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ग़जल

मै हर रोज टूटता हूँ , बिखर जाता हूँ उसको याद करता हूँ, संवर जाता हूँ सोचता हूँ कि अब उसको भुला दूँगा कम्बख़्त रहम दिल है, मुकर जाता हूँ यूँ तो ज़ाम पी कर भी नशा नही होता दर्द-ए- ग़म पीता हूँ, उतर जाता हूँ उसी को छोड़ दूँ, या सब को छोड़ दूँ इसी कश्मकस में रोज गुजर जाता हूँ ये उम्र है, जवानी है, या कुछ और है गहराई से देखता हूँ, तो ठहर जाता हूँ कभी कभी जब वो सामने आ जाए मै तालाब हो कर भी लहर जाता हूँ मै परिंदा तो नही जो डाल - डाल बैठूँ ज्योति हूँ, जलता हूँ, तो नज़र आता हूँ ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश
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राम राम (भजन)

इस भजन में कुल 50 बार राम शब्द का प्रयोग किया गया है। यदि एक बार राम राम बोलने से 108 मनकों की माला फेरने का पुण्य प्राप्त होता है तो इस भजन में कुल 25 बार राम राम बोलने का सौभाग्य प्राप्त होता है। जिसका अर्थ यह है कि, 25×108=2700 इस प्रकार यह भजन दिन में चार बार भजने से 04×2700=10800 मनकों का जाप हो जाता है। जो एक मनुष्य को 10800 बार ईश्वर का स्मरण करने के बराबर है। ( वैज्ञानिक विधि से एक स्वस्थ मनुष्य 24 घण्टे में 21600 बार स्वास लेता है, जिसमें वह 12 घण्टे दिनचर्या में व्यतीत कर देता है। इसलिए 10800 बार जप कर पाना संभव नही है इसलिए दो शून्य हटा कर 108 मनकों का जप करना पवित्र और पुण्य माना गया है। इसलिए इस भजन को चार बार कहने मात्र से 10800 मनकों का जप सरलता से संभव हो जाएगा।  राम राम रटता है राम राम करता है फिर भी न मानता है राम तेरे मन में राम राम कहता है राम राम सुनता है फिर भी न जानता है राम हैं भजन में।।  राम राम धुन प्यारे राम राम सुन प्यारे राम नाम बसा सारे जन के नयन में।।  राम राम द्वेष नही राम राम क्लेश नही राम नाम मिलता है धनी के सयन में।।  राम राम शीतल जल राम राम पावन थल र

स्त्रीयों का द्वेष

(इसमें तीन स्त्रियाँ सही हैं, तो तीन स्त्रियाँ गलत भी हैं) एक औरत ही औरत के दुःख का कारण होती हैं वह खुद ही द्वेष बढ़ाती हैं खुद ही बैठ के रोती हैं जब तक माँ बेटी होती हैं हर कष्ट खुशी से सहती हैं बन गयी बहू तो फिर सातवें आसमान पर रहती हैं दिन रात पहाड़ा पढ़ती हैं और नही चैन से सोती हैं वह खुद ही द्वेष बढ़ाती हैं खुद ही बैठ के रोती हैं एक बहू के आने से सास बन गयी सभी में ख़ास सास कहे बात सुनो कहूँ भला क्या जूना इतिहास अपमानित कर स्त्री को ईर्ष्या के बीज वो बोती हैं वह खुद ही द्वेष बढ़ाती हैं खुद ही बैठ के रोती हैं ननद बनी वह भी स्त्री भाभी बनी जो वह भी स्त्री देवरानी बनी वह भी स्त्री जेठानी बनी वह भी स्त्री बात करें वो बढ़ चढ़ कर आप ही आपा खोती हैं वह खुद ही द्वेष बढ़ाती हैं खुद ही बैठ के रोती हैं इतिहास गवाह है युग युग से एक से दो यदि हो जाएं भगवान ही जाने दिन बीते रात शान्ति से सो जाएं गांधारी द्रौपदी सिया सुपर्णखा सुरुचि सुनीति होती हैं वह खुद ही द्वेष बढ़ाती हैं और खुद ही बैठ के रोती हैं यदि स्त्री स्त्री को समझे परिवार नही फिर बिगड़ेगा स्नेह - प्रेम घर बरसेगा और स्वर्ग धरा पर उतरे

अयोध्या की व्याकुलता (गीत)

