मै हर रोज टूटता हूँ , बिखर जाता हूँ
उसको याद करता हूँ, संवर जाता हूँ
सोचता हूँ कि अब उसको भुला दूँगा
कम्बख़्त रहम दिल है, मुकर जाता हूँ
यूँ तो ज़ाम पी कर भी नशा नही होता
दर्द-ए- ग़म पीता हूँ, उतर जाता हूँ
उसी को छोड़ दूँ, या सब को छोड़ दूँ
इसी कश्मकस में रोज गुजर जाता हूँ
ये उम्र है, जवानी है, या कुछ और है
गहराई से देखता हूँ, तो ठहर जाता हूँ
कभी कभी जब वो सामने आ जाए
मै तालाब हो कर भी लहर जाता हूँ
मै परिंदा तो नही जो डाल - डाल बैठूँ
ज्योति हूँ, जलता हूँ, तो नज़र आता हूँ
ज्योति प्रकाश राय
भदोही, उत्तर प्रदेश
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