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पश्चाताप

 पश्चाताप (भाग -1)

मुख्य किरदार ममता, संजीव
सहायक किरदार तमन्ना, विनय, विकास, इत्यादि।

ममता - संजीव तुम बैठो मैं चाय बनाकर लाती हूं। (रसोई घर से) ओ हो माफ करना संजीव अभी - अभी गैस खत्म हो गया सिर्फ पानी ही गर्म हुआ था , चलो आज हम लोग पास वाले चाय के टपरी से चाय पीते हैं वहां ताजी हवाओं का भी आनंद मिलेगा।
संजीव - अभी नहीं ममता जी आप बैठिए मै बस अभी - अभी खाना खा कर आ रहा हूं। शाम को चलेंगे वहां चाय पीने और ठंडी हवाओं का लुत्फ उठाने।
ममता - ठीक है अच्छा! बैठो मै तुम्हारे लिए एक पत्रिका रखी हूं उसे पढ़कर तुम्हे अच्छा लगेगा। (संजीव को पत्रिका देते हुए) पता है यह पत्रिका मेरे जीवन की अत्यंत महत्वपूर्ण पत्रिका है क्योंकि यह सौवीं (सतक) पत्रिका है जिसे देखकर मै इतना खुश हुई थी कि मानों मेरे मन को दो पल के लिए हर ग़म से आजादी मिल गई हो और मै दुनिया के हर अच्छे - बुरे कर्म को छोड़ मात्र खुशी भरे नेत्रों से ओझल और खुद में सराबोर हो रही थी।
संजीव - इतना कुछ क्या है इस पत्रिका में ? जो आप बताते हुए भी इतना तनावमुक्त है और किसी विशेष पल का आनंद प्राप्त कर रही हैं। (पत्रिका पढ़ने पर) अरे वाह ममता जी आपने इतने बड़े स्थान को हासिल किया है और मुझे आज इस पत्रिका के माध्यम से बता रही हैं। ऐसे सम्मान मिलना और इस उपलब्धि को छू पाना हर किसी के लिए संभव नहीं है।
ममता - नहीं संजीव, मनुष्य चाहे तो वह कुछ भी कर सकता है। जैसे - क्या किसी ने यह सोचा था कि चंद्रमा की दूरी को यूं पल भर में जान पाना इतना आसान हो जाएगा। क्या किसी ने सोचा था कि हम यहां बैठे - बैठे विदेश की समस्या का समाधान कर सकते हैं या परिणाम प्राप्त कर सकते हैं।
लेकिन आज वह हर चीज संभव है जो हम करना चाहते हैं। बस हमारे मन में एक विश्वास उत्पन्न होना चाहिए।
अच्छा ये बताओ कि तुम क्या लोगे ज्यूस या नीबू पानी ?
संजीव - बड़ी ही दिलचस्प पत्रिका है। निबू पानी पी कर पढ़ने में और आनंद आयेगा।
ममता - ठीक है! मै तुम्हारे लिए निबू पानी लाती हूं। ये लो बिल्कुल ठंडा और स्वादिष्ट (चटखारा) है।
संजीव - ममता जी मेरे मन में एक सवाल उठ रहा है अगर आपकी इजाजत हो तो पूछूं ?
ममता - हा हा बिल्कुल पूछ सकते हो कहो ना क्या बात है ?
संजीव - जी मै यह सोच रहा था कि आपके पास रुपया - पैसा मान - सम्मान और सबकुछ है फिर आप कोई नौकरानी क्यों नहीं रख लेती हैं। आपको इस तरह स्वयं काम करते देख मुझे कुछ अजीब सा लगता है। क्या आपको इसमें कोई शर्मिंदगी महसूस नहीं होती है ?
आपसे मिलने तो तरह - तरह के लोग आते होंगे।