अयोध्या थी बड़ी व्याकुल कहाँ अब राम आयेंगे अयोध्या है बड़ी हर्षित हमारे राम आयेंगे थी सूनी हर गली अपनी था सूना हर महल अपना अयोध्या नाथ बिन तुम्हरे अयोध्या थी महज सपना प्रकाशित हो उठी गलियाँ मेरे भगवान आयेंगे अयोध्या है बड़ी हर्षित हमारे राम आयेंगे दरश पाने की हो इच्छा तो शबरी माँ सी भक्ती हो हृदय में धैर्य हो अपने भले ही तन की मुक्ती हो अंतिम क्षण में आ कर के वो जूठे बेर खायेंगे अयोध्या है बड़ी हर्षित हमारे राम आयेंगे भरोसा था विभीषण को मिलेंगे राम चिंतन से कहाँ मालूम था जग को जितेंगे प्रभु दसानन से रहो चाहे जहाँ जग में सियापति मिल ही जायेंगे अयोध्या है बड़ी हर्षित हमारे राम आयेंगे अयोध्या फिर हुई जगमग प्रतिष्ठा प्राण की होगी लखण, रिपुसूदन, भरत के बाण की होगी हनुमत भक्त यह बोले नदी सरयू नहायेंगे लिख ज्योति यह बोले अयोध्या दर्शन को जायेंगे अयोध्या है बड़ी हर्षित हमारे राम आयेंगे अयोध्या थी बड़ी व्याकुल हमारे राम आयेंगे अयोध्या है बड़ी हर्षित हमारे राम आयेंगे ज्योति प्रकाश राय

दीपावली का अमृत महोत्सव

आओ मिलकर दीप जलायें दीपोत्सव है आया सब मिलकर खुशी मनायें अमृत महोत्सव है छाया जैसे दूर गगन में टिम टिम करते तारे लगते प्यारे वैसे हम सब मिलकर बदलें पृथ्वी के सभी नज़ारे दूर भगाओ दूर भगाओ है जो घन घोर अंधेरा स्वच्छ हुआ है जितना आँगन उतना हो सब डेरा मन का तिमिर मिटाने खातिर दीपोत्सव है आया सब मिलकर खुशी मनायें अमृत महोत्सव है छाया मन का तिमिर मिटाने से जीवन सरल है होता मन में जिसके अंधकार वह जीवन भर है रोता लक्ष्मी - गणेश के पूजन से बुद्धि सबल है होती यदि कृपा न होती मातु भारती सारी दुनिया सोती सुख समृद्धि बढ़ाने खातिर हर मानव है धाया सब मिलकर खुशी मनायें अमृत महोत्सव है आया दीप जलाओ नाचो गाओ अवध सिया पति आयेंगे विजय पताका कीर्तिमान हिंदुत्व का मान बढ़ायेंगे अहंकार बलिदान करो ध्यान करो कुछ कर्मो का दीपावली का पर्व है आया ज्ञान भरो कुछ धर्मो का आओ मिलकर ज्योति जलाएँ छोड़ो जो भी है माया सब मिलकर खुशी मनायें अमृत महोत्सव है छाया ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश

दास्ताँ

देखा था जो भी स्वप्न वो स्वप्न छल गए गुजरी जवान उम्र ख्वाहिश भी टल गए सोचा था  वो बनेंगे  सहारा बुढ़ापे का रुपया कमाने घर से बच्चे भी कल गए    (1)  हम दो ही रह गए हैं अपनी हवेली में जीता है जैसे आदमी किस्से पहेली में वो पेड़ गिर रहा जो छाया था दे रहा फल नही तो नाम का साया था दे रहा अहमियत से ज्यादा तुम पर लुटा दिया जीता गया तुम्हे खुद को मिटा दिया मांगा था जो भी तुमने वो सब दिया तुम्हे कर्जे में डूब कर भी खुश कर दिया तुम्हे तकलीफ तब हुई जब तन से बल गए रुपया कमाने घर से बच्चे भी कल गए    (2)  क्या याद है तुम्हे या भूल तुम गए आकर हमारी बाहों में जब झूल तुम गए खुश होकर मैंने तुम्हे कंधा बिठा लिया सिर पर खड़ा किया चंदा दिखा दिया अंगुली पकड़ चले जब थोड़े बड़े हुए बैठा जमीं पे मै हाँ तब तुम खड़े हुए मुस्कान देख कर मेरा दिल मचल गया तुमको हँसाने खातिर मै फिसल गया तड़पे बहुत थे हम शाला को चल गए रुपया कमाने घर से बच्चे भी कल गए    (3)  पेंसिल रबर शियाही काॅपी दिया तुम्हे जिद पे अड़े थे जब टॉफी दिया तुम्हे जब भी दिवाली आई दीपक जलाए हम जो भी कहा था तुमने तुमको दिलाए हम तुमको ना कोई गम हो गम को भुल

देवी माँ की आरती

 तुम्ही हो दुर्गा तुम्ही हो काळी तुम ही अष्टभुजाओं वाली तुम ही माता भारती,है आरती है आरती, है आरती..........  पड़ा कभी जब कष्ट से पाला तुमने आ कर हमें सम्हाला जब भी तुमको याद किया माँ तुमसे जब फरियाद किया माँ हो कष्ट सभी तुम टाराती, है आरती है आरती, है आरती............ हिंगलाज में तुम्ही हो मइया पालनहार और तुम्ही खेवइया रक्तबीज को तुम्ही संहारा भैरव को तुमने ही उबरा तुम ही सबको सँवारती, है आरती है आरती, है आरती...........  पहली आरती मणिकर्णिका दूसरी आरती विंध्याचल में तिसरी आरती कड़े भवानी चौथी आरती माँ जीवदानी पाँचवी यहाँ पुकारती, है आरती है आरती, है आरती.............. कहे ज्योति हे शैल भवानी अरज सुनो दुर्गा महारानी विपदा सबकी पल में हर लो दया दृष्टि हम पर भी कर लो मेरि आँखें राह निहारती, है आरती है आरती, है आरती..........।। ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश

