काव्योदय
रदीफ़ - कर लिया मैंने
ग़जल
इन निगाहों में एक ख़्वाब भर लिया मैंने
ख़ुद से ही ख़ुद का हिसाब कर लिया मैंने
उनको देखे बिन तब दिन नही गुजरता था
अब तस्वीरों को ही गुलाब कर लिया मैंने
एक प्यारा सा चेहरा दिल में बसाये फिरता हू
यूँ चेहरे को दिल-ए-मेहताब कर लिया मैंने
ये दुनिया शिकायती आकाओं से भरी हुई है
इसी लिए दिल-ए-आफ़ताब कर लिया मैंने
लोग दौलत से हैं या दौलत है लोगों के लिए
इसी तमन्ना में ख़ुद से हिजाब कर लिया मैंने
अब ना रही कोई ख़्वाहिश ना आरजू है कोई
मोहब्बत-ए-दौर में भी नका़ब कर लिया मैंने
अब ना देखो ना दिखाओ ज्योति ज़ख़्मों को
यूँ ही नहीं नाम अपने ख़िताब कर लिया मैंने
ज्योति प्रकाश राय
भदोही, उत्तर प्रदेश
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