ममता- नहीं संजीव तुम मात्र इकलौते व्यक्ति हो जो मुझसे मिलने मेरे घर आता है। जिस व्यक्ति को मेरी जरूरत होती है या मुझे किसी से कुछ काम रहा तो मै स्वयं ऑफिस पर मिलती हूं। जहा विकास से तुम्हारी मुलाकात हुई थी। और फिर मुझसे। और हा अभी तुम क्या बोल रहे थे? कोई नौकरानी, मै अब किसी पर अपना काम सौंप कर उसपर बोझ नही बनना चाहतीचाहती।  चाहती तो मै भी हूं कि थोड़ा आराम मिले लेकिन अपना काम करके जो सुकून मिलता है मै बता नहीं सकती। और खुद को उलझाकर स्वयं को भूल जाने के लिए यह सब किया करती हूँ। मुझे किसी के भी सामने यह काम करने मे हिचकिचाहट नहीं होती है। 
संजीव - जी हां! और जब मै आपसे पहली बार मिला था तो मुझे नहीं लगा था कि आप इतना स्नेह और सम्मान के साथ मुलाकात करती हैं। उस दिन तो मुझे लगा ही नहीं था कि मेरे जीवन की इतनी बड़ी समस्या यूं पल भर में आपके द्वारा हल हो जाएगी।
ममता - तुम नहीं जानते संजीव मुझे किसी की सहायता करने में और परेशानियों को दूर करने में जो सुख प्राप्त होता है वह मेरे जीवन को एक नई प्रेरणा देता है। एक नए उद्देश्य को जागृत करता है और मै निरंतर इस कार्य को करते रहना चाहती हूं।
संजीव - भगवान करे आप और भी नाम और शोहरत हासिल करें।
अच्छा अब मै जाने की इजाजत चाहता हूं विनय मेरी प्रतीक्षा कर रहा होगा।
ममता - अरे अभी तो तुम्हारी शाम वाली चाय बाकी है, चलो वहीं से तुम चाय पीकर चले जाना।
संजीव - क्षमा चाहता हूं ममता जी आज नहीं फिर किसी दिन आऊंगा तो ढेर सारी बातें होंगी और चाय भी। नमस्ते!
ममता - नमस्ते! (अचानक फोन की घंटी बजती है)
हैलो ! हा विकास कौन आया है ? अच्छा ठीक है तुम उन्हें कल सुबह दस बजे आने के लिए कहो मै वहीं मिलूंगी।
(अगले दिन सुबह ऑफिस में)
विकास - सुप्रभात दीदी! अभी वो लोग आए नहीं मै उन्हें आपके आने का समय बता दिया था।
ममता - सुप्रभात! कौन थे वो लोग और क्या समस्या थी कुछ कहा था उन्होंने ?
विकास - नहीं, परेशानी तो व्यक्त नहीं किए लेकिन कुछ परेशान से जरूर लग रहे थे। और हा दीदी, कुछ ऐसी बात कर रहे थे जैसे आपको नजदीक से जानते हों। लो आ गए दोनों आप चलिए मै इन्हें अंदर लेकर आता हूं। (अंदर आने के बाद)
ममता - आइए बैठिए ! हा क्या है आपकी समस्या ? क्या परेशानी हो रही है आपको ?
व्यक्ति - जी दीदी जी मै क्या कहूं क्या नहीं कुछ समझ में नहीं आ रहा है। मै कई समस्याओं का हल निकालने और उससे छुटकारा पाने के लिए यहां आया हूं।
ममता - ठीक है कोई बात नहीं! आप निः संकोच कहिए। मुझसे जो भी हो सकेगा मै करने के लिए तैयार हूं।
व्यक्ति - दीदी मै आपके पास बड़ी उम्मीद लेकर आया हूं और मुझे पूर्ण विश्वास है की आप मेरी बात टालेंगी नहीं। मै अपने गांव के पास वाले स्कूल की परेशानी लेकर आया हूं और स्वास्थ्य चिकित्सालय कि समस्या का समाधान पाने आपके पास निवेदन पत्र के साथ उपस्थित हुआ हू। स्कूल में कुछ ऐसे बच्चे आ गए हैं जो वहा पढ़ते तो नहीं लेकिन कक्षा में अवश्य बैठते हैं। और तो और जहां मन करेगा वहा बैठेंगे अध्यापकों का पढ़ाना मुश्किल हो गया है। 
सबसे बड़ी परेशानी तो यह है कि आस पास के इलाके में और कोई स्कूल भी नहीं है। इन लड़कों की हरकत को सहते - सहते अब लोग थक चुके हैं। जिस स्कूल में हजारों की संख्या में सिर्फ लड़कियां पढ़ा करती थी आज वहां मात्र चार सौ से पांच सौ लड़कियां पढ़ने आती हैं। वो भी बहुत हिम्मत जुटा कर और अपनी इज्जत को दांव पर लगा कर स्कूल में प्रवेश करती हैं। आते - जाते दबंगो का यूं बोली बोलना पत्थर के टुकड़े फेंकना या जबरदस्ती पेन या किताब मांगना हर किसी को परेशान कर रखा है।
ममता - क्या आप लोग कभी थाने में शिकायत दर्ज नहीं कराए ? ऐसे लोगों के खिलाफ तो उसी समय शिकायत दर्ज करा देनी चाहिए थी।
व्यक्ति - यह भी तो एक समस्या है। पुलिस थाने में बैठे दरोगा जी कोई भी मामला दर्ज नहीं करते और करेंगे भी क्यूं जब उन्हें स्वयं खाने - पीने की सारी सुविधा मिल रही है तो। आप शायद समझ रही होंगी मै किस खाने कि बात कर रहा हूं। जिस घर में भी लड़कियां मौजूद हैं या तो वो घर के अंदर हैं या फिर थाने तक पहुंचा दी जाती हैं। और तो और उनके इलाज के लिए कोई अस्पताल भी मौजूद नहीं है। एक डाक्टर है पुलिस विभाग का जिसके पास जबरन जांच के लिए भेजा जाता है। अब आप ही हमारे इस समस्या का समाधान कर सकती हैं। मै आपका बहुत नाम सुना हूं और बड़ी उम्मीद लेकर आया हूं।
ममता - विकास - दो ग्लास पानी लेकर आओ। (दोनों लोग पानी पीते हैं)
देखिए जब वहां की पुलिस आपकी कोई मदद नहीं कर रही है फिर तो मामला बड़ा पेंचीदा है। खैर कोई बात नहीं आप अपना नाम और पूरा पाता विकास जी के पास लिखवा दीजिए मै जल्द ही इसका हल निकालती हूं।

समाप्त।।

पश्चाताप (भाग -2)