भजन (देवी गीत)

तर्ज - राधे तेरी चरणों की रज धूल जो मिल जाए मइया तेरे मन्दिर में हर पल ही उत्सव है माँ तुझे समर्पित है जीवन जो सम्भव है मइया तेरे मन्दिर में..............। तेरा धाम बसा मइया चहुँ ओर पहाड़ों पर मझधार मेरी नइया तू ला दे किनारे पर तू कर दे कृपा मइया मंगल ही मंगल है मइया तेरे मन्दिर में.............। मेरा और नही कोई बस तेरा सहारा है इसलिए मेरी माता तेरा नाम पुकारा है हे दुर्गा शिवा धात्री तेरे नाम का पूजन है मइया तेरे मन्दिर में.............। है राह बड़ा दुर्गम किस तरह से आऊँ मै हो जाए कृपा तेरी बस तुझे धियाऊँ मै जब बंद करूँ आँखें तेरे रूप का दर्शन है मइया तेरे मन्दिर में...........।  दुर्गा तेरे.... काली तेरे.... शारदे.... त्रिकुटा तेरे....। ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश

पुष्प की आकांक्षा

ओ बाग लगाने वाले माली मुझे बचाने वाले माली तुमसे करूँ एक उम्मीद मुझको होता सुखद प्रतीत तुम्ही हो मेरे भाग्य विधाता तुम्ही से मेरा जीवन है तुम्ही से पुष्प सुगंधित हैं तुम्ही से जीवित उपवन है मुझे तोड़ कर हार बनाना वर माला या द्वार बनाना शोभा सदा बढ़ाऊँगा यदि काम तुम्हारे आऊँगा पर मेरी अर्जी अगर सुनोगे जिस दिन उसके लिए चुनोगे उस दिन मैं इतराउंगा गुणगान तुम्हारे गाऊंगा जब निकलेगी वीरों की टोली गूंजेगी जय हिन्द की बोली मैं भी शरहद पर बरसूँगा चहुँ ओर सुगंधित कर दूँगा हिन्द देश के झण्डे संग जब जब लहराया जाता हूँ मैं भारत भूमि को चूम चूम इठलाता हूँ इतराता हूँ बस एक निवेदन है माली उपयोग करो सैनिक पथ पर यह ज्योति प्रज्वलित रहे सदा अपने नित दैनिक पथ पर ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश

हिन्द की हिंदी

विश्वास नहीं होता है क्यूँ आज यहाँ इंसानों पर उमड़ता नही क्यूँ प्रेम आज भारत के विद्वानों पर लिखता नही लेख क्यूँ कोई, क्या शब्द सदी संग समा गए या आचार विचार वो साथ ले गए, द्वेष भावना थमा गए क्यों नही गूंजते शब्द मैथिली आकर मेरे कानों में क्यों नही समझती आज की जनता शब्द बड़े पैमानों में वही लिखावट वही बनावट अक्षर वही प्रलोभन के निर्वाचन हो या निर्वाचित या उपकरण शब्द संबोधन के जयशंकर, मुंशी और निराला, दिनकर को याद दिलाऊँगा मै ज्योति प्रकाश हिन्द की गरिमा आज यहाँ दिखलाऊँगा अंग्रेजों पर भारी थी और भारी आज भी है हिंदी जैसे अंग्रेजी महिला पर भारी पड़ती है बिंदी कितनी महत्वपूर्ण है हिंदी आज यहाँ बतलाऊँगा मै ज्योति प्रकाश हिन्द की गरिमा आज यहाँ दिखलाऊँगा प्रेम छलकता है हिंदी का जब चरण पखारे जाते हैं मस्तक ऊँचा हो जाता है जब भविष्य सँवारे जाते हैं कालिदास की रचना का सारांश यहाँ समझाऊँगा मै ज्योति प्रकाश हिन्द की गरिमा आज यहाँ दिखलाऊँगा भार्या की डांट पड़ी जो पड़ी पड़ गयी दृष्टि माँ काली की विद्या से मिल गयी विद्योतमा झुकी नजर मद वाली की सूर हुए रवि के समान तुलसी चंद्र समान बने उडगन केशवदास हुए

ग़जल ( घर )

