उस दिन सब जगह पट जाएगा
जिस दिन हर वृक्ष कट जाएगा
क्या इस जग को वही देखना है
या जीवों को मार कर फेकना है
ना रहेंगे पेड़ ना बहेगी ठंडी हवा
हर तरफ दिखेगी बस गंदी फिजा
सोचो क्या दुनिया का नजारा होगा
हर तरफ हर आदमी बेसहारा होगा
यह प्रकृति है इसमें जीवन समाया है
इसी ने सजीवों का यौवन बनाया है
प्रकृति से ठिठोली भारी पड़ रहा है
भले क्यूँ ना इंसान आगे बढ़ रहा है
स्वार्थ में हर व्यक्ति ऐसे घुल चुका है
जैसे डाली में हर फूल खिल चुका है
अब कभी न मिलने की जरूरत होगी
बार बार ना खिलने की जरूरत होगी
जब तेज आधियों में सब खो जाएगा
तब मनुष्य जो किया सब याद आएगा
जब पर्यावरण बचाना सरल नहीं होगा
तब इन प्रश्नों का कोई हल नहीं होगा
कभी तेज बारिश तो कभी धूप होगी
तब हँसी वादियाँ बेहद कुरूप होगी
न हो भविष्य ऐसा अपना हो या बेगाना
लगा कर पेड़ पौधा प्रकृति को है बचाना
ज्योति प्रकाश राय
भदोही, उत्तर प्रदेश
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