ममता - (गाड़ी आगे जाकर रोकते हुए)
अरे संजीव तुम इस वक्त और पैदल, याद आया कार्यक्रम से लौट रहे हो न ?
आओ बैठो मै तुम्हे घर तक छोड़ देती हूं।
संजीव - जी घर तो आने वाला ही है आप कहीं काम से जा रही हैं तो जाइए मै चला जाऊंगा।
ममता - नहीं नहीं, मै भी सीधे घर ही जा रही हूं चलो साथ में लिए चलती हूं।
संजीव - जी ठीक है अच्छा! मै भी बैठ जाता हूं।
ममता - अरे वहां नहीं जनाब यहां आगे बैठिए नहीं लोग कहेंगे संजीव सेठ जा रहे हैं। (दोनों हंसने लगते हैं)
संजीव - आज आप इस रास्ते से आ ही गई है तो आइए ना मै अपना घर दिखता हू और एक - एक कप चाय भी पी लेते हैं।
(संजीव के घर पहुंचने के बाद)
विनय - भैया आप आ गए। चलो अच्छा है आज सीधे घर आ गए नहीं तो कितना देर कर देते हो और मै यहां अकेला ऊब जाता हूं इस घर में। कोई तो और भी होना चाहिए ना भैया जिसके साथ यहां हरदम रौनक बनी रहे। अब इस तरह अकेले अच्छा नहीं लगता।
संजीव - अरे भाई अब दो मिनट के लिए शांत भी हो जाओ और देखो तो तुमसे मिलने कौन आया है। (अंदर आइए ना)
विनय - ओ.... मैडम जी आप ! नमस्ते आइए बैठिए आइए मै अभी पानी लेकर आता हूं। (पानी पीने के बाद)
ममता - विनय अब तो कोई दिक्कत नहीं है न तुम्हे ? और कोई दोस्त ऐसी बुरी और नशीली आदतों के लिए परेशान तो नहीं करता न ?
विनय - नहीं मैडम जी बिल्कुल भी परेशानी नहीं है और मै उन सभी दोस्तों का साथ छोड़ चुका हूं जिन्होंने मुझे इस दलदल में गिराया था।
(संजीव रसोई में जाकर जल्दी से चाय बनाता है)
संजीव - लीजिए ममता जी आपके लिए गरमागरम चाय जो मैंने खुद से तैयार की है। विनय तुम भी लो लेकिन अब आज की ये आखिरी चाय है तुम्हारे लिए, ध्यान रखना।
ममता - संजीव चाय तो बहुत अच्छी है लेकिन चीनी थोड़ी सी ज्यादा हो गई है।
संजीव - क्या करें ममता जी बराबर अंदाजा ही नहीं मिलता और ज्यादा हो भी क्यों ना इतने मीठे लोग जो आए हैं तो बराबर के लिए ज्यादा मीठा होना भी पड़ेगा न। (दोनों हंसने लगते हैं)
आप कुछ खायेंगी तो अभी तैयार कर देता हूं।
ममता - नहीं! नहीं! बस हो गया अब मै चलती हूं घर पर कुछ काम करना बाकी रह गया था।
संजीव - जी अच्छा ठीक है फिर कभी मुलाकात होगी। शुभ संध्या।
एक सप्ताह बाद (ममता जी को सामाजिक बुराइयों को खत्म करने और महिलाओं को शोषण मुक्त तथा जागरूक बनाने में देश के लिए अपना योगदान देने हेतु राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है। इस सम्मान समारोह में देश के बड़े - बड़े अधिकारी तथा नेता - मंत्री भी मौजूद होते हैं।)
समारोह से निकलने के बाद फोन पर
ममता - हैलो विकास उस दिन जो लोग आए थे ! क्या उन्होंने अपना नाम और पता लिखा दिया था ? 
विकास - जी हां दीदी आपने कहा था देखने के लिए फिर आप बाहर चली गई थी। मै पास में ही रखा हूं।
ममता - ठीक है अच्छा देखो क्या नाम है और पता कहां का है।
विकास - जी दीदी! नाम वसंत लाल और दीनानाथ है पता नंदन बन सुल्तान पुर का है। पहाड़ी गोपालगंज
ममता - क्या नंदन वन सुल्तान पुर ? ठीक से देखो विकास जो तुम बोल रहे हो क्या वही लिखा है ?
विकास - जी हा दीदी खुद मैंने अपने हाथों से लिखा था।
ममता - ठीक है अच्छा! कल सुबह मै ऑफिस आकर देखती हूं तुम कुछ पेपर तैयार रखना कल यह काम करना जरूरी है।
विकास - जी दीदी तैयार हो जाएगा।

समाप्त।।

पश्चाताप (भाग -3)

