जन्म लेती है जब एक नन्ही सी कली
महकाती है घर आंगन और हर गली
बड़े लाड प्यार से थी संस्कारों में ढली
हाँ वो खुश दिल थी और थी मनचली
उसकी उम्र बढ़ती गई दायरे घटते गए
उसकी चाहत उमंगें समय से पटते गए
वो बेटी बन रही फिर बहन बन गई
उम्र के पड़ाव में फिर वजन बन गई
बस हाथ पीले हुए फिर लहू बन गई
वो पत्नी बनते ही एक बहू बन गई
वक्त के साथ प्रीतम की जाँ बन गई
नया जन्म हुआ अब वो माँ बन गई
एक नन्ही कली से वो गुलाब हो गई
वक़्त के हर सवाल का जवाब हो गई
ता-उम्र लड़ती रही सीढ़िया चढ़ती रही
एक ही रूप से सारे रिश्ते गढ़ती रही
जिसने कहा बेटी हुई सत्या नाश हो गई
हा वही मनचली किसी की सास हो गई
खुल कर जीना इन्हें अब है आने लगा
इनके रंगत का असर नभ में छाने लगा
ये झाँसी इंदिरा और सरोजनी थी बनी
कल्पना चावला बन आसमां तक तनी
फिर ये प्रतिभा हुई रंग निखरता गया
इनके जलवों से भारत सँवरता गया
अब ये पढ़ती हैं मौसम की सारी घड़ी
कद हों छोटे भले पर अनुभवी हैं बड़ी
ज्योति प्रकाश राय
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