Skip to main content

पुरुष

 आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है

बनकर कठोर हृदय वाला कठिन समय से टकराता है

मार समय की कौन है सहता कौन धरा पर ऐसा है

सोच सोच कर कठिन परिस्थिति ईश्वर गढ़ता जाता है

आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है


आँख भले ही नम हो जाए गिरता नही निगाहों से

आहे भर भर सहता सब कुछ लड़ता स्वयं गुनाहों से

आँच न आए परिजन पर वह झुक कर शीश उठाता है

आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है


देख परिस्थिति को अपने अर्जुन थे सब कुछ छोड़ रहे

बन कर महान फिर से माधव पुरुष धर्म से जोड़ रहे

विचलित मन से आगे होकर पुरुष ही चक्र उठाता है

आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है


वह भी एक पुरुष ही था जो दानवीर कहलाया है

न्यौछावर कर प्राण स्वयं पुरुषों का मान बढ़ाया है

हुआ भूमिगत जितना पहिया वह उतना उठता जाता है

आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है


ऊँचे - ऊँचे शिखरों के अंदर जो राह बना डाले

जिनकी तलवारें तेज चलें हिम्मत से चलते थे भाले

वह वीर शिवा रण लेकर बैरी को मार भगाता है

आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है


कभी काटता समय को अपने कभी समय कटवाता है

कभी पाटता कर्ज को अपने कभी गरज पटवाता है

रख कर साहस, धीरज मन में ज्योति स्वयं टकराता है

आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नहीं घबराता है


ज्योति प्रकाश राय

भदोही, उत्तर प्रदेश

Comments

Popular posts from this blog

देवी माँ की आरती

 तुम्ही हो दुर्गा तुम्ही हो काळी तुम ही अष्टभुजाओं वाली तुम ही माता भारती,है आरती है आरती, है आरती..........  पड़ा कभी जब कष्ट से पाला तुमने आ कर हमें सम्हाला जब भी तुमको याद किया माँ तुमसे जब फरियाद किया माँ हो कष्ट सभी तुम टाराती, है आरती है आरती, है आरती............ हिंगलाज में तुम्ही हो मइया पालनहार और तुम्ही खेवइया रक्तबीज को तुम्ही संहारा भैरव को तुमने ही उबरा तुम ही सबको सँवारती, है आरती है आरती, है आरती...........  पहली आरती मणिकर्णिका दूसरी आरती विंध्याचल में तिसरी आरती कड़े भवानी चौथी आरती माँ जीवदानी पाँचवी यहाँ पुकारती, है आरती है आरती, है आरती.............. कहे ज्योति हे शैल भवानी अरज सुनो दुर्गा महारानी विपदा सबकी पल में हर लो दया दृष्टि हम पर भी कर लो मेरि आँखें राह निहारती, है आरती है आरती, है आरती..........।। ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश

पानी

 हो गई बंजर ज़मी और आसमां भी सो रहा पानी नही अपने यहाँ हाय यह क्या हो रहा युगों युगों से देश में होती नही थी यह दशा व्यर्थ जल बहाव में आज आदमी आ फसा पशु पक्षियों में शोर है संकट बहुत घनघोर है देखे नही फिर भी मनु लगता अभी भी भोर है बूंद भर पानी को व्याकुल बाल जीवन हो रहा पानी नही अपने यहाँ हाय यह क्या हो रहा उनको नही है पता जिनके यहा सुविधा भरी देख ले कोई उन्हे खाली है जिनकी गागरी बहे जहा अमृत की गंगा यमुना नदी की धार है उस नगर उस क्षेत्र में भी पेय जल में तकरार है सो गई इंसानियत रुपया बड़ा अब हो रहा पानी नही अपने यहाँ हाय यह क्या हो रहा अब भी नही रोका गया व्यर्थ पानी का बहाना होगा वही फिर देश में जो चाहता है जमाना संदेश दो मिल कर सभी पानी बचाना पुण्य है पानी नही यदि पास में तो भी ये जीवन शून्य है पानी बचे जीवन बचे ज्योति उज्ज्वल हो रहा ईश्वर करे आगे ना हो व्यर्थ जो कुछ हो रहा ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश

सरस्वती वंदना

हे बुद्धि देवी हे ज्ञान दायिनी, हे वीणा वादिनी हे सरस्वती हे हंसवाहिनी, हे ब्रह्मा प्रिया तुमसे है मिटती चक्षु निशा, तुमसे है जलता हिय दिया निशि प्रातः करू मै वंदना, तुमको समर्पित कामिनी हे बुद्धि देवी हे ज्ञान दायिनी, हे वीणा वादिनी।। हे विद्या विद्यमाता, हे पुस्तक धारिणी तुमसे है बहती ज्ञान गंगा, तुमसे है ज्योति दिव्यमान उत्तपन्न तुमसे है मधुरता, तुमसे है यह भारत महान खण्डित ना हो भारत धरा, रक्षा करो सौदामिनी हे बुद्धि देवी हे ज्ञान दायिनी, हे वीणा वादिनी।। हे ज्ञान की सुधामुरती, हे देवी हंसासना तुमसे है उज्ज्वल भविष्य सबका तुमसे है मिथ्या हारती उत्त्पन्न तुमसे है सत्य निष्ठा तुमसे है जग मां भारती हमे सत्य पथ पर अडिग करना हे रूप सौभाग्य दायिनी हे बुद्धि देवी हे ज्ञान दायिनी, हे वीणा वादिनी।। हे शास्त्र रूपी  हे ब्रह्मजाया, हे देवी चंडिका तुमसे सुशोभित ज्योति विद्या तुमसे है जीवन साधना तन मन धन समर्पित है तुम्हें आशीष दो हे निरंजना भटके नहीं हम धर्म से विपदा हरो मां सुवासिनी हे बुद्धि देवी हे ज्ञान दायिनी, हे वीणा वादिनी।। ।। ज्योति प्रकाश राय ।। ( उज्जवल )