अगले दिन ऑफिस पहुंच कर दो प्रार्थना पत्र तैयार कर एक पहाड़ी गोपालगंज जिला अधिकारी तथा दूसरा जिला महिला आयोग के ऑफिस डाक द्वारा भेजने के लिए ममता जी कहती हैं और जल्द ही निकल जाती हैं।
(रास्ते में गाड़ी से जाते हुए किसी अन्य टेंपो से टक्कर हो जाता है लेकिन ममता जी साफ तौर पर बच जाती हैं। और किसी तरह से गाड़ी को ठीक करवा कर अपने घर पहुंचती हैं।)
ममता - अरे संजीव तुम कब से आए हो ? एक फोन तो कर देना था न! वैसे भी मै तुमसे मिलना ही चाहती थी। चलो अन्दर बैठकर बात करते हैं।( ममता कार से निकल कर घर का दरवाजा खोलती हैं और दोनों घर में प्रवेश करते हैं)
आओ संजीव तुम्हे पता है अभी सीधे गैरेज से आ रही हूं। एक टेम्पो से टक्कर हो गया था वो तो अच्छा हुआ किसी के आशिर्वाद से बच गई वरना गाड़ी की तरह मेरी भी दुर्दशा हो ही जाती।
संजीव - क्या ? ममता जी इतना कुछ हुआ और आपने मुझे बताया तक नहीं। एक फोन की होती तो वहीं आ जाता। वैसे आपको कहीं लगा तो नहीं ? आप बिल्कुल ठीक है न ?
ममता - हा मै बिल्कुल ठीक हूं। उस वक्त मै बताना तो चाहती थी लेकिन मै अन्य महिलाओं को समझाना चाहती हूं कि कोई ऐसा काम नहीं है जो पुरुष कर सकते और महिला नहीं। बस इसीलिए मैंने खुद गाड़ी की मरम्मत करवाई और अब तुम्हारे सामने हूं।
संजीव - ममता जी आपको देखकर ना जाने क्यूं मुझे ऐसा लगता है की मै चाहकर भी आपको जान नहीं पाया हूं और मुझे कई सवाल करने की इच्छा होती रहती है।
(ममता मन ही मन - मै भी तो चाहती हूं संजीव की तुम मुझे समझो, मुझे जनों और मुझसे जुड़ो)
ममता - सवाल और मुझसे - पूछो क्या पूछना चाहते हो ? और क्या जानने की उत्सुकता है ? कहो
ठहरो मै कुछ खाने के लिए लेकर आती हूं। ये लो खाओ और बोलो क्या पूछना चाहते हो ?
संजीव - मेरे मन में कई दिनों से एक सवाल चल रहा था कि आखिर आप इस स्तर तक पहुंची कैसे ? वो भी इतना जल्दी! इस ऊंचाई तक नाम कर पाना बहुत ही आश्चर्य की बात है।
ममता - वो देखो , उस टेबल पर रखा सामाजिक कल्याण कार्य और स्त्रियों को जागरूक बनाने के उपलक्ष में राष्ट्रपति पुरस्कार दो दिन पहले ही मिला है।
संजीव - अरे वाह! बधाई हो ममता जी आपने तो एक ऊंचाई से आगे बढ़कर नए आयाम को छू लिया है। आपको बहुत - बहुत शुभकामनाएं।
ममता - जी आभार आपका! क्या बोल रहे थे तुम ? मै यहां तक कैसे पहुंची। इसके पीछे एक लम्बी दास्तां है जो मेरे अतीत से जुड़ा हुआ है और जब भी मेरे मन में वह बीता हुआ समय याद आता है मुझे झकझोर कर रख देता है। मै खुद की ही नज़रों में इतना गिर जाती हूं कि फिर कभी शर्म से आंख उठाने की हिम्मत नहीं होती है। लेकिन यहां रहते हुए लोगों से जो स्नेह और सम्मान मिला है वह मुझे जीने की प्रेरणा देता है और हिम्मत भी।
संजीव - ऐसी क्या बात है ममता जी ? खुद को इतना अकेला क्यूं महसूस कर रही हैं ? क्या है जो आप आज तक मन में ही समेटे घुटन भरे जीवन को जी रही हैं ?
ममता - जानना चाहते हो तो पहले ये वादा करो कि यह बात तुम किसी और से नहीं कहोगे वो भी तब तक - जब तक मै इस घटना से ऊपर उठकर खुद को संतुष्ट नहीं कर लेती हूं और पश्चाताप की आग में जल कर एक खरा सोना नहीं बन जाती। तब तक तुम इस बात का किसी भी व्यक्ति से कोई जिक्र नहीं करोगे।
संजीव - मै वादा करता हूं ममता जी जब तक आप नहीं कहेंगी मै किसी से भी कोई जिक्र नहीं करूंगा।
ममता - (यादों भरे अंदाज में) तो फिर चलो मेरे साथ मेरे अतीत में यानी आज से बीस वर्ष पहले।

समाप्त।।

पश्चाताप (भाग - 4)

ममता अपने अतीत को याद करते हुए (दृश्य में)
तमन्ना - देख ममता तू आजकल स्कूल चलने में बहुत देर करने लगी है तुझे तो पता है न अपना मास्टर कैसा है साला एक नम्बर का हराम खोर ऐसे आंखे फाड़ कर देखता है जैसे कभी देखा ही न हो। अब चलती भी है या नहीं।
ममता - अरे हा बाबा चलती हू ना। वही किताब रख रही थी जिसका आज विशेष तौर से पूछताछ होने वाला है। लेकिन तुझे क्या तू तो एक क्लास आगे है मुझसे और तुझे तो कोई कुछ बोलता भी नहीं।
तमन्ना - कोई कुछ ना बोले इसके लिए बहुत पापड़ बेले है मैंने और तब जाकर पहचान बनी है अपनी। तू जरा भी मत सोच तू मेरे साथ है न कोई माई का लाल तुझे छू भी नहीं सकता। तू कक्षा आठ में आ फिर अपने नागरदास स्कूल की ऐसी बात बताऊंगी जिससे तेरी भी पहचान पूरे नंदनवन में और सुल्तानपुर इलाके तक हो जाएगी।
ममता - हा हा चल अब फटाफट नहीं मेरी पहचान स्कूल पहुंचते ही हो जाएगी। एक तो कल रात को पढ़ने बैठी ही थी कि नीद आ गई और सब याद करने की प्लानिंग धरी की धरी रह गई। आज तो दो - चार डंडे खाने ही पड़ेंगे। (स्कूल पहुंचते ही विज्ञान के अध्यापक दरवाजे पर मिलते है)।
अध्यापक - तुम इतना देर क्यूं हो गई आने में ?