 वर्षों बीत जाते हैं घर को घर बनाने में तुम्हें चंद घंटे लगते हैं घर को ढहाने में गलतियाँ एक करे और सजा सब को क्या वक्त लगा इस नियम को बनाने में माना कि द्वेष बढ़ रहा है धर्म के लिए पर क्या हासिल होगा छत गिराने में जान लिया दोष किसका है कितना है फिर चढ़ा दो फांसी सबक सिखाने में अवैध निर्माण तक बुल्डोजर अच्छा था ये सितम है सरकारी खौफ़ दिखाने में ये अपने अपने रौब का प्रभाव है लोगों गिर गई हैं नीतियाँ कुर्सियाँ गिराने में खत्म हो रही इंसानियत हर इंसानों से ना जाने क्या हो रहा है इस जमाने में छोड़ दो ये सब आतंक सा लग रहा है ता उम्र गुजारी है घर को घर बनाने में ज्योति प्रकाश राय ❤

क्या बोले तस्वीर

कन्या- मत करना अपमान हमारा सब कुछ तुमसे बाटेंगे दिन दो चार नहीं हम यह जनम तुम्ही संग काटेंगें साक्षी अनल हमारे बंधन का यह दो पल का खेल नही दो परिवारों का मिलन हुआ है दो जिश्मों का मेल नहीं दे दिया हाथ अब हाथ आपके समझो जीवन की नइया मझधार धार पतवार तुम्ही और तुम्ही रहोगे खेवइया भइया भाभी कर रहे दान है नही पिता अब दुनिया में हूँ लाड प्यार से पली बढ़ी अब रहूँ आपकी दुनिया में करना सम्मान सभी संबंधों का मै भी वचन निभाऊँगी है पावक की आन मुझे मै सुख दुःख साथ बिताऊँगी रूखी सूखी खा लूँगी उपवास भी करना सहन मुझे व्यंग बोल कर बातों में हर पल मत करना दहन मुझे ध्यान रहेगा संस्कारों का घर होगा घर कोई जेल नही दो परिवारों का मिलन हुआ है दो जिश्मों का मेल नही वर- हे धरा गगन हे अग्नि पवन यह पल सदियों अमर रहे जब तक ध्रुव तारा मंडल हो मूर्ति सुहाग हर पहर रहे जीवन संगिनी बनी हो तुम मै अपना कर्तव्य निभाऊँगा इक रोटी के दो भाग करूँगा तब साथ तुम्हारे खाऊँगा लो आज बँधा तुम संग बंधन अब यह ज्योति तुम्हारा है रहो सदा छाया मेरी मुझको भी मिल गया सहारा है ज्योति प्रकाश राय❤ भदोही उत्तर प्रदेश

सपना और हकीकत

आज फिर मेरे सपने में माँ आ गई हर एक बात पर बहुत कुछ समझा गई मै भी सपनों में खोया नींद भर सोता रहा बचपन की तरह आज भी जिद कर के रोता रहा माँ की नजर में बेटा बच्चा ही रहता है वो चाहे लाख बुरा क्यूँ ना हो अच्छा ही रहता है आज एक सवाल पर माँ बहुत कुछ सिखा गई मुझे सपनों में भी आईना दिखा गई सवाल ये था मेरा की मेरा प्रेम किसी और से भी जुड़ गया है कुछ इधर तो कुछ उधर भी मुड़ गया है माँ ने कहा वो किसी की बेटी है खिलवाड़ मत करना दिल बहलाने के लिए ऐसा जुगाड़ मत करना वो किसी की इज्जत है किसी के दिल का टुकड़ा होगी पसंद यदि तेरी है तो चाँद का मुखड़ा होगी मेरी तुझसे एक गुजारिश है तू उससे ये बोल देना वो घर की दहलीज का भी खयाल रखे ये तोहफा अनमोल देना अचानक से मेरी आँख खुली सवेरा हो गया था बड़ा ही खूबसूरत था वो सपना जिसमें मै खो गया था संदेश ये है दुनिया को ज्योति प्रकाश के जरिए सपना हो या हकीकत खिलवाड़ मत करिए ज्योति प्रकाश राय Event vashi Oct. 2019

गुड़गांव

एक बार फिर जिंदगी छाँव तक ले आई ये उम्मीद बीच लहरों से नाव तक ले आई सुना था उनको चलाने वाली भी जिंदगी थी मै फिसला तो ये जिंदगी पाँव तक ले आई छोड़ कर शहर एक दम से थम सा गया था फिर मेरी जिंदगी मुझे मेरे गाँव तक ले आई सिलसिला ता-उम्र चलता रहेगा लेखन का भले ही जिंदगी अभी गुड़गांव तक ले आई ज्योति प्रकाश राय

