स्फुर्ती कर
क्षण भर में उड़ान भरा वीर रथ पर झपटा रथ लहराया
छिन्न भिन्न कर अश्व सभी सारथी का मस्तक बिखराया
कर के प्रहार महाप्रलय सा रावण को मूर्छित कर डाला
शस्त्र विहीन हुआ रावण चोंचों से हर अंग कुतर डाला
पुष्पों की वर्षा हुई गगन से राम भक्त जब नभ छाया
तब उठा दसानन क्रोधित होकर सारा अम्बर थर्राया
हस कर बोला वीर जटायू रावण खग से टकराया है
देख शक्ति मुझमे कितनी क्यूं इतना तू अकुलाया है
रावण गदा चलाया तब तक वीर जटायू के ऊपर
वापस आ गिरा गदा उस पर जैसे जटायू को छू कर
आह्वान किया चंद्रहास का दोनों पर को तब काटा है
राम - राम रटते - रटते अंतिम क्षण खग ने बाँटा है
राम लक्ष्मण के दर्शन हों अपने प्राणों को रोक रहा
उसको भय नही मृत्यु की कुछ ना मरने का शोक रहा
ऐसे खगराज जटायू को मै ज्योति हृदय में बसाता हूँ
हे राम तुम्हारी जय जय हो मै तुमको शीश झुकाता हूँ
ज्योति प्रकाश राय
भदोही, उत्तर प्रदेश
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