ये स्कूल का समय है? क्या कर रही थी अब तक ? चलो हाथ फैलाओ
ममता - सर वो मै एक किताब ढूंढ रही थी उसी चक्कर में आज थोड़ी सी देर हो गई।
तमन्ना - अरे ओ मास्टर - मेरी दोस्त है मारना मत उसे ध्यान रखना। चल ममता मै अपने कक्षा में जा रही हूं।
अध्यापक - ठीक है ठीक है चलो लेकिन कल से स्कूल समय पर आना, चलो जाओ
(तमन्ना की दोस्ती कुछ ऐसे लड़कों से भी थी जो बाहर से आकर स्कूल के पास उसका इंतजार किया करते थे। वह आठवीं कक्ष में होने और पहचान के चलते स्कूल से जल्दी निकल जाया करती थी।)
तमन्ना - (स्कूल के बाहर आकर)
तमन्ना - तुम साले लोग कभी तो पूरी घंटी पढ़ने दिया करो आकर बैठ जाते हो झक मारने के लिए।
दोस्त - अबे चल बैठना तेरे लिए मोटर सायकिल लेकर आते है हम लोग वरना इधर कौन मिलने वाला है साला।

तमन्ना - (बाइक पर सवार होकर) इधर अपने पास एक और जुगाड़ है लेकिन अगले साल तक पकड़ में आ जाएगी चलेगा तो बोल फसा कर रखती हूं। दोस्त है अपनी

दोस्त - हा - हा पकड़ के रख अगले साल कौन सा सौ साल है। चलेगा लेकिन तू अपना धंधा कब से चालू करेगी ? स्कूल में बहुत तेजी से चलने वाली चीज है। (ड्रग्स) और जो एक बार ले लिया ना फिर वो दौड़कर आएगा तेरे पास। फिर तो पैसा ही पैसा है।
तमन्ना - हा ठीक है लेकिन आज तू चल कहा रहा है ? और कितने टाइम में वापस लाएगा।
दोस्त - चल आज तुझे शीतलगढ़ ले चलता हूं वहां अपने पहचान का एक थानेदार है जिसे तुझ जैसी दोस्त की जरूरत है।
तमन्ना - साला कहीं फसाने का इशारा दे रहा है क्या ? इतना लंबा कौन आयेगा माल के लिए।
दोस्त - तू मिल तो सही उसके बाद तो दरोगा साला खुद ही चलकर आएगा नागरदास स्कूल तक।
(थाने पहुंचे के बाद) ये लो दरोगा जी अपने काम का इनाम आप तक हाजिर है। जो बोलेंगे वो जवाब देगी नंबर एक की पीस लाया हूं हर काम में तेज है।
दरोगा - ठीक है! दो घंटे बाद आओ तुम लोग तब तक हम इससे कुछ काम की बात करते हैं। चलो जाओ
चलो बेटी अंदर बैठो चलो ( अंदर जाने के बाद) क्या नाम बताया था उसने हां.... तमन्ना हां
क्या तुम मेरे लिए काम करोगी ? ज्यादा कुछ नहीं बस एक बार तुम हा करके सामिल हो जाओ उसके बाद मै तुम्हें सभी ऐश - ओ- आराम दूंगा।
तमन्ना - लेकिन मुझे करना क्या होगा सर ? और कितने पैसे मिलेंगे ?
दरोगा - पैसों की चिंता तुम मत करो " सरकार मुझे दे रही है, और मै तुम्हे दूंगा" बस जब मै कहूं तुम्हे एक नई दोस्त को मेरे यहां लाकर छोड़ देना है वो भी मात्र दो घंटे के लिए। उसे तुम जितना चाहो देना ना देना तुम्हारी मर्जी मै तुम्हे पांच हजार दिया करूंगा। और हा उससे ज्यादा नहीं हा
तमन्ना - ठीक है! चलेगा लेकिन बात अपने गांव तक नहीं आनी चाहिए नहीं तो मेरी इज्जत और जान दोनों चले जाएंगे।
दरोगा - तुम उसकी चिंता मत करो " तुम मेरा खयाल रखोगी , तो मै तुम्हारा अवश्य रखूंगा " (ध्यान) अब तुम जा सकती हो
तमन्ना - दो महीने इंतजार करना पड़ेगा दरोगा जी उसके बाद ही हो पाएगा।
दरोगा - चल ठीक है तू भी क्या याद करेगी कोई दिलदार दरोगा मिला था। लेकिन उसके बाद काम नहीं हुआ तो तेरा ही नुक़सान होगा याद रखना।

।।समाप्त।।

पश्चाताप ( भाग - 5)

(दो महीने बाद)
तमन्ना - ममता सुन मेरी एक बात मानेगी तो तुझे इतना पैसा मिलेगा की तू जो चाहे वो खरीद सकती है और अपने जीवन का पूरा मजा उठा सकती है।
ममता - क्या ? ऐसी कौन सी बात है या ऐसा कौन सा काम है जो इतने सारे पैसे मिलेंगे ? आजतक तो तूने कभी नहीं कहा आज अचानक कौन सा धंधा चालू कर दिया है ?
तमन्ना - कुछ नहीं बस जब मै कहूंगी तू किसी अपने दोस्त को मेरे साथ दो घंटे के लिए भेज देना बस
पैसा तुझे भी मिलेगा और साथ में जो जाएगी उसे भी।
ममता - लेकिन भेजना कहा है ? कौन है ? कैसा है ?
तमन्ना - अरे पगली कितने सवाल करेगी अपने शितलगढ़ का थानेदार है साला, बहुत पैसा है। अपना काम भी आसान है तू चाहेगी तो बहुत पैसे मिलेंगे।

