विषय- राजा राम मोहन राय का आंदोलन, सामाजिक शोधन की कसौटी
राजा राम मोहन राय ने सामाजिक सुधार के लिए कई कदम उठाए और आंदोलन भी किए जिनमें मुख्यतः पाँच आंदोलनों के चलते समाज को एक नई दिशा मिली और भारत देश को प्रगति करने का अवसर प्राप्त हुआ।
आंदोलन
1- बाल विवाह
राजा राम मोहन राय ने कई वर्षों से चली आ रही बाल विवाह की प्रथा को कुप्रथा साबित कर उसका विरोध किया और बाल विवाह का शिकार होने वाली स्त्री जाति के रक्षक बन समाज में महिलाओं को उनका अधिकार दिलाने में सहायक बनें।
2- मूर्ति पूजा
राजा राम मोहन राय घर में पूजा पाठ होते अक्सर देखा करते थे किन्तु उन्हें कभी ईश्वर के स्पष्ट दर्शन नहीं होने के कारण ही वो अलग अलग मूर्तियों में एक ही ईश्वर को देख पाना गलत समझते थे और यही कारण था कि उन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध किया था।
3- बहु विवाह
राजा राम मोहन राय दूर दृष्टि वाले महान व्यक्ति थे जिन्होंने भारत देश में चारों ओर फैलते अंधकार को देखा और कई कुप्रथाओं में से एक बहु विवाह को समाप्त करने पर जोर दिया (विरोध किया)। बहु विवाह एक ऐसी प्रथा थी जिसमें कोई भी व्यक्ति चाहे वह स्त्री हो या पुरुष एक से अधिक विवाह कर सकता था। उन्होंने समाज में बढ़ते अत्याचारों के प्रति महिलाओं को जागरूक किया और बहु विवाह का खुलकर विरोध करने के लिए सभी को प्रेरित भी किया।
4- अनमेल विवाह
अनमेल विवाह महिलाओं के शोषण का प्रमुख कारण था जिसे जड़ से खत्म करने का वीणा राजा राम मोहन राय ने पूरे प्रयत्न के साथ उठाया और समूचे देश में इसका विरोध किया।
कई लोग उनके इस कदम को गलत सिद्ध करने प्रयास किये किन्तु राजा राम मोहन राय ने अनमेल विवाह जिसमें कम उम्र की लड़कियों को नये कपड़े, मिठाइयाँ, पटाखे इत्यादि लालच देकर विवाह करने जैसी कुरीतियों को रोकने का पूर्णतः प्रयास किया।
5- सती प्रथा
इस प्रथा को समाज से निकाल फेकने में राजा राम मोहन राय ने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। एक घटना ने उनके जीवन को इस तरह झकझोर दिया की वे इस कुप्रथा को जड़ से खत्म करने का संकल्प कर लिए। घटना यह थी कि राजा राम मोहन राय किसी काम से विदेश गए हुए थे और इसी बीच उनके भाई का निधन हो गया। उनके भाई की मृत्यु के बाद सती प्रथा के नाम पर उनकी भाभी को भी जिन्दा जला दिया गया। इस घटना से उनके मन को जो ठेस लगा कि उन्होंने वैसा और किसी भी महिला के साथ ना होने देने का प्रण किया और इस सामाजिक विचारधारा को गहराइयों से हमेशा- हमेशा के लिए मिटा देने का सफ़ल प्रयास किया।
सती प्रथा का अर्थ यह था की पति की मृत्यु होने पर पति की चिता में ही पत्नी को भी जला दिया जाता था। कई बार यह विधवाओं की मर्जी से होता था किन्तु कई बार उन्हें जबरन जला दिया जाता था जिसे पवित्र स्त्री का नाम दिया जाता था।
सामाजिक शोध
जब किसी क्षेत्र में नये विचार पर कार्य किया जाता है या पुराने तौर - तरीकों को दुबारा अपने विचार से जोड़ कर समाज में प्रसारित किया जाता है तो उसे सामाजिक शोध कहा जाता है।
सामाजिक घटनाओं को एवं समस्याओं को अपने विचार से लयबद्ध करना क्रमबद्ध तथा अपने तौर - तरीकों से अपने ज्ञान से समाज को नई दिशा देना ही सामाजिक शोध कहलाता है। और इस सामाजिक व्यवस्था को राजा राम मोहन राय ने जो दिशा दिखाई वह सामाजिक कल्याण, जन कल्याण और भारत को प्रगति करने में अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हुई।
