कर रहे थे कत्ल वो सर-ए-आम बाजार में
खून की प्यासी दिखी हर चमक तलवार में
गिर रहा था सिर कहीं धड़ कहीं पर गिर रहा
लेकर बहू ,बेटियों को बाप पागल फिर रहा
आतंक का यह शोर था शोर था यह काफ़िरों का
मिलता नहीं था रास्ता झुंड था मुसाफिरों का
छीन कर भी बन गए वो हमदर्द सारे हिन्द के
जो नहीं बोले कभी जय हिंद गुरु गोविंद के
भर पेट उनको रोटियाँ देता रहा हिंदोस्तां
उनके दिलों में पल रही कुरीतियाँ पाकिस्तां
गलतियाँ कर के भी वो ताज पहनाये गए
हिंद-ए-वतन के वास्ते घर सभी जलाये गए
वो जुर्म की सीमा सभी लाँघ कर बागी हुए
तब हिंदुस्तां के जांबाज भी देश में दाग़ी हुए
भ्रष्ट होता देख सब करवट लिया फिर देश ने
देख कर फिर पात्रता गद्दी दिया उपदेश में
राज अब तेरा चले कश्मीर - कन्या छोर तक
कर ले जहाँ को कैद तू देख चारों ओर तक
हो गए हैं सब सजग ईश्वर भी तेरे साथ है
सब पर चढ़ा है रंग भगवा तेज तेरे माथ है
झुक रहे हैं वो सभी जो देश को थे खा रहे
एक-एक कर के सभी मिटते हुए हैं जा रहे
माफ़ी नहीं उनको मिले जो खा गए इंसानियत
दण्ड उनको चाहिए जो फैला रहे हैवानियत
ज्योति उज्ज्वल हो रहा अपने वतन के वास्ते
मिल गए हैं फिर सभी को बिछड़े हुए वो रास्ते
ज्योति प्रकाश राय
भदोही, उत्तर प्रदेश
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