ममता - ठीक है! मै इंतजाम करती हूं पर अपना हिस्सा बराबर का होगा याद रखना।
(हर दस से पंद्रह दिन पर एक लड़की थाने जाती है और पैसे के साथ तमन्ना वापस आती है)
तमन्ना और ममता की लालच इतनी अधिक बढ़ने लगी थी कि उन्होंने राह चलते लड़कों को भी अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया। अब तो आते - जाते हर व्यक्ति की नजर गंदी हो चुकी थी। यह प्रक्रिया लगभग तीन वर्ष चली उसके बाद एक दिन कोई भी लड़की ना मिलने के कारण समय पर दोनों नहीं पहुंच पाए और दरोगा जिस व्यक्ति को बुलाया था वह गुस्सा होकर चला गया। इस बात से दरोगा चिढ़ गया था और तमन्ना के अगले दिन थाने पहुंचते ही दरोगा स्वयं दरवाजा बंद कर दिया और अन्दर बैठी तमन्ना के साथ जोर जबरदस्ती कर उसका यौन शोषण किया जिससे वह बुरी तरह घायल हो गई और अचेत अवस्था में चली गई दरवाजा खुला और बाहर खड़ी ममता दौड़कर अंदर गई जाते ही जोर - जोर से चिल्लाने लगी लेकिन वहां कोई नहीं था जो उसकी चीख सुन सके। पूरे इलाके में मात्र एक डॉक्टर वह भी थानेदार का, शरीर के साथ खिलवाड़ कर हटा दिया। तमन्ना को होश आया तो वह असहाय पीड़ा से कराहती रही और फिर अचानक दम तोड़ने को मजबूर हो गई देखते ही देखते उसकी सांसे थमने लगी और वह इस दर्द को छोड़ जा चुकी थी उसकी सांसे थम सी गई। ममता वहां से भाग निकली और अपने थाने में आकर तहरीर देनी चाही। किसी तरह से सब कुछ उस बयान में कह डाला जो बीते कई वर्षों से होता चला आ रहा था।
ममता जिस दलदल में फंस चुकी थी वहां से निकल पाना बहुत ही मुश्किल था। सुल्तानपुर थाने में सभी पुलिस और थानेदार ने ममता की बात सुनी पर किसी ने कोई पेपर तैयार नहीं किया और ममता को अगले दिन आने के लिए कहा।
ममता घर में बिना कुछ बताए अगले दिन वापस थाने पहुंची तो ममता के सामने भी वही शर्त रखा गया। या तो ममता खुद को दांव पर लगाती या किसी और लड़की को सुल्तानपुर थाने का मोहरा बनाती। नहीं तो ममता को खुद जेल जाना पड़ेगा। ऐसी धमकियों से डर कर ममता ने उसकी बात मान ली और फिर शुरू हुआ वही सिलसिला। जिसका नतीजा आजतक हर औरत और लड़कियां भुगत रहीं थी। अब वहां डर के मारे कोई शिकायत दर्ज कराने भी नहीं जाता। बस इसी डर ने ममता को इतना कमजोर बना दिया कि वो अपने ही थाने पर "जहां लोग परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए जाते हैं। ममता वहां परेशानियां मोल लेने जाया करती थी। हर सप्ताह कोई न कोई लड़की शिकार हो जाती और उन सबका दर्द, पाप ममता के नाम चढ़ जाता। लगभग दो साल में नतीजा यह हो गया कि जिसका जब दिल करे रास्ते से लड़की उठा ले जाता और बिना किसी मरहम पट्टी के ही छोड़ दिया जाता। हालात इस तरह के हो गए थे कि थानेदार का तबादला भी नहीं हो सकता था क्योंकि उसके रहते एक भी शिकायत जो दर्ज नहीं होती थी। जिला अधिकारी कभी नंदनवन आते नहीं और यहां के लोगों की सूचना वहां तक नहीं पहुंच पाती। ममता अपने आप को बचाने के लिए किसी न किसी को सौंप आती थी।
(ममता और संजीव दोनों चुपचाप एक दूसरे को देखते हुए)
संजीव - फिर! आगे क्या हुआ ममता जी ? कृपया मुझे बताइए।
ममता - (संजीव के कंधे पर सर रखकर रोते हुए)
मै उस पल को याद नहीं करना चाहती मुझे आज भी उन दरिंदो की आवाज के आगे मेरी चीख दबती सुनाई पड़ती है।
एक दिन जब स्कूल की छुट्टी हो चुकी थी मै अपने घर जा रही थी कि अचानक पुलिस कि गाड़ी आकर मेरे सामने खड़ी हो जाती है और एक हवलदार मुझसे कहता है कि मैडम तुम्हे साहब ने अभी बुलाया है कुछ जरूरी काम है। मै भी उलझन में थी और गाड़ी में बैठ गई।
वहां अंदर देखा कोई साहब नहीं था केवल हवलदार ही थे मै वहां से बाहर निकलने के लिए जैसे ही कदम बढ़ाया उन लोगों ने दरवाजा बंद कर दिया और फिर एक एक कर के मेरे बदन से लहू निचोड़ कर मुझे सूखे कांटे की तरह छोड़ दिया। मै इस हाल में थी की अपने घर तो दूर दरवाजे तक भी चलकर जाना असम्भव था। अगले दिन दरोगा को जब यह बात पता चली तो उसने मुझे उस जिला से निकाल एक मंदिर पर छोड़ दिया जहा मै दर्द को झेलती रही लेकिन जीवन से संघर्ष करती रही। कुछ दिन बाद मेरी हालत सुधरने लगी तब मैंने उस मंदिर में यह कसम उठाई की जिस दर्द को मै सह रही थी आगे किसी भी स्त्री को मै ऐसे दुःख नहीं सहने दूंगी।

