(इसमें तीन स्त्रियाँ सही हैं, तो तीन स्त्रियाँ गलत भी हैं)
एक औरत ही औरत के दुःख का कारण होती हैं
वह खुद ही द्वेष बढ़ाती हैं खुद ही बैठ के रोती हैं
जब तक माँ बेटी होती हैं हर कष्ट खुशी से सहती हैं
बन गयी बहू तो फिर सातवें आसमान पर रहती हैं
दिन रात पहाड़ा पढ़ती हैं और नही चैन से सोती हैं
वह खुद ही द्वेष बढ़ाती हैं खुद ही बैठ के रोती हैं
एक बहू के आने से सास बन गयी सभी में ख़ास
सास कहे बात सुनो कहूँ भला क्या जूना इतिहास
अपमानित कर स्त्री को ईर्ष्या के बीज वो बोती हैं
वह खुद ही द्वेष बढ़ाती हैं खुद ही बैठ के रोती हैं
ननद बनी वह भी स्त्री भाभी बनी जो वह भी स्त्री
देवरानी बनी वह भी स्त्री जेठानी बनी वह भी स्त्री
बात करें वो बढ़ चढ़ कर आप ही आपा खोती हैं
वह खुद ही द्वेष बढ़ाती हैं खुद ही बैठ के रोती हैं
इतिहास गवाह है युग युग से एक से दो यदि हो जाएं
भगवान ही जाने दिन बीते रात शान्ति से सो जाएं
गांधारी द्रौपदी सिया सुपर्णखा सुरुचि सुनीति होती हैं
वह खुद ही द्वेष बढ़ाती हैं और खुद ही बैठ के रोती हैं
यदि स्त्री स्त्री को समझे परिवार नही फिर बिगड़ेगा
स्नेह - प्रेम घर बरसेगा और स्वर्ग धरा पर उतरेगा
पर ऐसा होना बहुत असम्भव सरल न बहते मोती हैं
वह खुद ही द्वेष बढ़ाती हैं और खुद ही बैठ के रोती हैं
ज्योति प्रकाश राय
भदोही, उत्तर प्रदेश
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