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हिन्द की हिंदी

विश्वास नहीं होता है क्यूँ आज यहाँ इंसानों पर

उमड़ता नही क्यूँ प्रेम आज भारत के विद्वानों पर


लिखता नही लेख क्यूँ कोई, क्या शब्द सदी संग समा गए

या आचार विचार वो साथ ले गए, द्वेष भावना थमा गए


क्यों नही गूंजते शब्द मैथिली आकर मेरे कानों में

क्यों नही समझती आज की जनता शब्द बड़े पैमानों में


वही लिखावट वही बनावट अक्षर वही प्रलोभन के

निर्वाचन हो या निर्वाचित या उपकरण शब्द संबोधन के


जयशंकर, मुंशी और निराला, दिनकर को याद दिलाऊँगा

मै ज्योति प्रकाश हिन्द की गरिमा आज यहाँ दिखलाऊँगा


अंग्रेजों पर भारी थी और भारी आज भी है हिंदी

जैसे अंग्रेजी महिला पर भारी पड़ती है बिंदी


कितनी महत्वपूर्ण है हिंदी आज यहाँ बतलाऊँगा

मै ज्योति प्रकाश हिन्द की गरिमा आज यहाँ दिखलाऊँगा


प्रेम छलकता है हिंदी का जब चरण पखारे जाते हैं

मस्तक ऊँचा हो जाता है जब भविष्य सँवारे जाते हैं


कालिदास की रचना का सारांश यहाँ समझाऊँगा

मै ज्योति प्रकाश हिन्द की गरिमा आज यहाँ दिखलाऊँगा


भार्या की डांट पड़ी जो पड़ी पड़ गयी दृष्टि माँ काली की

विद्या से मिल गयी विद्योतमा झुकी नजर मद वाली की


सूर हुए रवि के समान तुलसी चंद्र समान बने

उडगन केशवदास हुए अबके खद्योत समान बने


ऐ हिंदी आज समर्पित हूँ अपनी हर अभिलाषा से

बढ़ती रहे हिन्द की गरिमा नतमस्तक हूँ इस आशा से

ज्योति प्रकाश राय ❤

भदोही, उत्तर प्रदेश

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