आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है
बनकर कठोर हृदय वाला कठिन समय से टकराता है
मार समय की कौन है सहता कौन धरा पर ऐसा है
सोच सोच कर कठिन परिस्थिति ईश्वर गढ़ता जाता है
आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है
आँख भले ही नम हो जाए गिरता नही निगाहों से
आहे भर भर सहता सब कुछ लड़ता स्वयं गुनाहों से
आँच न आए परिजन पर वह झुक कर शीश उठाता है
आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है
देख परिस्थिति को अपने अर्जुन थे सब कुछ छोड़ रहे
बन कर महान फिर से माधव पुरुष धर्म से जोड़ रहे
विचलित मन से आगे होकर पुरुष ही चक्र उठाता है
आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है
वह भी एक पुरुष ही था जो दानवीर कहलाया है
न्यौछावर कर प्राण स्वयं पुरुषों का मान बढ़ाया है
हुआ भूमिगत जितना पहिया वह उतना उठता जाता है
आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है
ऊँचे - ऊँचे शिखरों के अंदर जो राह बना डाले
जिनकी तलवारें तेज चलें हिम्मत से चलते थे भाले
वह वीर शिवा रण लेकर बैरी को मार भगाता है
आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है
कभी काटता समय को अपने कभी समय कटवाता है
कभी पाटता कर्ज को अपने कभी गरज पटवाता है
रख कर साहस, धीरज मन में ज्योति स्वयं टकराता है
आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नहीं घबराता है
ज्योति प्रकाश राय
भदोही, उत्तर प्रदेश
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