जहाँ है प्रेम की गंगा वहीं जीवन की धारा है
जिसे रब ने संवारा है उसे किसने बिगारा है
चलो अविरल बहाएँ हम जहां में प्रेम की गंगा
जहाँ हो प्यार की पूजा वहीं सबका गुजारा है
करो नफ़रत करो पूजा ये दुनिया रीत से चलती
मुसाफ़िर तुम मुसाफ़िर हम उमर है प्रीत में पलती
किसी की चाह में इतना नही होना कभी भी गुम
खुदा की देन है जीवन नही मागे से फिर मिलती
जुदा होकर भी तुम अक्सर मेरे ख्वाबों में आते हो
जो गाये गीत थे संग में वही तुम गुनगुनाते हो
सजा कर राग जीवन का चले जाना नही अच्छा
जो सबसे हम बताते हैं वो सबसे तुम छुपाते हो
किसी को पा नही सकते किसी के हो ही जाओ तुम
समर्पण भाव है ईश्वर मोहब्बत भी निभाओ तुम
नही देखो मुनाफा क्या है जीवन - प्रेम में यारों
बनो सागर रहो शीतल मधुर जीवन बिताओ तुम
है जीवन प्रेम का दर्पण यहाँ खुद को उतारो तुम
जो रूठे हैं अभी तुमसे उन्हें फिर से पुकारो तुम
ये जीवन प्रेम का प्यासा इसे तन्हा नही जीना
जला कर ज्योति अंतर्मन सभी जीवन संवारो तुम
ज्योति प्रकाश राय
भदोही, उत्तर प्रदेश
Comments
Post a Comment