कल ही फसल थी कटने वाली
उत्साह - उमंगें थी डटने वाली
फिर कैसी काली रात हुई है
हे राम, यह कैसी बरसात हुई है
दिन दिन भर लहू बहाया था
क्या रब को रास न आया था
जंग जीत कर भी कैसी मात हुई है
हे राम, यह कैसी बरसात हुई है
इस बार फसल थी डटी हुई
सब की नजर से थी बटी हुई
फिर भी बेबस हालात हुई है
हे राम, यह कैसी बरसात हुई है
बारिश किसान की ज्योती है
बारिश से ही खेती होती है
फिर यह कैसी आघात हुई है
हे राम, यह कैसी बरसात हुई है
क्या बारिश ने किया अंधेरा है
या कृषक ने खुद मुह फेरा है
क्यूँ तना तनी जज्बात हुई है
हे राम, यह कैसी बरसात हुई है
इंसा ने तकनीक लगाई है
खुद प्रकृति से बैर बढ़ाई है
बस इसी लिए आपात हुई है
बिन मौसम बरसात हुई है
ज्योति प्रकाश राय
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