Skip to main content

खगराज जटायू

 वीर जटायू के जीवन का वर्णन करो तुम्ही हे राम

तुम्ही अहिल्या के उद्धारक तुम्ही वृद्ध सबरी के धाम


ज्योति कलम की आभा के तुम्ही सुबह दोपहर शाम

तुम्ही प्रमाणित करते हो वीर जटायू  रावण संग्राम


सुनकर सिया विलाप जटायू हुन्कार भरे नभ में छाए

त्रैलोक विजेता रावण पर सिया हरण आरोप लगाए


कहा जटायू हे रावण क्या यही भुजाओं में बल है

कपटी बन हरण करे नारी का यही शक्ति प्रबल है


लानत है बीस भुजाओं पर इन पर गुमान क्या करना

मर चुके नेत्र से तुम मेरी कायर तुझसे रण क्या लड़ना


अट्टहास करता रावण तू मुझको आज डराता है

मेरे प्रांगण में रहकर मुझ पर ही रौब जमाता है


चल चल रे निर्बल तू खग है मै तुझको छोड़ रहा

तेरा मर्दन क्या करना क्यू मौत से नाता जोड़ रहा


पर्वत समान काया लेकर पंखों से वायु झकोरे हैं

अरुण पुत्र वीर जटायू रावण को आज बटोरे हैं


इस तरह प्रहार किया खग ने विजय पताका टूट गया

शक्ति हीन समझा जिसको वह शक्ति वेग से लूट गया


कानों के कुंडल टूट गिरे रावण ओझल घबराया है

आज दसानन प्रथम बार ऐसे खग से टकराया है


कर के सचेत बोला पक्षी ऐ रावण काल बनी सीता

खर दूषण से समझ ले तू है राम प्रिया जननी सीता


सुंदर नयनों वाली यह अब सिया हमारी रानी है

हट जा बाट छोड़ पक्षी या खत्म तेरी जिंदगानी है


चौदह बाण चला कर रावण गरुड़ राज पर वार किया

उसी वेग से वीर जटायू रावण पर पुनः प्रहार किया


देख जटायू के शौर्य को हर्षित है देव ऋषी सारे

लगता है आज पराक्रम में रावण के हैं वारे न्यारे


तत् क्षण रावण एक साथ सौ बाणों को भर डाला

गरुड़ राज के पंखों को छिद्र छिद्र वह कर डाला


यह देख क्रोध की ज्वाला में धर दबोच ले उड़ा धनुष

दो खंड किया ऐसे फेका तृण के समान भू पड़ा धनुष


अब भी मै तुझसे कहता हूँ जा पंचवटी मे छोड़ सिया

है देवी राम प्रिया मूरख जननी सा रिश्ता जोड़ सिया


कर में त्रिशूल लेकर रावण खग पर इस तरह से फेका है

रुक गयी हवा थम गया गगन भौचकित हुआ जो देखा है


जा लगा त्रिशूल कलेजे पर गिर गया जटायू धरती पर

सिंहनाद सा गर्जन कर रावण रथ चला स्फुर्ती कर


क्षण भर में उड़ान भरा वीर रथ पर झपटा रथ लहराया

छिन्न भिन्न कर अश्व सभी सारथी का मस्तक बिखराया


कर के प्रहार महाप्रलय सा रावण को मूर्छित कर डाला

शस्त्र विहीन हुआ रावण चोंचों से हर अंग कुतर डाला


पुष्पों की वर्षा हुई गगन से राम भक्त जब नभ छाया

तब उठा दसानन क्रोधित होकर सारा अम्बर थर्राया


हस कर बोला वीर जटायू रावण खग से टकराया है

देख शक्ति मुझमे कितनी क्यूं इतना तू अकुलाया है


रावण गदा चलाया तब तक वीर जटायू के ऊपर

वापस आ गिरा गदा उस पर जैसे जटायू को छू कर


आह्वान किया चंद्रहास का दोनों पर को तब काटा है

राम - राम रटते - रटते अंतिम क्षण खग ने बाँटा है


राम लक्ष्मण के दर्शन हों अपने प्राणों को रोक रहा

उसको भय नही मृत्यु की कुछ ना मरने का शोक रहा


ऐसे खगराज जटायू को मै ज्योति हृदय में बसाता हूँ

हे राम तुम्हारी जय जय हो मै तुमको शीश झुकाता हूँ


ज्योति प्रकाश राय

भदोही, उत्तर प्रदेश

Comments

Popular posts from this blog