और तभी से मैंने शहर का रुख किया और लोगों की सहायता और जागरूकता को लेकर जो कदम उठाया वह आज भी आगे की ओर बढ़ रहा है।

।। समाप्त।।

पश्चाताप (भाग -6)


ममता - संजीव मै अपना गिरा हुआ अस्तित्व दिखाने और अपना अपमान कराने वहां कभी नहीं गई किन्तु आज मुझे वह मौका ईश्वर ने दिया है जब मै अपने गांव के लोगों को, अपने समूचे इलाके को इस दलदल से निकाल कर अपनी गलती का प्रायश्चित करूंगी। मुझसे जो गलती हुई है मै उस पश्चाताप में जल कर एक नया घड़ा बनना चाहती हूं। और अपने अपमानित जीवन से ऊपर उठकर अपने गांव में एक नया जीवन पाना चाहती हूं संजीव। और इसमें मै तुम्हारा साथ चाहती हूं, क्या तुम मेरी मदद करोगे ?

संजीव - ममता जी आपने जो वीणा उठाया है मै उसमे हमेशा आपके साथ खड़ा रहूंगा बस आप यह तय कीजिए की मुझे करना क्या है।

ममता - आपको इतना ही करना है कि मैंने दो प्रार्थना पत्र डाक द्वारा भेजे हैं वह सही जगह पहुंचा की अभी नहीं। और उस गांव (नंदनवन) की स्थिति क्या है इसका पता लगाना है। और हा विनय की चिंता बिल्कुल मत करना मै स्वयं उसका पूरा ख्याल रखूंगी।

संजीव - ठीक है फिर मै कल सुबह ही यहां से  निकल जाता हूं।

ममता - जी संजीव! मै सदा तुम्हारी शुक्रगुजार रहूंगी। धन्यवाद

(संजीव पहाड़ी गोपाल गंज पहुंच कर जिला अधिकारी कार्यालय में जांच करवाता है लेकिन ममता जी के नाम का कोई भी पत्र वहां नहीं आया था।) संजीव ने आगे जाकर महिला आयोग कार्यालय में पता किया तो वहां इसी विषय पर चर्चा चल रही थी। जैसे ही संजीव ने ममता जी का नाम लिया सभी कार्यकर्ता  चौक गए और खड़े हो गए।

एक महिला ने संजीव को अंदर आने के लिए कहा और महिला आयोग अध्यक्ष रंजना जी से बात करवाई। पूरा मामला जानने के बाद रंजना जी ने तुरंत जांच के आदेश दिए और जिला अधिकारी को सूचित कर स्वयं निरीक्षण करने नंदनवन गई। सुल्तानपुर और नंदनवन की स्थिति बेहद खराब नजर आ रही थी। यह सब देख महिला आयोग अध्यक्ष रंजना हैरत में पड़ गई की इस गांव में इतना कुछ होता रहा और किसी ने कोई जानकारी भी नहीं दी।

रंजना - संजीव जी आप बिल्कुल निश्चिंत रहिए यह मामला महिलाओं के सम्मान का है और मेरी टीम इसका पूरा जांच पड़ताल करवा कर उन सभी व्यक्तियों को कड़ी से कड़ी सजा दिला कर रहेगी जो भी इस घटना में सामिल होंगे।

संजीव - जी मैडम! आपका बहुत - बहुत धन्यवाद। मै ममता जी को आपसे जल्द ही परिचित कराऊंगा।

(संजीव नंदनवन पहुंचकर वसंत लाल जी से मुलाकात कर उन्हें धीरज बंधाते हुए कहता है कि ममता जी के आदेश पर जांच प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। अब आप निश्चिंत रहें सारी समस्या जल्द ही हल हो जाएगी।)

अगले दिन ही जिला अधिकारी के आदेश पर नागरदास स्कूल की जांच हुई और कई पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में पढ़ाई पूरी हुई। महिला टीम ने छानबीन शुरू किया तो वह मामले की तह तक पहुंचते - पहुंचते सुल्तानपुर थाने के कई पुलिसकर्मियों के साथ दरोगा जी के नाम का भी पता चला और उनके खिलाफ महिला उत्पीड़न तथा समाज में बुराई को बढ़ावा देने के आरोप में लेटर जारी कर नौकरी निरस्त करने की मांग की। यह खबर पता चलते ही सुल्तानपुर के दरोगा ने अपनी ड्यूटी स्थानांतरित करने की मांग कर छुट्टी ले लिया। कानून की व्यवस्था में सुधार देख गांव वालों में खुशी की लहर दौड़ गई।

(संजीव शहर पहुंच कर ममता जी से मुलाकात करने पर)

संजीव - ममता जी आपके एक पत्र ने पूरे नंदनवन को बदलने का संकल्प ले लिया है और आशा है की जल्द ही पूरी जांच के साथ आरोपियों को जेल के अंदर डाल दिया जाएगा।

ममता - संजीव आज तुमने मेरे जीवन को सार्थक सिद्ध कर देने कि उम्मीद जगा दी है। जी चाहता है की.....।

संजीव - जी ममता जी कहिए क्या जी चाहता है ?