बिन मौसम बरसात

 कल ही फसल थी कटने वाली उत्साह - उमंगें थी डटने वाली फिर  कैसी काली रात हुई है हे राम, यह कैसी बरसात हुई है दिन दिन भर लहू बहाया था क्या रब को रास न आया था जंग जीत कर भी कैसी मात हुई है हे राम, यह कैसी बरसात हुई है इस बार फसल थी डटी हुई सब की नजर से थी बटी हुई फिर भी बेबस हालात हुई है हे राम, यह कैसी बरसात हुई है बारिश किसान की ज्योती है बारिश से ही खेती होती है फिर यह कैसी आघात हुई है हे राम, यह कैसी बरसात हुई है क्या बारिश ने किया अंधेरा है या कृषक ने खुद मुह फेरा है क्यूँ तना तनी जज्बात हुई है हे राम, यह कैसी बरसात हुई है इंसा ने तकनीक लगाई है खुद प्रकृति से बैर बढ़ाई है बस इसी लिए आपात हुई है बिन मौसम बरसात हुई है ज्योति प्रकाश राय

स्त्री का रूप

जन्म लेती है जब एक नन्ही सी कली महकाती है घर आंगन और हर गली बड़े लाड प्यार से थी संस्कारों में ढली हाँ वो खुश दिल थी और थी मनचली उसकी उम्र बढ़ती गई दायरे घटते गए उसकी चाहत उमंगें समय से पटते गए वो बेटी बन रही फिर बहन बन गई उम्र के पड़ाव में फिर वजन बन गई बस हाथ पीले हुए फिर लहू बन गई वो पत्नी बनते ही एक बहू बन गई वक्त के साथ प्रीतम की जाँ बन गई नया जन्म हुआ अब वो माँ बन गई एक नन्ही कली से वो गुलाब हो गई वक़्त के हर सवाल का जवाब हो गई ता-उम्र लड़ती रही सीढ़िया चढ़ती रही एक ही रूप से सारे रिश्ते गढ़ती रही जिसने कहा बेटी हुई सत्या नाश हो गई हा वही मनचली किसी की सास हो गई खुल कर जीना इन्हें अब है आने लगा इनके रंगत का असर नभ में छाने लगा ये झाँसी इंदिरा और सरोजनी थी बनी कल्पना चावला बन आसमां तक तनी फिर ये प्रतिभा हुई रंग निखरता गया इनके जलवों से भारत सँवरता गया अब ये पढ़ती हैं मौसम की सारी घड़ी कद हों छोटे भले पर अनुभवी हैं बड़ी ज्योति प्रकाश राय

मेरे राम जी

 आज दीन दुखिया भी है मगन मेरे राम जी क्या पता क्यूँ लग गई है लगन मेरे राम जी है बहुत मन मोहिनी बाल लीलाएं आपकी अदभुत छवि रोटी लिए नगन मेरे राम जी वर्षों से था  प्रतीक्षारत आज धन्य धन्य है माँ अहिल्या का शापित बदन मेरे राम जी मिथिला नगर की हर गली लालायित हो गई जब से पड़े जनक पुर में चरन मेरे राम जी इक ओर छीर सागर हैं इक ओर भूमिजा हैं दोनों से प्रेम जोड़ते यह नयन मेरे राम जी है यहाँ किसको पता होना है क्या भोर में सुबह वन जायेंगे सिय लखन मेरे राम जी विधि का विधान है यही यह आप ही की देन है आप ही में है समाहित चौदह भुवन मेरे राम जी आपने ही था रचा लंका विनाश का समय बस इसीलिए हुआ सीता हरन मेरे राम जी हैं बहुत ही भाव के भूखे दिखे शबरी के घर खाये जूठे बेर भी होकर मगन मेरे राम जी हनु सुग्रीव अंगद आप में बालि हंता आप हैं हैं संहारक मेघ रावन कुंभकरन मेरे राम जी जयघोष करता है जहाँ आज अयोध्या नाथ की यह ज्योति करता बार बार नमन मेरे राम जी ज्योति प्रकाश राय भदोही उत्तर प्रदेश

आदमी

 एक होकर भी कई भाग में बट गया है आदमी जिम्मेदारियों के बोझ तले पट गया है आदमी मिलते ही नहीं अब निशाँ सड़कों पे आजकल इस तरह मजबूरियों में सिमट गया है आदमी किसके है साथ किसके नहीं किसका है क्या पता सभी के लिए टुकड़ों में यार कट गया है आदमी हर तरफ हर जगह है शोर चोर चोर चोर चोर चोर गफलतों मे गलतियाँ न हो फिर हट गया है आदमी किसको सुनाये दास्तां अपने दिलों के आरजू अब हर नज़र हर जिगर से फट गया है आदमी हर हाल में हर चाल में हर ढाल में ढलता गया पीछे नही हरगिज मुड़ा जब डट गया है आदमी ज्योति प्रकाश राय भदोही उत्तर प्रदेश