देवी माँ की आरती

 तुम्ही हो दुर्गा तुम्ही हो काळी तुम ही अष्टभुजाओं वाली तुम ही माता भारती,है आरती है आरती, है आरती..........  पड़ा कभी जब कष्ट से पाला तुमने आ कर हमें सम्हाला जब भी तुमको याद किया माँ तुमसे जब फरियाद किया माँ हो कष्ट सभी तुम टाराती, है आरती है आरती, है आरती............ हिंगलाज में तुम्ही हो मइया पालनहार और तुम्ही खेवइया रक्तबीज को तुम्ही संहारा भैरव को तुमने ही उबरा तुम ही सबको सँवारती, है आरती है आरती, है आरती...........  पहली आरती मणिकर्णिका दूसरी आरती विंध्याचल में तिसरी आरती कड़े भवानी चौथी आरती माँ जीवदानी पाँचवी यहाँ पुकारती, है आरती है आरती, है आरती.............. कहे ज्योति हे शैल भवानी अरज सुनो दुर्गा महारानी विपदा सबकी पल में हर लो दया दृष्टि हम पर भी कर लो मेरि आँखें राह निहारती, है आरती है आरती, है आरती..........।। ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश

पानी

 हो गई बंजर ज़मी और आसमां भी सो रहा पानी नही अपने यहाँ हाय यह क्या हो रहा युगों युगों से देश में होती नही थी यह दशा व्यर्थ जल बहाव में आज आदमी आ फसा पशु पक्षियों में शोर है संकट बहुत घनघोर है देखे नही फिर भी मनु लगता अभी भी भोर है बूंद भर पानी को व्याकुल बाल जीवन हो रहा पानी नही अपने यहाँ हाय यह क्या हो रहा उनको नही है पता जिनके यहा सुविधा भरी देख ले कोई उन्हे खाली है जिनकी गागरी बहे जहा अमृत की गंगा यमुना नदी की धार है उस नगर उस क्षेत्र में भी पेय जल में तकरार है सो गई इंसानियत रुपया बड़ा अब हो रहा पानी नही अपने यहाँ हाय यह क्या हो रहा अब भी नही रोका गया व्यर्थ पानी का बहाना होगा वही फिर देश में जो चाहता है जमाना संदेश दो मिल कर सभी पानी बचाना पुण्य है पानी नही यदि पास में तो भी ये जीवन शून्य है पानी बचे जीवन बचे ज्योति उज्ज्वल हो रहा ईश्वर करे आगे ना हो व्यर्थ जो कुछ हो रहा ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश

सरस्वती वंदना

हे बुद्धि देवी हे ज्ञान दायिनी, हे वीणा वादिनी हे सरस्वती हे हंसवाहिनी, हे ब्रह्मा प्रिया तुमसे है मिटती चक्षु निशा, तुमसे है जलता हिय दिया निशि प्रातः करू मै वंदना, तुमको समर्पित कामिनी हे बुद्धि देवी हे ज्ञान दायिनी, हे वीणा वादिनी।। हे विद्या विद्यमाता, हे पुस्तक धारिणी तुमसे है बहती ज्ञान गंगा, तुमसे है ज्योति दिव्यमान उत्तपन्न तुमसे है मधुरता, तुमसे है यह भारत महान खण्डित ना हो भारत धरा, रक्षा करो सौदामिनी हे बुद्धि देवी हे ज्ञान दायिनी, हे वीणा वादिनी।। हे ज्ञान की सुधामुरती, हे देवी हंसासना तुमसे है उज्ज्वल भविष्य सबका तुमसे है मिथ्या हारती उत्त्पन्न तुमसे है सत्य निष्ठा तुमसे है जग मां भारती हमे सत्य पथ पर अडिग करना हे रूप सौभाग्य दायिनी हे बुद्धि देवी हे ज्ञान दायिनी, हे वीणा वादिनी।। हे शास्त्र रूपी  हे ब्रह्मजाया, हे देवी चंडिका तुमसे सुशोभित ज्योति विद्या तुमसे है जीवन साधना तन मन धन समर्पित है तुम्हें आशीष दो हे निरंजना भटके नहीं हम धर्म से विपदा हरो मां सुवासिनी हे बुद्धि देवी हे ज्ञान दायिनी, हे वीणा वादिनी।। ।। ज्योति प्रकाश राय ।। ( उज्जवल )