कहते है शख्त प्रशासन है, मुंबई शहर के अंदर में
यदि इसे प्रशासन कहते है, तो क्या फर्क पुलिस और बन्दर में ?
मानवता खो गयी पुलिस की, छा गयी क्रूरता चौकी में
इंसान भगा शैतान जगा, छिप गयी एकता खाकी में
मुंबई वडाला टी टी क्षेत्र, चौकी में गुण्डाराज बढ़ा
विजय सिंह का जीवन हरने, पुलिसों में यमराज चढ़ा
ना बम फोड़ा ना गाय कटी, उसके हाथो जज्बातों से
फिर भी वह प्राण हीन हुआ, शासन के घूंसो-लातों से
जब साँस आखिरी उम्मीद आखिरी, पानी का वह मांग करे
अंतिम क्षण तक विजय लड़ा, और पुलिस नहीं का राग भरे
आ रही शर्म सरकार राज्य पर, जो कुर्सी-कुर्सी करती है
एक अड़े है पांच वर्ष पर, इक आधे-आधे पर मरती है
उस माँ की हालत क्या जाने, सरकार अभी तक सोई है
पत्थर हो गए नेत्र ममता के, जो बेटा-बेटा रोई है
विश्वास करे अब लोग कहाँ, कैसे कह दे सब ज्ञानी हैं
ज्योति प्रकाश की कलम कहे, धरती पर सब मनमानी है
तब्दील हो गया विजय सिंह, महाराष्ट्र के अख़बारों में
शासन की चौकी से उठ कर, चिपक गया दीवारों में
कानून के रक्षक कानून के पालक, तुमसे ही दुनिया चलती है
सरकार करे इंसाफ विजय का, आग्रह जनता करती है
धन्यवाद।
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