रुपिया नाही कमाइत

 सारी दुनियादारी हमरे ऊपर घर क जिम्मेदारी हमरे ऊपर तबउ जिम्मेदार नाही कहाईत काहे से की रुपिया नाही कमाइत खाई न गुटखा नाही पान सुपारी लेई न दारू बीयर न महुआ तारी हम बढि़ - चढ़ि के नाही बतियाइत काहे से की रुपिया नाही कमाइत गाय भैंस अउ खेती बारी हम देखी कूड़ा कचरा गोबर माटी हम फेकी कौनउ काम से तनिकउ नाही लजाइत काहे से की रुपिया नाही कमाइत देखि के लोगवा हैरान बहुत बा काहे की हमरे अंदर जान बहुत बा तबउ घर में इज्जत नाही पाइत काहे से की रुपिया नाही कमाइत देखि लिहा हम के बा कइसन ठीक बा सब जइसन बा तइसन ज्योति हई हम नाही बुझाइत संघर्ष से पीछे हम नाही पराइत काहे से की रुपिया नाही कमाइत ज्योति प्रकाश राय भदोही उत्तर प्रदेश

यह कौन नशा है

 वो हो जाए चाहे और किसी का पर दिल में उसके कौन बसा है देखा चंदा, देखा सूरज, अच्छा है वो सबसे अच्छा, यह कौन नशा है आँख नशीले होठ रसीले हैं उसके हाथ में कंगन पाँव में पायल प्यारे हैं पाँव के प्यारे पायल में फिर कौन फँसा है वो सबसे अच्छा है, यह कौन नशा है मधुशाला पी कर देख लिया, फर्क नहीं उसका प्याला, क्या प्याला है, तर्क नहीं उसका प्याला सुन, फिर कौन हँसा है वो सबसे अच्छा है, यह कौन नशा है

रश्म-ए-वफ़ा

 आज रश्म-ए-वफ़ा निभाने चले हैं हम हाँ टूट कर फिर मुस्कुराने चले हैं हम कितना दर्द है मोहब्बत में जुदा होना इस भरी महफ़िल में बताने चले हैं हम रौशन है सारा संसार आज बिजली से फिर भी दिल-ए-ज्योति जलाने चले हैं हम उनके यादों को दबाना ऐसा लगता है सागर की लहरों को दबाने चले हैं हम

मकर संक्रांति

 मकर राशि में कर गए प्रवेश मिट गया रोग कट गए क्लेश धरा गगन तक बढ़ी मिठास छाया जन - जन में उल्लास खिचड़ी लोहड़ी है पर्व प्यारा स्नान और दान है गर्व हमारा लेडुआ ढुंढा लाई और गट्टा चूड़ा  दही  दूध  और  मट्ठा आलू दम का स्वाद लुभाए सुन कर मुह में पानी आए खेल कूद संग हँसी ठिठोली चिड़िया चहकी कोयल बोली गंगा जी हैं भू-लोक पधारी धन्य हुए ऋषि-मुनि नर-नारी भीष्म पितामह परलोक सिधारे वसुदेव कृष्ण सन्मुख हो हारे जय जय हो सूर्य देव नारायण अभिनंदन है हो रहे उत्तरायण ज्योति करे कर जोरि प्रार्थना पूर्ण करो जन जन की साधना

दंगा

 अब कौन मौन रह सकता है किसका रक्त नही डोलेगा तू ही बतला ऐ हिंदुस्तां क्या अब भी भक्त नही बोलेगा धर्म भक्त और देश भक्त दोनों ने मन में यह ठाना है अपना अस्तित्व न गिर जाए मिल कर हमे बचाना है क्या संविधान के नियमों का पालन हमको ही करना है क्या एक गाल खा कर थप्पड़ दूजा भी आगे करना है चुप चाप सहें और सुने गालियाँ क्या यही धर्म हमारा है आगे बढ़ कर रण लो वीरों दुश्मन हमको ललकारा है उठने लगे हैं हाथ जहा भी उन हाथों को वही मरोड़ो तुम घर में रह कर जो आँख दिखाये उसे नही अब छोड़ो तुम ध्यान करो माँ काली का शिव के त्रिशूल का ध्यान करो माथे तिलक धैर्य व साहस खुद को फिर से बलवान करो सुलग रहा है देश जिधर उस ओर मेघ बन छा जाओ हाहाकार मचा कर पल में शत्रु शक्ति को खा जाओ चहुँ ओर क्रूरता जो फैली अपने ही अपनो से हारे हैं देखो सब वही दरिंदे हैं जो भारत पर पत्थर मारे हैं धैर्य से ऊपर उठकर अब सरदार पटेल सा जोश भरो जय जय श्री राम के नारों से दुश्मन को तुम बेहोश करो गुंजायमान हो नभ मंडल हनुमत हुन्कार भरो वीरों जिस ओर बढ़ो लहरा दो भगवा बैरी संहार करो वीरों जन्नत मिल जाए इन्हे अभी राणा प्रताप सा बढ़ जाओ लेकर भाला औ

पर्यावरण ( प्रकृति)