राजा राम मोहन राय को समाज सुधारक के रूप में भी देखा जाता है।
उन्होंने हिंदू धर्म की धार्मिक कुप्रथाओं का और अंधविश्वासों का जमकर विरोध किया और एक नये युग के संस्थापक बने। राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई सन् 1772 को बंगाल के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। राजा राम मोहन राय को कई इतिहासकारों द्वारा 'बंगाल पुनर्जागरण का पिता' माना जाता है। मात्र 15 वर्ष की आयु में ही राजा राम मोहन राय ने बंगाल में पुस्तक लिख कर मूर्ति पूजा का विरोध करना शुरू किया था। राजा राम मोहन राय को कई भाषाओं का ज्ञान था। राजा राम मोहन राय का प्रभाव राजनीति, लोक प्रशासन, धर्म और शिक्षा के क्षेत्रों में स्पष्ट झलकता था। राजा राम मोहन राय का सबसे पहला प्रकाशन सन् 1803 मे "देवताओं का एक उपहार" सामने आया था। इसमें हिंदुओं की तर्कहीन धार्मिक विश्वसों और कुप्रथाओं को समाप्त करने पर बल दिया गया था।
राजा राम मोहन राय ने 1814 मे जातिगत कठोरता, निरर्थक अनुष्ठानों और अन्य सामाजिक बुराइयों का विरोध करने के लिए कोलकाता के अंदर आत्मीय सभा की स्थापना की थी।
उन्होंने कई अभियान चलाये जैसे - जाति व्यवस्था, नशीली दवा, अंधविश्वास, छुआछूत।
राजा राम मोहन राय को महिलाओं की स्वतंत्रता और विशेष रूप से सती प्रथा और विधवा पुनर्विवाह के लिए सबसे अधिक जाना जाता है।
शैक्षणिक सुधार-
राजा राम मोहन राय ने हिंदू कॉलेज खोजने के लिए वर्ष 1817 मे डेविड हेयर का समर्थन किया था।
राजा राम मोहन राय ने सन् 1825 मे वेदांत कॉलेज की स्थापना की जिसके अंदर भारतीय शिक्षण और पश्चिम समाज के साथ भौतिक विज्ञान दोनों पाठ्यक्रमों को एक साथ पढ़ाया जाता था।
पत्रकारिता-
राजा राम मोहन राय ने संवाद कौमुदी, बंगदूत जैसे पत्रों का संपादन - प्रकाशन किया। बंगदूत एक अनोखा पत्र था जिसमें बांग्ला, हिंदी और फारसी भाषाओं का प्रयोग एक साथ किया जाता था।
मतभेद-
राजा राम मोहन राय मूर्ति पूजा और रूढ़िवादी हिंदू परंपराओं के विरुद्ध थे। इसके साथ ही वह सभी प्रकार के धर्मांधता और अंधविश्वासों के भी खिलाफ थे परन्तु राजा राम मोहन राय के पिता रूढ़िवादी हिंदू ब्राह्मण थे। छोटी सी उम्र में ही अपने पिता के साथ धर्म के नाम पर मतभेद होने लगा था।
इसी वजह से उनके माता - पिता ने उनका विवाह समय से पहले ही करवा दिया था। विवाह करने के बाद भी राजा राम मोहन राय ने धर्म के नाम पर पाखंड को उजागर करने के लिए हिंदू धर्म का गहराइयों से अध्ययन करना जारी रखा। और फिर उन्होंने सबसे पहली पुस्तक "मुहफट उल मुवाहिदीन" लिखी जिसके अंदर धर्म की खूब वकालत की और रीति - रिवाजों और अनुष्ठानों का विरोध भी किया।
राजा राम मोहन राय की मृत्यु लंदन स्थित ब्रिस्टल के पास सटापलेटोन में 27 सितम्बर 1833 में मैनिजाइटिस के कारण हो गयी थी।
राजा राम मोहन राय आधुनिक भारत के जनक ही नही थे वे नये युग के निर्माता भी थे। नये भारत के ऐसे महान व्यक्ति थे जिन्होंने पूर्वी और पश्चिमी विचारधारा को एक समान कर कई वर्षों से सोये हुए भारत को जगाया था।
ऐसे महान व्यक्ति को मै सादर प्रणाम करता हूँ।
ज्योति प्रकाश राय
भदोही, उत्तर प्रदेश 221309
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