ममता - नहीं कुछ नहीं बस आज मै बहुत खुश हूं। शुक्रिया संजीव

संजीव - ममता जी मुझे लगता है एक बार आपको भी नंदनवन चलकर वहां अपने सामाजिक जीवन का प्रभाव दौड़ाना चाहिए। वहां विकास और सुधार की गति बहुत धीमी है।

ममता - जी हां संजीव मै भी वहां चलने के लिए और सबके जीवन सुधार कर खुद को सार्थक बनाने के लिए उत्सुक हूं। अगर तुम कहो तो हम अगले सप्ताह वहां चलते हैं। और विनय को भी साथ ले चलेंगे।

संजीव - जी बिल्कुल आप जब कहें मै चलने के लिए तैयार हूं। अच्छा अब मै चलता हूं। नमस्ते

।। समाप्त।।

पश्चाताप (भाग -7)


(एक सप्ताह बाद) ममता, संजीव और विनय नंदनवन अपने निजी साधन से पहुंचते हैं। और वहां पहुंचते ही ममता सबसे पहले अपने स्कूल नागरदास विद्या मंदिर पहुंचती हैं स्कूल देखते हुए ममता की आंखों से आंसू छलकने लगते हैं और वह फूट- फुट कर रोने लगती है। और कहती है संजीव यह देखो मेरा स्कूल, इस स्कूल में पढ़ने वाले हर बच्चों के साथ खिलवाड़ हुआ है और उस खिलवाड़ की पूरी जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ मेरी है। मै ही सबके जीवन और भविष्य में आने वाली बाधाओं की जिम्मेदार हूं।

लेकिन अब मै इस गांव का विकास कर इस स्कूल का विकास कर इसका नाम सबसे अधिक ऊंचाई पर ले जाऊंगी।

लड़कियां अब खुले आसमान की तरह आजादी से अपने स्कूल आएंगी इन दरिंदो से निपटने के लिए स्वयं मजबूत होंगी।

संजीव - (ममता को सम्हालते हुए) अब सब ठीक हो जाएगा ममता जी आप इस तरह नर्वस मत होइए अभी तो आपको बहुत कुछ करना बाकी है। चलिए हम लोग सीधे महिला आयोग अध्यक्ष रंजना जी के ऑफिस चलते हैं

(ममता जी की मुलाकात रंजना जी से होती है और वह ये जानकर अति प्रसन्न होती हैं कि आप यहां नंदनवन कि रहने वाली प्रथम महिला हैं जो राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित की गई हैं। दोनों में बातचीत होने के बाद उन्होंने यह तय किया की जिला अधिकारी के आदेश और सहायता से इस गांव में एक चिकित्सालय का निर्माण जल्द से जल्द  किया जाए और नागरदास  स्कूल की मरम्मत कर उसे सभी सरकारी सुविधाएं प्रदान की जाए।

सबकी सहमति और नंदनवन गांव के विकास हेतु जिला अधिकारी ने हस्ताक्षर कर अस्पताल निर्माण के आदेश दिए।

सभी कार्य पूर्ण कर एक अंतिम इच्छा के लिए ममता जी ने महिला आयोग अध्यक्ष और गांव के मुख्य लोगों की मदद से नंदनवन में नई पुलिस चौकी बनवाने की स्वीकृति जिला अधिकारी से ही करा लिया और पूरे गांव का संपूर्ण विकास कर गांव के लोगों में और वहां की लड़कियों में एक नई उड़ान भर दी।

एक दिन नागरदास स्कूल में किसी समारोह का आयेजन किया गया जिसमें महिला आयोग टीम और जिला अधिकारी तथा पुलिस चौकी के सिपाही मौजूद रहे। इन सभी के बीच उपस्थित ममता जी संजीव और विनय के सामने आज वही विज्ञान के अध्यापक ने आकर कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए कहा- आप सभी के बीच एक ऐसी शख्सियत को बुलाना चाहूंगा जिन्होंने अपने जीवन में अनेक संघर्ष करते हुए उस मुकाम को हासिल किया है जहा पहुंचने के लिए हर व्यक्ति कड़ी मेहनत करता है लेकिन कुछ व्यक्ति ही पहुंच पाते हैं। एक ऐसी हस्ती जो देश का गौरव और सामाजिक कल्याण का उदाहरण बन राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित और नागरदास विद्या मंदिर की पूर्व क्षात्रा ममता मधुबनी को मै आमंत्रित  करता हूं। और जिला अधिकारी जी से निवेदन करता हूं कि ममता जी का स्वागत कर स्कूल तथा अपने जिला का मान बढ़ायें। पूरा मैदान तालियों से गूंज उठा और सभी ने ममता जी को इसी तरह से आगे बढ़ते रहने का आशीर्वाद दिया।

कार्यक्रम संपन्न हुआ गांव वालों ने मिलकर ममता जी के नाम और फोटो के साथ एक बड़ा बैनर गांव के मुख्य द्वार पर लगवा कर उनका मान सम्मान स्थापित किया। यह सब देख कर ममता जी की आंखो से आंसू बहने लगे और वो मुस्कुराते हुए संजीव से कहने लगी आज मै अपने किए हुए कर्मो का प्रायश्चित करने में सफल हुई हूं और यह सब संजीव तुम्हारी बदौलत हुआ है और मै तुम्हे कभी नहीं खोना चाहती हूं।

संजीव - तो ममता जी मै आपको कहां खोना चाहता हूं अब तो अगर मै सच कहूं तो मुझे आपसे प्रेम हो गया है और मै सदैव आपकी प्रतीक्षा करूंगा।

ममता - संजीव आज तुमने मेरे मन की बात कह कर मुझे एक और खुशी प्रदान की है मै हमेशा तुम्हारी होकर रहना चाहती हूं।

संजीव - तो चलिये हम एक बंधन में बंध कर समाज की बुराइयों को जड़ से खत्म करने का संकल्प उठाते हैं।

।। समाप्त।।

लेखक- ज्योति प्रकाश राय

Email: prakashrai00123@gmail.com

भदोही उत्तर प्रदेश

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