 उस दिन सब जगह पट जाएगा जिस दिन हर वृक्ष कट जाएगा क्या इस जग को वही देखना है या जीवों को मार कर फेकना है ना रहेंगे पेड़ ना बहेगी ठंडी हवा हर तरफ दिखेगी बस गंदी फिजा सोचो क्या दुनिया का नजारा होगा हर तरफ हर आदमी बेसहारा होगा यह प्रकृति है इसमें जीवन समाया है इसी ने सजीवों का यौवन बनाया है प्रकृति से ठिठोली भारी पड़ रहा है भले क्यूँ ना इंसान आगे बढ़ रहा है स्वार्थ में हर व्यक्ति ऐसे घुल चुका है जैसे डाली में हर फूल खिल चुका है अब कभी न मिलने की जरूरत होगी बार बार ना खिलने की जरूरत होगी जब तेज आधियों में सब खो जाएगा तब मनुष्य जो किया सब याद आएगा जब पर्यावरण बचाना सरल नहीं होगा तब इन प्रश्नों का कोई हल नहीं होगा कभी तेज बारिश तो कभी धूप होगी तब हँसी वादियाँ बेहद कुरूप होगी न हो भविष्य ऐसा अपना हो या बेगाना लगा कर पेड़ पौधा प्रकृति को है बचाना ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश

गजल

 काव्योदय रदीफ़ - कर लिया मैंने ग़जल इन निगाहों में एक ख़्वाब भर लिया मैंने ख़ुद से ही ख़ुद का हिसाब कर लिया मैंने उनको देखे बिन तब दिन नही गुजरता था अब तस्वीरों को ही गुलाब कर लिया मैंने एक प्यारा सा चेहरा दिल में बसाये फिरता हू यूँ चेहरे को दिल-ए-मेहताब कर लिया मैंने ये दुनिया शिकायती आकाओं से भरी हुई है इसी लिए दिल-ए-आफ़ताब कर लिया मैंने लोग दौलत से हैं या दौलत है लोगों के लिए इसी तमन्ना में ख़ुद से हिजाब कर लिया मैंने अब ना रही कोई ख़्वाहिश ना आरजू है कोई मोहब्बत-ए-दौर में भी नका़ब कर लिया मैंने अब ना देखो ना दिखाओ ज्योति ज़ख़्मों को यूँ ही नहीं नाम अपने ख़िताब कर लिया मैंने ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश

पुरुष

 आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है बनकर कठोर हृदय वाला कठिन समय से टकराता है मार समय की कौन है सहता कौन धरा पर ऐसा है सोच सोच कर कठिन परिस्थिति ईश्वर गढ़ता जाता है आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है आँख भले ही नम हो जाए गिरता नही निगाहों से आहे भर भर सहता सब कुछ लड़ता स्वयं गुनाहों से आँच न आए परिजन पर वह झुक कर शीश उठाता है आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है देख परिस्थिति को अपने अर्जुन थे सब कुछ छोड़ रहे बन कर महान फिर से माधव पुरुष धर्म से जोड़ रहे विचलित मन से आगे होकर पुरुष ही चक्र उठाता है आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है वह भी एक पुरुष ही था जो दानवीर कहलाया है न्यौछावर कर प्राण स्वयं पुरुषों का मान बढ़ाया है हुआ भूमिगत जितना पहिया वह उतना उठता जाता है आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है ऊँचे - ऊँचे शिखरों के अंदर जो राह बना डाले जिनकी तलवारें तेज चलें हिम्मत से चलते थे भाले वह वीर शिवा रण लेकर बैरी को मार भगाता है आती है जब मुश्किल घड़ियाँ पुरुष नही घबराता है कभी काटता समय को अपने कभी समय कटवाता है कभी पाटता कर्ज को

जीवन और प्रेम

जहाँ है प्रेम की गंगा  वहीं जीवन की धारा है जिसे रब ने  संवारा है  उसे किसने बिगारा है चलो अविरल बहाएँ हम जहां में प्रेम की गंगा जहाँ हो प्यार की पूजा वहीं सबका गुजारा है करो नफ़रत  करो पूजा ये दुनिया रीत से चलती मुसाफ़िर तुम मुसाफ़िर हम उमर है प्रीत में पलती किसी की चाह में इतना नही होना कभी भी गुम खुदा की देन है जीवन नही मागे से फिर मिलती जुदा होकर भी तुम अक्सर मेरे ख्वाबों में आते हो जो गाये  गीत थे  संग में  वही तुम गुनगुनाते हो सजा कर राग जीवन का चले जाना नही अच्छा जो सबसे हम बताते हैं वो सबसे तुम छुपाते हो किसी को पा नही सकते किसी के हो ही जाओ तुम समर्पण  भाव है  ईश्वर  मोहब्बत भी निभाओ तुम नही देखो  मुनाफा  क्या है  जीवन - प्रेम में  यारों बनो सागर  रहो शीतल  मधुर जीवन बिताओ तुम है जीवन प्रेम का दर्पण यहाँ खुद को उतारो तुम जो रूठे हैं अभी तुमसे उन्हें फिर से पुकारो तुम ये जीवन  प्रेम का  प्यासा इसे तन्हा नही जीना जला कर ज्योति अंतर्मन सभी जीवन संवारो तुम ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश

निबंध

विषय- राजा राम मोहन राय का आंदोलन, सामाजिक शोधन की कसौटी राजा राम मोहन राय ने सामाजिक सुधार के लिए कई कदम उठाए और आंदोलन भी किए जिनमें मुख्यतः पाँच आंदोलनों के चलते समाज को एक नई दिशा मिली और भारत देश को प्रगति करने का अवसर प्राप्त हुआ। आंदोलन 1- बाल विवाह राजा राम मोहन राय ने कई वर्षों से चली आ रही बाल विवाह की प्रथा को कुप्रथा साबित कर उसका विरोध किया और बाल विवाह का शिकार होने वाली स्त्री जाति के रक्षक बन समाज में महिलाओं को उनका अधिकार दिलाने में सहायक बनें। 2- मूर्ति पूजा राजा राम मोहन राय घर में पूजा पाठ होते अक्सर देखा करते थे किन्तु उन्हें कभी ईश्वर के स्पष्ट दर्शन नहीं होने के कारण ही वो अलग अलग मूर्तियों में एक ही ईश्वर को देख पाना गलत समझते थे और यही कारण था कि उन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध किया था।  3- बहु विवाह राजा राम मोहन राय दूर दृष्टि वाले महान व्यक्ति थे जिन्होंने भारत देश में चारों ओर फैलते अंधकार को देखा और कई कुप्रथाओं में से एक बहु विवाह को समाप्त करने पर जोर दिया (विरोध किया)। बहु विवाह एक ऐसी प्रथा थी जिसमें कोई भी व्यक्ति चाहे वह स्त्री हो या पुरुष एक से अधिक

पानी

 हो गई बंजर ज़मी और आसमां भी सो रहा पानी नही अपने यहाँ हाय यह क्या हो रहा युगों युगों से देश में होती नही थी यह दशा व्यर्थ जल बहाव में आज आदमी आ फसा पशु पक्षियों में शोर है संकट बहुत घनघोर है देखे नही फिर भी मनु लगता अभी भी भोर है बूंद भर पानी को व्याकुल बाल जीवन हो रहा पानी नही अपने यहाँ हाय यह क्या हो रहा उनको नही है पता जिनके यहा सुविधा भरी देख ले कोई उन्हे खाली है जिनकी गागरी बहे जहा अमृत की गंगा यमुना नदी की धार है उस नगर उस क्षेत्र में भी पेय जल में तकरार है सो गई इंसानियत रुपया बड़ा अब हो रहा पानी नही अपने यहाँ हाय यह क्या हो रहा अब भी नही रोका गया व्यर्थ पानी का बहाना होगा वही फिर देश में जो चाहता है जमाना संदेश दो मिल कर सभी पानी बचाना पुण्य है पानी नही यदि पास में तो भी ये जीवन शून्य है पानी बचे जीवन बचे ज्योति उज्ज्वल हो रहा ईश्वर करे आगे ना हो व्यर्थ जो कुछ हो रहा ज्योति प्रकाश राय भदोही, उत्तर प्रदेश

पुलवामा अटैक

अपने हौसलों को कमजोर ना समझो, इनमें जज्बा है कुछ कर दिखाने का वक्त आए तो गर्व से कहना, हममें हिम्मत है जाँ लुटाने का ऐ भारत माँ तेरे चरणों की सौगंध, गर कोई तेरी ओर आँख भी उठाए, तो हममें हिम्मत है उसकी हस्ती मिटाने का दुश्मनों को घर तक खदेड़ आने का हौसला हममें है देश पर शौक से मिट जाने का हौसला हममें है याद रखो पाक के नापाक जवानों, तुम्हे मिट्टी में मिलाने का हौसला हममें है कारगिल का दौर फिर से दोहराने का हौसला हममें है फिर लाहौर तक चढ़ जाने का हौसला हममें है मंजर क्यूँ आज भयावह है, क्या यही शांत कश्मीर है हम तो वीरों में वीर बड़े, क्या लाशें ही जागीर हैं जिन हसी वादियों में खिलती, पवित्र प्रेम की कलियाँ है है धरा वहाँ क्यूँ लाल रंग, बिखरी बिछड़ी सब गलियाँ है हम तो देते संदेश प्रेम का, क्या उन्हें नही लेना आता या जिस संदेश को वो पहचाने वो हमें नही देना आता हम भी तो ज्ञान बाटते हैं, क्यूँ ना उनको हम पहचाने आखिर कब तक मित्र कहें, हरकत क्यूँ ना हम जाने ऐ भारत माँ के वीर जवानों, चालीस को कैसे खो बैठे कारगिल की याद दिलाओ उनको, जो छुपे वहाँ ऐठे-ऐठे लश्कर के हो या हिजबुल के, है तो कायर और गीदड